मुनेश त्यागी
जब दो सौ साल पहले सामंतवाद का खात्मा करके 1789 में फ्रांस की क्रांति हुई थी, तब लोगों ने राहत की सांस ली थी कि अब जनता को यानी किसानों, मजदूरों को शोषण, जुल्म और अन्याय से राहत मिलेगी। इस फ्रांसीसी क्रांति का पूरी दुनिया में तहे दिल से स्वागत किया गया था। धीरे-धीरे समाज आगे बढ़ा, कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को कुछ राहत मिली, उनके जीवन में कुछ सुख सुविधाएं आयीं।
मगर जैसे-जैसे समय गुजरता गया पूंजीवादी व्यवस्था मजदूरों को वे सारे अधिकार नही दिला पाई, जिनकी घोषणा करके इसने जन्म लिया था। यह पूंजीवादी व्यवस्था उन सारे शोषण, जुल्म और अन्यायों को खत्म नहीं कर पाई, जिनका खात्मा करने का इसने ऐलान किया था। काफी इंतजार के बाद भी पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों की कार्य दशाओं में कोई सुधार नहीं आया, बल्कि उन्हें बिना किसी कानूनी अधिकार के 12-12, 14-14 घंटे काम करने को मजबूर किया गया, उनको समुचित वेतन नहीं दिया गया, उनको वेतन समय पर भी नहीं मिलता था, उनके कार्य के घंटे भी तय नहीं थे, यूनियन बनाकर संघर्ष करने का कोई अधिकार नही था, मजदूर जैसे कारखाने के गुलाम बनकर रह गए, औरत मजदूरों और पुरुष मजदूरों के वेतन का अन्तर बढ़ता ही चला गया।
इन सारी समस्याओं को लेकर पूंजीवादी व्यवस्था से लोगों का मोह भंग होने लगा और मजदूरों ने धीरे-धीरे इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया। इन्हीं सब समस्याओं को लेकर कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने 1848 में एक कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो तैयार किया और उसमें बताया कि कैसे पूंजीवादी निजाम मजदूरों के साथ शोषण और जुल्म करता है, अन्याय करता है, उन्हें उनकी मेहनत का वाजिब दाम नहीं देता। यहीं पर उन्होंने प्रतिपादित किया कि कैसे क्रांति करके पूंजीवाद के स्थान पर समाजवाद आएगा। उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण अन्याय और लूट की पूरी पोल खोलकर जनता के सामने रख दी और उन्होंने समाजवाद की रूपरेखा दुनिया के सामने पेश की।
फिर इसको लेकर धीरे-धीरे पूंजीवाद और समाजवादी विचारों के बीच संघर्ष शुरू हो गया और कार्ल मार्क्स और एंगेल्स के विचारों को सबसे पहले लेनिन के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने मजदूरों और मेहनतकशों को एकजुट करके 1917 में रूसी क्रांति को जन्म दिया और दुनिया का सबसे पहला समाजवादी राज्य अस्तित्व में आया। इसके बाद रूसी क्रांति ने धीरे-धीरे किसानों, मजदूरों और सारी जनता को वे तमाम बुनियादी सुविधाएं और अधिकार जैसे भोजन, मकान, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य, अनिवार्य काम, सबको रोजगार, मुफ्त बिजली, बुढ़ापे की पेंशन, सबको पढ़ने का और रोजगार का अधिकार और देश के सारे प्राकृतिक संसाधनों का जनता के विकास के लिए इस्तेमाल, उपलब्ध कराये, जिनका अभी तक कोई सपना भी नहीं देखा गया था। इसके बाद देखते देखते दुनिया के अनेक देशों में समाजवादी क्रांतियां हो गई और लोगों ने पूंजीवादी शोषण जुल्म और अन्याय से राहत की सांस ली।
पूंजीवाद और समाजवाद के बीच यह वैचारिक संघर्ष बढ़ता ही चला गया और इस प्रकार समाजवादी व्यवस्था की इन सफलताओं के बाद पूंजीवादी व्यवस्था के शासकों को मजबूर होकर “कल्याणकारी राज्य” की भूमिका में आना पड़ा। इसके बाद भी इन दोनों व्यवस्थाओं का यह संघर्ष पिछले लगभग 80 साल से आज तक दुनिया का सबसे बड़ा संघर्ष बना हुआ है और आज इस संघर्ष ने विकराल रूप धारण कर लिया है। द्वितीय विश्व युद्ध में ही एक षड्यंत्र के तहत, समाजवादी सोवियत यूनियन पर हमला किया गया था और इस समाजवादी व्यवस्था का विनाश करने की साज़िश तैयार की गई थी। समय रहते इस साजिश का पर्दाफाश हुआ और सोवियत संघ के राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन के नेतृत्व में वहां की सरकार और जागरूक जनता ने इसका मुकाबला किया और सोवियत यूनियन को पूंजीवादी हमलों से बचाया और रूसी समाजवादी व्यवस्था की हिफाजत की।
इसके बाद समय बढ़ता चला गया और समाजवादी मुल्क और पूंजीवादी मुल्क अपने-अपने तरीके से काम करते रहे। 1991 में रूस की कम्युनिस्ट पार्टी की अक्षम्य गलतियों और पूंजीवादी दुनिया की साजिशों ने, सोवियत संघ में प्रति क्रांति कर दी और वहां समाजवादी व्यवस्था का खात्मा हो गया, मगर इसके बाद भी यह संघर्ष जारी रहा और आज दुनिया के पूंजीवादी साम्राज्यवादी मुल्क जिनमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इजराइल आदि मुल्क शामिल हैं, इन सब ने जैसे दुनिया के तमाम देशों के मजदूरों और किसानों का जीना दूभर कर दिया है।
आज हालात ये हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के तमाम लुटेरे साम्राज्यवादी मुल्क दुनिया भर के मजदूरों और किसानों पर भयंकर हमले कर रहे हैं। वे सारी दुनिया पर कब्जा करके, सारी दुनिया को अपने मुनाफे का चारागाह बनाने पर आमादा हैं। पहले उन्होंने सोवियत यूनियन को खत्म किया और उसके बाद आज उन्होंने समाजवादी मुल्कों जैसे चीन, उत्तरी कोरिया, क्यूबा, और स्वतंत्र मुल्क जैसे इराक, लीबिया, फिलीस्तीन और अब ईरान का, जैसे जीना ही मुहाल कर दिया है। ये तमाम पूंजीवादी साम्राज्यवादी मुल्क दुनिया से जैसे समाजवादी विचारधारा, देशों के स्वतंत्र अस्तित्व और समाजवादी व्यवस्था को खत्म कर देने पर आमादा हैं।
आज हम देख रहे हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में नाटो और इन तमाम पूंजीवादी मुल्कों ने मानव अधिकारों पर सबसे ज्यादा और तेज हमले शुरू कर दिए हैं। इन्होंने यूएनओ जैसी वैश्विक संस्था को लगभग नाकाम और धराशाई कर दिया है। अब ये तमाम ताकतें किसी भी हालत में, किसी भी समाजवादी मुल्क, स्वतंत्र संस्था को या अपने देशों में मजदूर यूनियनों को काम करने देना नहीं चाहतीं और ये तमाम पूंजीवादी देश अपने विरोधियों पर तमाम तरह के हमले कर रहे हैं, उनके अधिकारों का पूरी तरह से हनन कर रहे हैं।
पहले इन्होंने सोवियत यूनियन को खत्म किया इसके बाद इराक को तहस नहस किया, फिर लीबिया का सत्यानाश कर दिया, फिर क्यूबा पर आर्थिक नाकेबंदी लगाई, दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के मुल्कों में तमाम तरह के हस्तक्षेप किये और वहां की सरकारों का काम करना बेहद मुश्किल कर दिया। आज हम देख रहे हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में इन पूंजीवादी मुल्कों ने पूरी दुनिया में धर्मांध, अंधविश्वासी, जातिवादी, नस्ली और रंगभेद नीतियों और ताकतों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।
इन्होंने समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और जनवादी मूल्यों को जैसे तिलांजलि दे दी है और आज ये वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतें पूरी दुनिया में वामपंथियों, कम्युनिस्टों, जनवादियों, धर्मनिरपेक्ष और ईमानदार किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली तमाम शक्तियों पर और तमाम पार्टियों पर हमले कर रहे हैं। इन्होंने उनका काम करना बेहद मुश्किल कर दिया है।
इन समस्त पूंजीवादी ताकतों ने पहले यूक्रेन और रूस में झगड़ा कराया, वहां पर आपसी समझौते का उल्लंघन किया और रूस और यूक्रेन में युद्ध छिडवा दिया। इसके बाद अब हम देख रहे हैं कि कैसे ये तमाम लुटेरी ताकतें फिलिस्तीन में वहां के निर्दोष बच्चों और महिलाओं का कत्लेआम कर रही हैं और ये तमाम ताकतें मिलकर दुनिया के सबसे , आतंकवादी, हमलावर और नस्लवादी राष्ट्र इजराइल का साथ दे रही हैं, उसको हथियार दे रही हैं, उसको सैनिक मोहिया करा रही हैं। आज हालत इतने खराब हो गए हैं कि जनतांत्रिक व्यवस्था का हीरो बनने वाला अमेरिका, यूएनओ में फिलीस्तीन को आजाद देश बनाने के प्रस्ताव पर ही वीटो पावर का इस्तेमाल कर रहा है।
आज हम पूरी दुनिया में देख रहे हैं कि कैसे ये सारे पूंजीवादी मुल्क, अपने-अपने देश की जनतांत्रिक प्रक्रिया में तमाम तरह की बाधाएं खड़ी रहे हैं, चुनाव आयोग को एक बेईमान और पक्षपाती संस्था बना दिया गया है। अब तो जैसे चुनाव आयोग पूंजीवादी सरकारों का एक निजी महकमा बन गया है। इन्होंने तथाकथित जनतंत्र को धनतंत्र और लूट तंत्र में बदल दिया है आज हम देख रहे हैं कि इन पूंजीवादी देशों ने इस धरती को जैसे न रहने लायक सबसे ख़तरनाक ग्रह बना दिया है।
इन्होंने रूस और यूक्रेन में युद्ध करा रखा है, ताइवान को लेकर पूर्वी एशिया में हालत बहुत खराब कर दिये हैं, पश्चिम एशिया में युद्ध लगातार जारी है अफ्रीकी महाद्वीप के विभिन्न देशों में इन पूंजीवादी लुटेरे देशों के लगातार हस्तक्षेप जारी हैं। इन्होंने अपने अपने देशों में मजदूरों द्वारा यूनियन बनाने की नीतियों को धराशाई कर दिया है, यूनियनों का काम करना लगभग समाप्त कर दिया है और अधिकांश मजदूरों को आधुनिक गुलाम बना दिया है। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि फ्रांसीसी पूंजीवादी क्रांति समता, समानता और आजादी का जो नारा लेकर आई थी, जनवाद यानी डैमोक्रेसी का जो झंडा बुलंद करके आई थी, उसने अपने तमाम आदर्शों, नैतिकता और मर्यादाओं का परित्याग करके ताक पर रख दिया है, उनको पूरी तरह से धाराशाई दिया है और अब ये तमाम पूंजीवादी ताकतें अपने तमाम विरोधियों को निष्क्रिय और बेकार करने पर आमादा हैं और उनको आतंकवादी और देशद्रोही बता रही हैं।
उन्होंने ताइवान और इसराइल में अपने मोहरे कायम कर रखें हैं, जो इनके लिए काम कर रहे हैं। ये तमाम पूंजीवादी ताकतें दुनिया के समस्त प्राकृतिक संसाधनों जैसे ,,,,,तेल, गैस, कोयला, पानी, बिजली सब पर अपना कब्जा और प्रभुत्व जमाना चाहते हैं। वे अब सब कुछ, अपनी मुनाफाखोरी को अबाध रूप से कायम रखने के लिए और बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। इन्होंने अपने, हमलावर, युध्दोन्मादी और जन विरोधी कारनामों और नीतियों से सिद्ध कर दिया है कि इनका दुनिया के आधुनिक विचारों जैसे जनतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, निष्पक्ष चुनाव, न्याय, भाईचारे, स्वास्थ्य, इंसाफ और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों में, इनका कोई विश्वास नहीं है।
आज इन्होंने अपनी जनविरोधी, मजदूर विरोधी और किसान विरोधी नीतियों से साबित कर दिया है कि ये पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकतें, दुनिया में आज तक की, सबसे काली, क्रूर, निर्मम, अन्यायी, हमलावर, युध्दोन्मादी और हत्यारी ताकतें हैं और इन्होंने डैमोक्रेसी यानी जनतंत्र, समता, समानता, कानून, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे, न्याय और जनविकास के मूल्य और सिद्धांतों को मिट्टी में मिला दिया है और इनका उनमें अब कोई विश्वास नहीं रह गया है। इन्होंने पूंजीवादी जनतंत्र को धनतंत्र और लूटतंत्र में बदल दिया है और ये पूरी दुनिया की, किसानों की, मजदूरों की, छात्रों की, नौजवानों की, महिलाओं की, प्राकृतिक संसाधनों की और दुनिया के जरूरी और समुचित विकास की, सबसे बड़ी दुश्मन बन गई हैं, उनकी सबसे बड़ी विरोधी ताकतें बनकर दुनिया के सामने मौजूद हो गई हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति बुश ने पहले इराक़, ईरान और उत्तरी कोरिया को “एक्सिस ओफ इविल” यानी “बुराई की धुरी” बताया था। फिर अमेरिका के जोन बोल्टन ने इसमें क्यूबा, सीरिया और लीबिया को शामिल कर लिया। जब इन वैश्विक लुटेरों की प्रभुत्वकारी नीतियों और दुनिया पर अपना कब्जा जमाने की नीतियों से परेशान होकर रूस, चीन और ईरान ने मिलजुल कर काम करना शुरू किया तो अब अमेरिका के हाउस स्पीकर माईक जोनसन,,,, रूस, चीन और ईरान को “एक्सिस का इविल” यानी “बुराई की धुरी” बता रहे हैं। जबकि आज के हालात बता रहे हैं कि अपनी लोकतांत्रिक और जनविरोधी नीतियों के कारण, दुनिया के तमाम पूंजीवादी मुल्क अब “एक्सिस ओफ इविल” यानी “बुराई की धुरी” बन गए हैं और अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली , कनाडा और इजराइल, आज दुनिया की सबसे बड़ी “एक्सिस ऑफ एविल” यानी “बुराई की धुरी” बन गए हैं।