*किसने गायब की है 19 लाख ईवीएम ?*
हरनाम सिंह
लगभग दो माह पश्चात होने वाले लोकसभा चुनाव और उसके बाद के परिदृश्य को लेकर मीडिया में अनेक तरह की चर्चाएं बहस का विषय बनी हुई है। एक तरफ प्रधानमंत्री द्वारा तीसरी बार सत्ता में लौटने का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी और आलोचक प्रधानमंत्री के दावे के पीछे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में की जा सकने वाली कथित गड़बड़ी को देख रहे हैं। चंडीगढ़ नगर निगम में मेयर के चुनाव में सरे आम लोकतंत्र की हत्या की गई, उस पर भी शासक दल और उनके पदाधिकारियों, केंद्र के मंत्रियों द्वारा डाकाजनी कर लूटी गई इस जीत पर बधाईयां दी गई,हर्ष व्यक्ति किया गया यह सीनाजोरी देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। स्वतंत्र पर्यवेक्षक इस प्रवृत्ति को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
इसी बीच चुनाव करवाने वाली ईवीएम एवं उसकी निर्माता कंपनी में भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों की संचालक मंडल में नियुक्ति ने ईवीएम की निष्पक्षता के दावे को संदिग्ध बना दिया है। 19 लाख ईवीएम गायब हो चुकी है कोई जिम्मेदार स्पष्टीकरण देने सामने नहीं आ रहा है।
*निर्वाचन आयोग सवालों के घेरे में*
देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव करवाने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है। लेकिन इस आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार ने अपने हाथ में लेकर आयोग की विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है। इसी के चलते कई बार आयोग का पक्षपाती रवैया भी खुलकर सामने आया है। आयोग सत्ताधारी दल, उनके नेताओं के विवादास्पद बयानों पर चुप्पी साधे रहता है। वहीं विपक्षी नेताओं से आए ऐसे ही बयानों पर तुरंत जवाब- तलब किया जाता है। लगभग छः माह पूर्व 9 अगस्त 2023 को ईवीएम को लेकर विपक्षी दल के नेताओं ने आयोग से मिलने का समय मांगा है। इतनी लम्बी अवधि बीत जाने के बाद भी आयोग के अधिकारी उनसे मिलने को तैयार नहीं है। ईवीएम बनाने वाली सरकारी कंपनी “भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड” (बीईएल) के निदेशक मंडल में भाजपा के चार पदाधिकारियों की नियुक्ति पर भी आयोग ने कोई संज्ञान नहीं लिया। ऐसे में ईवीएम से चुनाव करवाना कितना निष्पक्ष होगा समझा जा सकता है।
*क्या पिछला चुनाव निष्पक्ष था ?*
आरोप है कि निर्वाचन आयोग द्वारा इरादतन शासक दल का पक्षधर होकर जनता के सवालों का जवाब देने से बचा जा रहा है। यहां तक कि आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में भी झूठ बोलने से परहेज नहीं किया है। वैसा ही झूठ जैसा बिलकिस बानों के अपराधियों को रिहा करवाने में गुजरात की सरकार ने बोला था। तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हमारे साथ फ्राड हुआ है। वर्ष 2019 में संपन्न लोकसभा चुनाव में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ीयों का आरोप है जिन्हें चुनाव आयोग छुपा रहा है। क्विंट की पत्रकार पूनम अग्रवाल ने आयोग की वेबसाइट पर दिए गए 2019 के चुनाव के अधिकृत आंकड़ों का विश्लेषण किया तो यह अपराध सामने आया। पूनम के अनुसार 37 3 निर्वाचन क्षेत्रों में हुए चुनाव में 220 क्षेत्रों में की ईवीएम में वोट कम पड़े लेकिन गिनती में अधिक पाए गए। वहीं 153 क्षेत्रों में वोट अधिक डाले गए लेकिन गिनती में कम निकले। वोटों की यह संख्या दो-चार नहीं थी, हजारों की तादाद में पाई गई थी। दोनों ही स्थिति में किसी उम्मीदवार को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया होगा। जब क्विंट की पत्रकार ने आयोग से इस विसंगति के बारे में पूछा तो अधिकारियों ने जांच करवाने की बात कही और बाद में अपनी वेबसाइट से वे विस्तृत आंकड़े ही हटा दिए। पत्रकार को कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। क्या आयोग की यह कार्यवाही उस संदेह को पुष्ट नहीं करती कि ईवीएम के माध्यम से चुनाव में हेराफेरी की जा सकती है। और आयोग के मौन को स्वीकृति मान लिया जाए।
लोकसभा चुनाव में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरुरत होती है 2019 के चुनाव में 373 ईवीएम में गड़बड़ी पाई गई बावजूद इसके निर्वाचन आयोग द्वारा पांच वर्ष बीत जाने पर भी कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है कि आखिर यह कैसे हुआ।
हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में भी ईवीएम की गड़बड़ी खुलकर सामने आई थी। छत्तीसगढ़ के एक बसपा उम्मीदवार और उसका परिवार जिस इलाके में निवास करता है वहां के बूथ पर उम्मीदवार को एक भी वोट नहीं मिला, न स्वयं का नहीं परिवार का। असम के दीमा हसाऊ बूथ पर 90 मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया लेकिन वोटों की गिनती में मशीन में 171 वोट पाए गए।
*वीवीपीएटी पर नियम बदले*
चुनाव में मतदाता को संतुष्ट करने के लिए ईवीएम के साथ वीवीपीएटी ( वेरी फायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) प्रणाली का उपयोग वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रायोगिक तौर पर कुछ क्षेत्रों में किया गया था। 2019 के चुनाव में सभी लोकसभा सीटों को वीवीपीएटी से जोड़ा गया। तब आयोग ने तय किया था कि वीवीपीएटी की पर्चियां को एक साल तक सुरक्षित रखा जाएगा ताकि विवाद की स्थिति में उनका उपयोग किया जा सके। लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव पश्चात केन्द्रीय चुनाव आयोग ने परिपत्र जारी कर इन पर्चियों को चार माह पश्चात ही नष्ट करने के आदेश जारी कर दिए। आयोग को ऐसी क्या जल्दी थी ? उसके इस कृत्य को सबूत मिटाने के रूप में ही देखा जा रहा है।
*सुप्रीम कोर्ट से झूठ बोला गया*
20 मई 2019 को 21 राजनैतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की थी कि चुनाव पश्चात 50 प्रतिशत वीवीपीएटी पर्चियों की गणना की जाए, ताकि मतदाता संतुष्ट हो सके कि मशीन में कोई गड़बड़ी नहीं है। जवाब में चुनाव आयोग ने हलफनामा दायर कर न्यायालय से कहा कि पिछले दो साल में हुए चुनाव में ऐसी कोई बड़ी गड़बड़ी सामने नहीं आई है। आयोग के शपथ पत्र को सच मान कर न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया। जबकि गुजरात, कर्नाटक सहित देश के कई राज्यों में चुनाव में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाई गई थी। क्विंट की पत्रकार ने इसे प्रमाणित भी किया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासनिक सलाहाकार रह चुके ईवीएम के विशेषज्ञ माधव देशपांडे ने एक साक्षात्कार में बताया था कि भारत में ईवीएम को दूर से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मशीन इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती है। लेकिन वीवीपीएटी में हेरा फेरी की जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि ईवीएम पर वर्ष 2019 के पश्चात ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन निर्वाचन आयोग ने ऐसे कोई प्रयास नहीं किये है कि मतदाताओं को चुनाव प्रणाली पर भरोसा बना रहे सके। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह भी है कि देश की अदालतें भी नहीं सुन रही है। चंडीगढ़ मेयर के चुनाव की घटना पर भी आयोग द्वारा आंख मूंद लेना एक तरफा चुनाव के संदेह को पुष्ट करता है।
*ईवीएम के खिलाफ आक्रोश*
देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के स्थान पर पुरानी मतपत्र पर्ची से मतदान करवाने की मांग जोर पकड़ रही है। हाल ही में 31 जनवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर ईवीएम के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुआ। देश के विभिन्न प्रांतो से आए लाखों लोगों ने दिल्ली पुलिस द्वारा लगाई धारा 144 को धता बताकर अपना विरोध दर्ज करवाया। लेकिन शासको के अनुकूल न होने के चलते यह खबर मीडिया का भाग नहीं बन पाई। देश में परिवर्तन के प्रतीक बने जंतर-मंतर पर 22 गैर राजनीतिक संगठन जिन में प्रमुख रूप से भारतीय मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय किसान मोर्चा, बहुजन मुक्ति मोर्चा सहित सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का संगठन ने ईवीएम के स्थान पर मत पत्र के माध्यम से चुनाव करवाने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने इस आंदोलन को विस्तार देने का संकल्प व्यक्त किया है। उल्लेखनीय है कि ईवीएम पर संदेह व्यक्त करने के बावजूद प्रमुख राजनीतिक दल इस आंदोलन से दूर ही रहे।
*तोड़ी जा सकती है मशीन*
आंदोलनकारियों ने खुले आम चेतावनी दी है कि अगर चुनाव आयोग ने मत पत्रों के माध्यम से चुनाव नहीं करवाया तो वह बूथ पर रखी ईवीएम मशीन को तोड़ देंगे। देखा जाए तो यह काम मुश्किल भी नहीं है। मतदान के दौरान बूथ पर मशीन के सामने मतदाता अकेला ही होता है। अगर वह आंदोलन के प्रति प्रतिबद्ध है और जोखिम उठाने को तैयार है तो ईवीएम को नुकसान पहुंचाना आसान हो सकता है।
*ईवीएम निर्माता कंपनी भाजपा के कब्जे में*
ईवीएम बनाने वाली देश में दो सरकारी कंपनियां हैं। इनमें से एक प्रमुख कंपनी है भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बेल)। यह कंपनी ईवीएम के लिए सॉफ्टवेयर को विकसित करने का बेहद संवेदनशील काम करती है। जानकारी के अनुसार बेल ताइवान कंपनी से चिप खरीदता है। राष्ट्रमंडल मानव अधिकार संस्था के वेंकटेश नायक ने इस संबंध में व्यापक अध्ययन कर बताया है कि मेमोरी चिप दो तरह की बनाई जाती है, एक (ओटीपी) वन टाइम प्रोग्राम आधारित होती है, जिसमें एक बार जानकारी भर देने के बाद ना तो उसे खोला जा सकता है ना उसमें कोई जानकारी भरी जा सकती है, और नहीं निकाली जा सकती है। जबकि दूसरी चिप ऐसे बंधनों से मुक्त होती है। कयास लगाया गया है कि बेल यही दूसरे तरह की चिप ईवीएम में डालकर चुनाव आयोग को सौंपता है। वेंकटेश नायक के अनुसार ताइवान की एन एक्स पी कंपनी से बेल राइटेबल मेमोरी चिप्स ही खरीदता है।
*बोर्ड में बहुमत है भाजपा का*
बेल कंपनी के संचालन हेतु भारत सरकार द्वारा 7 सदस्यीय स्वतंत्रत निदेशक मंडल का गठन किया गया है , इन 7 सदस्यों में से चार सदस्य घोषित रूप से भाजपा के पदाधिकारी हैं।
इनमें से एक हैं 61 वर्षीय मनसुख भाई कचरिया जो गुजरात राजकोट में भाजपा के जिला अध्यक्ष हैं।
दूसरे 64 वर्षीय शिवनाथ यादव हैं। बनारस निवासी श्री यादव भाजपा उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष हैं।
तीसरे 51 वर्षीय पार्थ सारथी हैं जो भाजपा अनुसूचित जाति- जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव हैं। चौथे 55 वर्षीय श्याम सिंह हैं, जो बिहार भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके हैं। इस तरह बेल संचालक मंडल में भाजपा का बहुमत है।
भारत सरकार की प्रशासनिक सेवा राष्ट्रीय योजना आयोग के प्रधान सलाहकार रह चुके सेवानिवृत्ति पूर्व सचिव इएएस सरमा ने सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के सचिव डॉक्टर मनोज गोविल, सार्वजनिक उद्यम विभाग के सचिव अली रजा रिजवी। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और दो अन्य आयुक्त एसी पांडे तथा अरुण गोयल को पत्र लिखकर बेल में स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्त व्यक्तियों की भाजपा से संबद्धता होने की शिकायत की है। श्री सरमा ने पत्र में कहा है की बेल के संचालक मंडल में प्रशासनिक मंत्रालय (रक्षा मंत्रालय) द्वारा निदेशकों को नामित किया गया है। इनमें से चार व्यक्तियों का भाजपा से जुड़ाव है। कंपनी अधिनियम के तहत स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी प्रबंधन की निगरानी करना होती है। बेल को ईवीएम प्रणाली के घटकों के निर्माण और आपूर्ति का कठिन और अत्यंत जिम्मेदारी का कार्य सौंपा गया है। साथ ही प्रबंधक मंडल ईवीएम चिप में एंबेडेड स्त्रोत कोड का संरक्षक भी है। उन्होंने पत्र में आगे लिखा है कि ईवीएम में हेरफेर की गुंजाइश के बारे में नागरिक समाज चिंतित है, इसलिए आपके मंत्रालय और सेबी दोनों को बेल में नियुक्त स्वतंत्र निदेशकों की जांच की जानी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों विभागों ने केंद्र में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को लाभ पहुंचाने के लिए इस अवैधानिक गतिविधि को बनाए रखने की अनुमति दी है।
उल्लेखनीय है कि ईवीएम विरोधियों के इस तर्क का कोई जवाब सामने नहीं आता है कि ईवीएम मशीन से अगर निष्पक्ष मतदान संभव है तो विकसित देश आज भी कागज की पर्ची से ही मतदान क्यों करवाते हैं ? समय, संसाधन अधिक लगने का तर्क खोखला है। चुनावी निष्पक्षता, संदेह रहित चुनाव प्रणाली लोकतंत्र का आधार है, उसके लिए कोई भी कीमत चुकाई जा सकती है। वर्तमान में चुनाव प्रणाली पर लोगों का भरोसा उठता जा रहा है संदिग्ध चुनाव प्रणाली लोकतंत्र के लिए खतरा है।
कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने भोपाल में एक कथित ईवीएम मशीन का प्रदर्शन कर प्रमाणित करने का प्रयास किया की मशीन से वोटो में हेरा फेरी संभव है। ऐसा ही दावा गुजरात के एक सिविल इंजीनियर अतुल पटेल, राहुल मेहता का भी है। भीलवाड़ा राजस्थान के पवन कुमार शर्मा ने जंतर मंतर पर स्वयं द्वारा निर्मित एवं मशीन का प्रदर्शन कर मत पत्रों में होने वाली हेराफेरी को मीडिया के सामने बताया। उनका आरोप था कि निर्वाचन आयोग द्वारा वीवीपीएटी मशीन में सफेद पारदर्शी कांच के स्थान पर काला कांच लगा देने से मतदाता दिए गए वोट के बदलने की सच्चाई नहीं देख पाता उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मशीन में लाइट जलने की अवधि भी घटा दी गई है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली में 19 वर्षों तक काम करने का दावा करने वाले एवं वर्तमान में बेंगलुरु की एक प्रतिष्ठित इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में कार्यरत गोपाल कृष्ण भी कहते हैं कि सारा खेल चिप का है उनके अनुसार 2 साल पहले इस संबंध में उन्होंने आयोग को लिखा था लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
*19 लाख मशीनें हैं गायब*
कर्नाटक में कांग्रेस विधायक एच के पाटील ने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर विधानसभा में प्रश्न पूछा था की वर्ष 2016 से 2018 तक देश में लगभग 19 लाख मशीनें गायब हुई है। इस मामले में चुनाव आयोग ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। श्री पाटिल ने बताया कि बेल द्वारा सप्लाई की गई 9 लाख 60 हजार तथा इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन आफ इंडिया (आईसीएल) द्वारा सप्लाई की गई 9 लाख 30 हजार मशीनें गायब है। विधानसभा के स्पीकर ने कहा कि वे इस मामले में चुनाव आयोग से उसका पक्ष जानने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी सवाल उठाया की आखिर में ये मशीन किसके पास है ? इनका क्या उपयोग हो रहा है ?
*आडवाणी जी ने भी की थी मांग*
वर्ष 2009 के अक्टूबर माह में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी एक साक्षात्कार में ईवीएम के स्थान पर मत पत्रों से चुनाव करवाने की बात कही थी, तब देश में कांग्रेस का शासन था।
*भाजपा सांसद ने लिखी थी किताब*
भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पुत्र जीवीएल नरसिम्हा राव ने वर्ष 2010 में ईवीएम पर सवाल उठाते हुए किताब लिखी थी। उन्होंने किताब में पूछा कि क्या हम अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा कर सकते हैं ? किताब के कवर पेज पर लिखा है कि भारत की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग की असफलता का चौंकाने वाला खुलासा। किताब में हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ हरिप्रसाद ने मिशीगन यूनिवर्सिटी के दो शोधार्थियों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था। उनके अनुसार मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है। ऐसे कई उदाहरण हैं की एक प्रत्याशी को दिया गया वोट वोट किसी दूसरे प्रत्याशी को मिल जाता है।
*अभिभाषक ने भेजा नोटिस*
देवास के एक वरिष्ठ अभिभाषक एम एल काजोड़िया ने चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है जिसमें वीवीपीएटी परचियों की गणना करने की मांग की गई है। अभिभाषक का कहना है कि वे वोटिंग मशीन को विश्वसनीय नहीं मानते हैं। ऐसे ही विचार देश के अनेक नागरिकों के भी हैं। श्री कजोड़िया के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 324 के प्रावधानों के तहत शंका रहित चुनाव करवाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है।