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अधर्म का नाश हो**जाति का विनाश हो*(खंड-1)-(अध्याय-39)

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संजय कनौजिया की कलम”✍️
उस योगदान में भी लालू यादव ही अग्रणी रहे..यानी बिहार ने ही, लालू यादव को किंग-मेकर की श्रेणी में खड़ा किया..ऐसा भी नहीं कि लालू यादव प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे..1996 में एक अवसर आया था जब बिहार को प्रधानमंत्री मिलने ही वाला था..उस दौरान जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ही थे, और जनता दल की कुल 46 सीटों में अकेले ही लालू यादव बिहार से 22 लोकसभा सीट जीत कर लाए थे, लेकिन बिहार की ही आंतरिक राजनीति ने, छोटे-छोटे आधार के अपने को बड़े नेता समझने वालों ने, अपनी ज्वलंत महत्वकांक्षाओं की पूर्ति हेतू ऐसा नहीं होने दिया और बिहार को लालू यादव के प्रधानमंत्री बनने का वह सुनहरी अवसर नहीं मिल सका, उसके बाद जनता दल के कर्णाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. देवगौड़ा जो कर्णाटक से जनता दल के लिए 16 सीट्स जीत कर आए थे, प्रधानमंत्री बन गए..यहीं से लालू यादव के सामने अपने व परायों की सही पहचान निकल कर आई..इन्ही सभी कारणों की जद्धोजहद में ऐसी स्थिति उभरी और लालू यादव पर षड़यंत्र के तहत चारा घोटाले मामले को, सी.बी.आई. द्वारा लालू यादव पर थोंप दिया गया..यह वही चारा घोटाला है जिसकी जांच के आदेश, मुख्यमंत्री बतौर स्वयं लालू यादव ने दिए थे..लेकिन लालू विरोधी अपने मकसद में कामयाब होते दिखे, दूसरी और जनता दल के संगठात्मक चुनाव में लालू यादव को अध्यक्ष पद से विमुख करने का भी षड़यंत्र शुरू हो चुका था..यानी लालू यादव को चारो ओर से घेरा जा रहा था..अपने खिलाफ इन्ही सभी स्थितियों को भांपते हुए..5 जुलाई, 1997 को दिल्ली के बिहार निवास पर लालू यादव ने अपने विश्वाशपात्रों सहित, एक नई पार्टी का निर्माण किया जिसका नाम रखा गया, राष्ट्रीय जनता दल और लालू यादव अध्यक्ष बनाये गए..दूसरी ओर बिहार के इतिहास में एक पन्ना तब जुड़ा जब पहली महिला मुख्यमंत्री बिहार को मिली..25 जुलाई, 1997 को जब राबड़ी देवी ने पहलीबार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली..!
यह लालू यादव की कूटनीति का एक ऐसा फैसला था, जिसमे उनके तमाम विरोधियों के अरमान धाराशाही हो गए, विरोधी यही समझ रहे थे, कि लालू यादव की राजनीति को खत्म कर दिया जाएगा लेकिन विरोधियों के वह सपने, सिरे से बिखर गए और तमाम विरोधी मुँहू ताकते रह गए, बल्कि उन्हें वह सब हजम नहीं हो पा रहा था..लालू का यह ऐसा गुप्त फैसला था कि ना तो पार्टी के पुराने नेता अपने को इसके लिए तैयार कर पाए थे, और ना ही विपक्ष के सियासी धुरंधरों को लालू के इस दांव का अंदेशा था..बिहार की मुख्यमंत्री बनने से पहले राबड़ी देवी अपने घर और बच्चों की देखभाल तक ही सीमित थीं, यह बात करना विपक्षियों की हताशा ही उजागर करती थी..जबकि मुख्यमंत्री बनने से पूर्व उस आवास में रहते हुए, राबड़ी देवी बिहार के ग्रामीण अंचल की आम महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती थीं..उस वक्त अख़बारों में बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं में इसे लेकर लेख भी लिखे जाते थे..सियासत की अनिश्चतताओं ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया.. हालांकि लालू यादव के इस फैसले से सबसे अच्छी यह बात रही कि राष्ट्रीय जनता दल परिवार उनके इस फैसले से मजबूती के साथ खड़ा रहा..जिसमे मुख्य दिग्गज थे, डॉ० रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दकी, रामचंद्र पूर्वे जो लालू के हर फैसले में छाया की तरह उनके साथ थे..शुरुआत में राबड़ी देवी को नई जिम्मेदारियों के बीच अनुकूल होने में काफी तख़लीफ़ें हुईं..लेकिन धीरे-धीरे हालात ने उन्हें अभ्यस्त बना दिया..लालू यादव चाहते तो जेल से लौटकर राबड़ी देवी की बजाए खुद मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्हें किंग की बजाए “किंग-मेकर” बनने में आनंद आने लगा..राबड़ी देवी सियासत की माहिर हो गईं थी, बल्कि वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत सहित, जीत दर्ज़ कर पूरे 5 साल तक कार्येकाल चलाया..फिर जनता दल (यू) से नितीश कुमार फिर जीतनराम मांझी उसके बाद फिर नितीश कुमार लगातार, बिहार के मुख्यमंत्री होते आ रहे हैं..लेकिन बिहार के संचालन की मुख्य चाबी, सामाजिक न्याय, समता-समानता के सिद्धांत पर चलने वाली समाजवादी विचारधारा के हाथों में ही रही है, और आपसी खींचतान के बावजूद समाजवादियों की यह ताक़त बिहार में आज भी शक्तिशाली रूप में बरकरार है..!
इससे यह सिद्ध तो हो गया कि बिहार ने मुल्क को अमूल्य रत्न ही नहीं दिए, बल्कि “महात्मा गांधी, डॉ० अंबेडकर और डॉ० लोहिया, जयप्रकाश नारायण” के सामाजिक न्याय व समता-समानता के सिद्धांत की विरासत को भी धूमिल नहीं होने दिया..जिसे पिछले कई दशकों से और अधिक मजबूत करने वाले तथा समाजवाद की जड़ों को बिहार की भूमि में गहरा देने वाले राजनीतिक योद्धा, कर्पूरी ठाकुर, रामसुंदर दास, लालू यादव, राबड़ी देवी, नितीश कुमार, जीतनराम मांझी और फिर लगातार अब तक नितीश कुमार जैसे दिग्गज नेता आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं..आखिर क्यों बिहार के जनमानस ने समाजवादी धारा को स्वीकार करते हुए अंगीकार किया बल्कि बिहार ही नहीं देश के कई प्रांतों ने भी समाजवाद को ही स्वीकारा है..समाजवादी विचारधारा आज भी कहीं सत्ता में है तो कहीं मुख्य विपक्ष के रूप में, तो कहीं अपने वैचारिक कार्येकर्ताओं सहित समाजवादी विचार के वट-वृक्ष को खाद-पानी देते हुए दिखाई देते हैं..आज भी देश का बड़ा जनमानस समाजवाद को इसलिए स्वीकार करता है कि इसी के सिद्धांत में “क्लास और कास्ट” की समस्या को सुलझाने का समाधान है, इसके अलावा भारत औपनिवेशिक ब्रिटिश राज के खिलाफ व्यापक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक हिस्से के रूप में, 20वीं शताब्दी के आरम्भ से स्थापित एक राजनैतिक आंदोलन है..यह तेजी से लोकप्रियता की ओर बड़ा भी है, क्योकिं यह भारत के किसानो-मजदूरों के कारणों को ज़मीदारी-रियासतों और उतरा सज्जनो के खिलाफ प्रेरित रहा है..समाजवाद ने स्वतंत्रता के बाद 1990 के दशक तक भारत सरकार की सैद्धांतिक आर्थिक और सामाजिक नीतियों को आकार दिया, जब भारत एक ओर बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ गया..हालांकि, इसका भारतीय राजनीति में प्रभावशाली प्रभाव बना हुआ है….

धारावाहिक लेख जारी है
लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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