अग्नि आलोक
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देश विश्वगुरु बनने की राह पर

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शशिकांत गुप्ते

अभी तक यह सुनने में आता है कि,देश का अमुक शहर धार्मिक नगरी है। अब समूचा देश ही धार्मिक हो रहा है।
यहाँ-वहाँ,जहाँ-तहाँ है,यत्र-तत्र सर्वत्र धार्मिक वातावरण निर्मित हो रहा है।
धन्य है तुलसीदासजी जिन्होंने हनुमान चालीसा की रचना की।
हनुमान चालीसा की शरुआत इन दोहों से होती है।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
मुकुरु शब्द अर्थ दर्पण होता है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार दीजिए।
हनुमान चालीसा का भावार्थ निम्नानुसार है।
आप रामभक्त हैं। आप हमारे क्लेशों का हरण कीजिए।
हनुमान चालीसा पढ़ने से भूत पिशाच्च भी पास में नही फटकतें हैं।
आप के पास सभी रोगों को नाश करने का सामर्थ्य है।
श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की आपका यश गान हजार मुख से सराहनीय है।
आज अपने देश यही हो रहा है।
हजारों मुख से हनुमान चालीसा का पाठ बाकायदा लॉडस्पीकर लगाकर कर्णप्रिय आवाज में असंख्य देश वासियों सुनाया जा रहा है। जो लोग हनुमान चालीसा का पाठ सुन रहें हैं, वे सभी भाग्यवान है घर बैठे, रास्ते पर चलते,फिरते श्रवण भक्ति का लाभ उठा रहें हैं।
इसीतरह सारा देश भक्तिमय हो जाएगा। और यह संदेश सम्पूर्ण विश्व में जाएगा।
सिय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी

भावार्थ:पूरे संसार में श्री राम का निवास है,सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।
हनुमान चालीसा का पाठ के साथ ही देशवासियों को इस भजन का भी पाठ भक्तिभाव से करना चाहिए।
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार,
उदासी मन काहे को करे रे
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार,
उदासी मन काहे को करे
काबू में मँझधार उसी के
हाथों में पतवार उसी के
काबू में मँझधार उसी के,
हाथों में पतवार उसी के
तेरी हार भी नहीं है तेरी हार,
उदासी मन काहे को करे

इस तरह अपने देश भारत को कोई भी विश्वगुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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