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गांधी विरासत को दुश्मन मानकर ध्वस्त करने में लगी मौजूदा सत्ता

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निमिषा सिंह

गाँव में किसानों से जमीन लेकर पूंजीपतियों को देनी है। किसान को मजदूर बना देना है और शहर की ओर भगा देना है, फिर शहर में रिक्शा चलाने, ट्रॉली खींचने और ठेला-गुमटी लगाकर दो निवाले अगर वो खा ले रहा है तो उसे यहां से भी विस्थापित करना है। इसे ही वर्तमान राजनीति विकास कहती है। गाँधी इसी अमानवीय विकास के विरुद्ध थे। ‘सर्व सेवा संघ’ उसी गाँधी के ‘हिन्द स्वराज मॉडल’ पर देश को मानवीय, संवेदनशील और दोस्ताना बनाना चाहता है। जाहिर है, यह किसी सत्ता-प्रतिष्ठान को नहीं सुहाता। गांधी की विरासत को दुश्मन मानकर ध्वस्त करने में लगी मौजूदा सत्ता को प्रधानमंत्री के एन चुनाव क्षेत्र बनारस से एक बार फिर चुनौती दी जा रही है। उम्मीद है, अहिंसक तरीकों से चलने वाला 100 दिन का यह सत्याग्रह देशभर को सत्ता की कारगुजारियों, खासकर गांधी विचार के प्रति तीखी असहमति को उजागर कर सकेगा। प्रस्तुत है, इस प्रतिकार की पृष्ठभूमि पर निमिषा सिंह का यह लेख।

प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र बनारस में एक बार फिर गांधी-बिरादरी ने अपनी आवाज उठाई है। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही और ‘सर्व सेवा संघ,’ राजघाट (बनारस) परिसर की स्थापना के प्रेरक आचार्य विनोबा भावे की जयंती, 11 सितंबर से सरकार और सरकारी संस्थाओं के दमन, अन्याय के प्रतिकार एवं परिसर के पुनर्निर्माण को लेकर 100 दिनों का सत्याग्रह प्रारंभ हुआ है।

‘सर्व सेवा संघ’ के राम धीरज के मुताबिक एक वर्ष पहले 22 जुलाई 2023 को स्थानीय एवं रेल प्रशासन ने ‘सर्व सेवा संघ’ के राजघाट परिसर पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और 12 अगस्त 2023 को इसके 45 भवनों को कानून का उल्लंघन करते हुए बुलडोजर से गिरा दिया था। इसके पहले 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी के निर्देश पर ‘सर्व सेवा संघ’ की जमीन के एक हिस्से को गुजरात की एक कंपनी को दे दिया गया था और 15 मई  2023 को ‘गांधी विद्या संस्थान’ को भी बलपूर्वक कब्जा कर ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’  को सौंप दिया गया था।

निस्संदेह ऐसी मानसिकता वाले, जिन्हें गांधी के विचारों से परेशानी रही है, जब भी मौका मिलता है, चूकते नहीं हैं। फिर चाहे गांधी के नाम की योजनाओं, उनकी स्मृतियों को खत्म करने की कोशिश हो या ‘स्वच्छता अभियान’ से गांधी के चित्र को हटाकर सिर्फ उनके चश्में का प्रयोग। ‘खादी ग्रामोद्योग’  से उनके चित्र को हटाना हो या फिर ‘जलियांवाला बाग’ और ‘साबरमती आश्रम’ के प्रेरणा-स्थलों के स्वरूप को बदलकर पर्यटन स्थल बना देना। एक वाक्य में कहें तो यह ‘गांधी को जड़ से खत्म करने कोशिश’ है।  

ऐसा ही एक निंदनीय प्रयास पिछले साल बनारस में भी शुरु हुआ था। जयप्रकाश नारायण (जेपी) द्वारा स्थापित ‘गांधी विद्या संस्थान’ पर बलपूर्वक कब्जा करके दिल्ली की संस्था ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ को सौंप दिया गया और राजघाट परिसर के नजदीक ‘सर्व सेवा संघ’ की जमीन पर ‘काशी-कॉरिडोर’ बनाने के नाम पर अवैध तरीके से कब्जा कर गांधीवादी संगठनों के वजूद को खत्म करने की कोशिश की गई। वर्ष 1960 में आचार्य विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के संरक्षण में बनारस में राजघाट पुल के पास इस केंद्र की स्थापना हुई थी।

साठ के दशक में ‘सर्व सेवा संघ’ ने रेलवे से यह जमीन खरीदी थी। इस जमीन की बिक्री तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और रेलमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के सहयोग से हुई थी। डिविजनल  इंजीनियर, नॉर्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन सेल-डीड आज भी ‘सर्व सेवा संघ’ के पास है। बिक्री की रकम सरकारी खजाने में जमा हुई थी। तिरसठ साल बाद इस रजिस्ट्री को जाली बताने का मतलब है, आचार्य विनोबा भावे को जाली बताना। या यूं कहें कि मौजूदा बीजेपी सरकार राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री और बाबू जगजीवन राम को जाली कागज बनाने वाला बता रही है।

गाँधी दर्शन की बुनियाद पर खड़ा ‘अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ’ सर्वजन हित, समरसता, स्वावलंबी विचार, सत्य और अहिंसा के प्रचार-प्रसार को ध्येय बनाकर काम कर रहा है। बापू की हत्या के बाद 1948 में राजेन्द्र बाबू, नेहरू जी और विनोबा भावे जैसे राष्ट्रनायकों ने गाँधी विचार को लाखों गांवों तक ले जाने के लिए ‘सर्व सेवा संघ’ की स्थापना की थी। इसका केंद्रीय कार्यालय वर्धा (महाराष्ट्र) में है। पूरे देश में इसकी अनेक शाखाएं हैं।

ऐसे समय में, जब सारी दुनिया मान चुकी है कि शांति के लिए गांधी ही एक मात्र रास्ता हैं, महात्मा गांधी की शिक्षा को आत्मसात करने, करवाने की कोशिश में जुटे बनारस के ‘सर्व सेवा संघ’ के ऐतिहासिक स्थल को अवैध बताकर ध्वस्त कर दिया गया है। इस अवैध कार्रवाई के नोटिस में कहा गया है कि कुछ एकड़ में फैली ये जमीन रेलवे की है जिस पर ‘सर्व सेवा संघ’ द्वारा जबरन अवैध कब्जा किया गया है। ‘इसे तत्काल स्थान खाली करें, अन्यथा ध्वस्तीकरण की कार्यवाही की जाएगी।’

सोचने की बात है की बनारस में ‘सर्व सेवा संघ’ बनाने वाले विनोबा भावे ने ‘भूदान आंदोलन’ के तहत 48 लाख एकड़ जमीन पूरे देश में घूम-घूमकर दान में इकट्ठा की थी और उसे गरीब, भूमिहीन लोगों में वितरित किया था। लाखों एकड़ जमीन दान में देने वाले व्यक्ति के ऊपर मौजूदा बीजेपी सरकार जमीन कब्जा करने का आरोप लगा रही है।

जाहिर है, पूंजीपतियों के फायदे को ध्यान में रखकर यह सब किया जा रहा है। अकेले बनारस का उदाहरण देखें तो ट्रांसपोर्ट नगर नाम से बनारस पश्चिम में मोहनसराय में बैरवन गाँव में जमीन लेने के लिए वाराणसी पुलिस ने किसानों की बर्बर पिटाई की थी। न्यायालय का दखल न होता तो बेचारे गरीब ग्रामीण भूमिहीन होकर दर-दर की ठोकर खा रहे होते। बनारस पूर्वी किनारे पर रामनगर में जल-परिवहन का काम हो रहा है। ‘फ्रेट-विलेज’ के लिए खूब सारी जमीन अधिग्रहित की जा रही है। रेहडी वालों को उजाड़ा जा रहा है। मल्लाहों के पेट पर लात मारकर पूंजीपतियों को मुनाफा देने वाली बड़ी-बड़ी क्रूज गंगा में चलाई जा रही हैं।

गाँव में किसानों से जमीन लेकर पूंजीपतियों को देनी है। किसान को मजदूर बना देना है और शहर की ओर भगा देना है, फिर शहर में रिक्शा चलाने, ट्रॉली खींचने और ठेला-गुमटी लगाकर दो निवाले अगर वो खा ले रहा है तो उसे यहां से भी विस्थापित करना है। इसे ही वर्तमान राजनीति विकास कहती है। गाँधी इसी अमानवीय विकास के विरुद्ध थे। ‘सर्व सेवा संघ’ उसी गाँधी के ‘हिन्द स्वराज मॉडल’ पर देश को मानवीय, संवेदनशील और दोस्ताना बनाना चाहता है। जाहिर है, यह किसी सत्ता-प्रतिष्ठान को नहीं सुहाता। 

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