डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
नया वर्ष आ गया है। नए साल का आज 8 वां दिन है, मतलब 7 दिन बीत चुके हैं नववर्ष को आये हुए। उनतीस दिसंबर को पिछले वर्ष का अंतिम रविवार था । पिछले रविवार की सबसे प्रमुख घटना यह थी कि सरकार जी ने मन की बात सुनाई थी।
उस दिन मैंने पहली बार सरकार जी के मन की बात सुनी। भगवान कसम, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। झूठ तो मैं बोलता ही नहीं हूँ। देश में सरकार जी हैं, शाह जी हैं, और भी इतने सारे मंत्री-संतरी और राजनेता हैं, उनके होते मुझे झूठ बोलने की जरुरत ही कहाँ है। हाँ, तो मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। उस दिन मैंने जीवन में पहली बार सरकार जी के मन की बात सुनी।
हुआ यूँ कि उस दिन मैं कार चला रहा था, एफएम लगा हुआ था और विविध भारती पर अच्छे अच्छे नए पुराने गाने बज रहे थे। गाने तो और चैनलों पर भी बजते हैं पर विविध भारती की खासियत यह है कि उस पर विज्ञापन कम ही होते हैं और विविध भारती पर जो विज्ञापन होते हैं उनमें से आधे तो सरकार जी की आवाज़ में होते हैं। विविध भारती ने यह काम बहुत अच्छा किया है कि देश का बच्चा बच्चा मोहम्मद रफ़ी, लता जी, किशोर कुमार और आशा भोसले की आवाज के साथ साथ सरकार जी की आवाज़ भी बखूबी पहचानने लगा है।
हाँ तो उस दिन मैं कार चला रहा था। कार में एफएम पर विविध भारती बज रहा था। नए पुराने गाने बज रहे थे। एकाएक सरकार जी की मन की बात आने लगी। मैंने बचने की बहुत कोशिश की। एफएम चैनलों को इधर से उधर बदला पर सब चैनल एक ही ब्रॉडकास्ट पकड़े हुए थे। मतलब सब मन की बात सुना रहे थे और सरकार जी के मन की बात सुनना मजबूरी थी।
हुआ यूँ था कि मैं जहाँ जा रहा था वहाँ ग्यारह बजे तक पहुंच जाना था। और अगर मैं समय से वहाँ पहुंच जाता तो मन की बात से बच जाता। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो गया और मैं मन की बात में फंस गया। ट्रैफिक जाम में तो बहुत बार फंसा हूँ पर पहली बार ट्रैफिक जाम टेरेफिक जाम महसूस हुआ क्योंकि मैं उस दिन पहली बार मन की बात सुन रहा था।
सरकार जी ने मन की बात में बहुत सारे विषयों को छुआ। हर विषय पर एक दो मिनट बोलते थे और फिर अगले विषय पर आ जाते थे। किसी भी विषय पर गहराई से नहीं बोले। एक विषय ले लेते, उस पर आठ दस लाइन बोलते और फिर दूसरा विषय ले लेते। हर विषय पर ऐसा लग रहा था जैसे किसी तीसरी चौथी कक्षा के छात्र ने आठ दस लाइनें लिख दीं हों।
भगवान कसम, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। झूठ तो मैं बोलता ही नहीं हूँ। और मैं वह भी नहीं बोल रहा हूँ जो आप समझ रहे हैं। आप जो समझ रहे हैं समझें पर मैं सरकार जी की शिक्षा पर कुछ नहीं कह रहा हूँ। मैं तो सरकार जी के मन की बात लिखने वाले की शिक्षा के स्तर पर बात कर रहा हूँ। सरकार जी को रोज रोज इतना बोलना होता है। सरकार जी सबकुछ स्वयं थोड़ी ना लिखते हैं। लिखने वाले होते हैं, सरकार जी तो बस उनका लिखा पढ़ देते हैं।
सरकार जी की मन की बात सुन कर समझ आया कि देश की समस्याएं सुलझ क्यों नहीं रही हैं। जो मन की बात में हो रहा था वैसा ही सभी समस्याओं के साथ भी होता है। मतलब हर समस्या पर थोड़ी थोड़ी बात होती है। जिक्र भर होता है। नौकरी, महंगाई, लॉ एंड आर्डर, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, किसी पर गंभीर बात नहीं। सब पर बस लफ़्फ़ाजी। सभी पर बस नारे। सरकार जी कहते हैं, ‘तुम्हें महंगाई से मुक्ति चाहिए या नहीं’। भीड़ जवाब देती है, ‘हाँ, मुक्ति चाहिए’। ‘भ्रष्टाचार का खात्मा चाहिए या नहीं’। ‘हाँ खात्मा चाहिए’। ‘हर साल दो करोड़ नौकरियां चाहियें’? ‘हाँ, हाँ, चाहियें’। ‘आतंकवाद रहित भारत चाहिए’। ‘हाँ, आतंकवाद रहित देश चाहिए’। पर कैसे, कब, उस पर कोई बात नहीं। देश बस मन की बात के तरीके से चल रहा है।
खैर, मन की बात चल ही रही थी, पूरी नहीं हुई थी, मेरा डेस्टिनेशन आ पहुंचा। मुझे जहाँ पहुंचना था, पहुंच गया। मैंने कार बंद की और उतर पड़ा। सरकार जी के मन की बात पूरी सुनने की इच्छा अधूरी ही रह गई।
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