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अधर्म का नाश हो*जाति का विनाश हो*(खंड-1)-(अध्याय 47)

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संजय कनौजिया की कलम”✍️

ये चारो मठ ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित किये गए थे..आदि शंकराचार्य का निधन 32 वर्ष की उम्र में उत्तराखंड के केदार नाथ में हुआ था, लेकिन इससे पहले उन्होंने वैदिक परंपरा से जुडी रूढ़िवादी विचारधाराओं के खिलाफ तथा जैन दर्शन और दर्शन को लेकर कई चर्चाएं की थी..जिसके बाद शंकराचार्य को अद्वैत परंपरा के मठों के मुखिया के लिए प्रयोग की जाने वाली उपाधि माना जाता है..आदि शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था..इस सम्बन्ध में भ्रम फैला हुआ है, इतिहासकार मानते हैं उनका जन्म सातवीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था..लेकिन महृषि दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में दर्शाया है कि आदि शंकराचार्य का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है..दयानन्द सरस्वती 137 वर्ष पूर्व में हुए थे..आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 इसवीं में हुआ और उनकी मृत्यु 820 इसवीं में हुई मतलब वह 32 वर्ष ही जिए..तारीखों में होती बाजीगिरी ईसाई कैलेंडर, व वैदिक विक्रम सम्वत, युधिष्ठिर सम्वत, कलि सम्वत आदि कलेण्डरों के ज्योतिष अंक गणित में खूब उलझी हुई है..यही कारण है कि इतिहास की बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियों की तिथियों और कालों में अंतर पाया जाता है..!
एक हज़ार ईस्वी के आते आते मनुवाद की जड़ें इतनी गहरा दी गई, कि इस समस्या से आधुनिक भारतीय समाज आज भी उबर नहीं पाया है..उन दौरों में शासन भी छोटे-छोटे राज्यों में बंट चुका था..कहीं जाति के आधार पर शासक उत्त्पन हुए तो कहीं शक्ति के अधार पर..जाति के आधार को समझें तो अधिकतर राज्य क्षत्रिय समाज के लोग चलाते थे, या शूद्रों की वह जातियां जो संख्या की बहुलता द्वारा सुसज्जित, मजबूत जातियां हुआ करती थीं..जो वर्तमान में पिछड़ी जातियां जानी जाती हैं..हालांकि शूद्रों से बल और छल द्वारा क्षत्रियों ने इनके राज्यों पर धीरे धीरे कब्ज़ा जमा लिया था..ब्राह्मण राजाओं का भी जिक्र रहा है लेकिन सीमित राज्यों तक..कहीं-कहीं वैश्य समाज का भी जिक्र रहा है, लेकिन वह शूद्र जिन्हे अति निम्न कार्यों से जोड़ा गया था, उनका स्थान शासन संचालन में सदैव रिक्त रहा..मनुवाद के नियम कायदों ने इन शूद्रों के जीवन शैली को पशु भांति बनाये रखा था..लेकिन शासन कोई भी चलाये, वर्चस्व ब्राह्मणो ने अपने पास ही रखा, हर राज्य का राजगुरु ब्राह्मण ही होता रहा, राजशाही राजनीति और कूटनीति में वही दिशा निर्देशक बना रहा और अपनी पूजा पद्दति, मनुवादी नियम-कायदे, संस्कार, संस्कृति, लेखन एवं शिक्षा का कौन सा विषय किसको दिया जाए, आदि..जैसे उच्च व तकनीकी शिक्षा पर ब्राह्मण, सैन्य रण-कौशल क्षत्रिय और वाणिजियक शिक्षा वैश्य तथा निम्नस्तरीय आंकड़ों की सारिणी कि शिक्षा कायस्थ समाज तक रखने की, परम्परा का प्रचलन राज्यों के संचालन में निर्धारित रहता था..राज्यों के बंटे होने के कारण राज्यों की सीमाओं को सुरक्षित रखने हेतू सैन्य संसाधनों के अधिक खर्चे होने के बावजूद, धन- सम्पदा के आधार पर हर राज्य संपन्न था..जिसका कारण सम्राट अशोक द्वारा छोड़ी गई अपार धन-सम्पदाओं के संसाधनों की विरासत थी..जो राज्यों में विभाजित हो चुकी थी, तथा छोटे बड़े हर वर्ग के लोग अपने-अपने किये कार्यों, खेती या अन्य निर्माणों में व्यवस्थ रहते थे..व्यापार ने देश की सीमाओं के बाहर भी पाँव पसार लिए थे..हर राज्य में सैन्य संसाधनों के बाद मंदिरों के निर्माणों या धार्मिक प्रचार-प्रसार में अधिक धन खर्च किया जाता था..धर्म और अधर्म बराबर की गति बनाये हुए थे..एक बहुत ही बड़ी आबादी वर्ग जो शूद्र थे उनपर किये गए उपयोग और प्रयोग सभी मनुवादी सिद्धांत अधर्म का जामा ओढे हुए थे..सामाजिक स्तर पर शूद्रों की दयनीय स्थितियां के आलावा महिलाओं की दुर्दशा के प्रमाणों से भी इतिहास भरा पड़ा रहा है..उस दौर की नारी चाहे वह किसी भी वर्ण की क्यों ना रही हो..रूढ़िवादी और पाखंड से भरी मनुवादी व्यवस्स्था ने नारी के सम्मान को बुरी तरह जकड रखा था..जैसे (1)-जन्म के समय कन्या शिशुओं की हत्या प्रथा प्रचलित थी..(2)-समाज में बाल विवाह की प्रथा थी..(3)-बहुविवाह की प्रथा देश के कई राज्यों में प्रचलित थी..(4)- विधवा पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी..(5)-सती प्रथा बड़े पैमाने में प्रचलित थी..इसके अलावा अनेकों दकियानूसी बंदिशों ने नारी जीवन पर चारोँ ओर से अपना घेरा बना रखा था..उस दौर में धन-सम्पदा का वैभव अधिकतर राजमहल या मंदिरों में दिखाई पड़ता था..!
1000 ईस्वी में इसी वैभव ने आकर्षित किया, पहले इस्लामी विदेशी आक्रांता कंधार-समरकंद के गज़नी से आये लुटेरे “महमूद गजनवी” को..जिसने 17 बार भारत के राज्यों पर हमला कर अपार धन-सम्पदा को लूटकर अपने देश कंधार ले गया..गुजरात के सोमनाथ मंदिर से वह 1400 ऊंटों पर सोना-चांदी-हीरे-मोती तथा अन्य बेशकीमती वस्तुओं को लादकर ले गया था..17वां आक्रमण उसने जाटों को सबक सिखाने के उद्देश्य को लेकर किया था, और जाटों को बुरी तरह हराकर वापस चला गया था..इस लूट ने भारतीय राज्यों की आर्थिक स्थिति पर बहुत ही बुरा असर छोड़ा था..जिससे राज्यों में आर्थिक बदहाली आ जाने से आम लोगों के सामाजिक जीवन पर और अधिक बुरा प्रभाव पड़ने लगा था..राज्यों की ओर से राजस्व की पूर्ति हेतू..आमजन पर अतिरिक्त करों का बोझ लादा जाने लगा..धीरे-धीरे राज्यों की आर्थिक स्थिति सुधरने ही लगी थी, कि 11वीं शताब्दी में दूसरा इस्लामी आक्रांता “शाहबुद्दीन उर्फ़ मुईजुद्दीन मोहम्मद गौरी” आ धमका..उसका पहला आक्रमण मुल्तान पर 1175 ईस्वी में हुआ, और युद्ध जीता..पाटन (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद गौरी ने 1178 ई० में आक्रमण किया किन्तु गौरी बुरी तरह पराजित हुआ..उसके बाद “मोहम्मद गौरी” और “पृथ्वीराज चौहान” के बीच तराईन के मैदान में 18 युद्ध हुए..1191 ई० में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में मोहम्मद गौरी बुरी तरह पराजित हुआ..गौरी भारत पर कब्ज़ा करना चाहता था परन्तु उस काल में भारत के सबसे ज्यादा शक्तिशाली राजा…..

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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