सिंधु भट्टाचार्य
इसी साल अप्रैल में देश के स्टील MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) के प्रतिनिधियों ने वित्त मंत्रालय से गुहार लगाई कि उनकी आजीविका को नष्ट होने से बचा लिया जाए। चीन से हो रहे सस्ते आयात की वजह से यह लगातार खतरे में है। इस सेक्टर में ‘कोल्ड रोल्ड पत्ता’ बनाने वाली 500 रोलिंग मिलें आती हैं। कोल्ड रोल्ड पत्तों का इस्तेमाल रसोई के बर्तन वगैरह बनाने में होता है। प्रतिनिधियों की अपील थी कि चीन से हो रहे आयात पर भारी लेवी लगाई जाए।
अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस
यह अपील कई वजहों से महत्वपूर्ण है।
- इस सेक्टर में करीब चार लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
- चीन से हो रहा आयात 40 फीसदी तक कम कीमतों के चलते घरेलू बाजार में देसी उत्पाद को कॉम्पिटिशन से बाहर कर देता है। यह आयात कुल मार्केट के एक चौथाई तक पहुंच चुका है।
- अगर चीनी आयात ऐसे ही जारी रहा तो पत्ता यूनिटें देसी बर्तन निर्माताओं को अपना उत्पाद बेच नहीं पाएंगी और धीरे-धीरे उन्हें अपनी दुकानें बंद करनी पड़ जाएंगी। वैसे भी यह इंडस्ट्री बेहद कम मार्जिन (करीब 500-2000 रुपये प्रति टन) पर चल रही है।
- छोटी और मध्यम स्टील कंपनियों को अपना वजूद खतरे में दिख रहा है, उनकी गुहार सुनने की जरूरत
चीन और अन्य देशों की अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के खिलाफ कदम उठाकर भारतीय उद्योगों की रक्षा करने की गुहार लगाने के मामले में पत्ता यूनिटें अकेली नहीं हैं। विदेश से, खासकर चीन से भारतीय बाजारों में डंप किए जा रहे मामलों से डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरर्स को बचाने का जहां तक सवाल है तो 2020 के बाद से वित्त मंत्रालय के स्तर पर इसमें हैरान करने वाली सुस्ती दिखाई देती है। हालांकि विदेश से सस्ता माल डंप किए जाने के खिलाफ कार्रवाई करने और उन पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने की प्रक्रिया भारत में बिल्कुल स्पष्ट और पहले से स्थापित है।
- सबसे पहले प्रभावित इंडस्ट्री या ट्रेड बॉडी कॉमर्स मिनिस्ट्री के अंतर्गत आने वाले DGTR (डायरेक्टर जनरल ट्रेड रेमेडीज) से अपील करती है।
- -DGTR करीब एक साल चलने वाली अपनी जांच-पड़ताल पूरी करने और इस दौरान सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद अपनी सिफारिशें देता है। वे सिफारिशें अमल के लिए वित्त मंत्रालय को भेजी जाती हैं।
सेंटर फॉर डिजिटल इकॉनमी पॉलिसी रिसर्च (सी-डेप.ऑर्ग) की ओर से की गई एक हालिया स्टडी दिखाती है कि 1991 से 2020 के बीच भारतीय इंडस्ट्री की रक्षा के लिए एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की एक फीसदी सिफारिशें भी वित्त मंत्रालय द्वारा खारिज नहीं की गईं। दूसरे शब्दों में जब भी DGTR ने देसी उद्योग धंधों की रक्षा के लिए लेवी लगाने या लेवी शुल्क की अवधि बढ़ाने की सिफारिश की, उसे अमल में लाया गया। लेकिन सितंबर 2020 और अक्टूबर 2022 के बीच DGTR की ओर से की गई हर तीन में से दो सिफारिशें वित्त मंत्रालय ने खारिज कर दीं।
- दो वर्षों की इस अवधि में DGTR ने 110 मामलों में एंटी डंपिंग लेवी लगाने की सिफारिश की।
- वित्त मंत्रालय इनमें से महज 40 केसों में लेवी लगाने को तैयार हुआ।
- जिन 70 मामलों में DGTR की सिफारिशें खारिज कर दी गईं, सी-डेप.ऑर्ग के मुताबिक, उनमें से 50 मामले चीन से सस्ता माल डंप किए जाने के थे।
वैसे सरकार ने एक अच्छा कदम इस बीच यह उठाया कि 31 अगस्त को एक नोटिफिकेशन के जरिए लैपटॉप और पर्सनल कंप्यूटर्स के आयात पर रोक लगा दी। इनका बड़ा हिस्सा चीन से ही आयात हो रहा था। लेकिन अन्य आयातों का ज्यादातर हिस्सा जस का तस है।
एंटी डंपिंग लेवी लगाना दरअसल फेयर ट्रेड सुनिश्चित करने का एक साधन है। यह डंपिंग के जरिए व्यापार में लाई जा रही गड़बड़ियों को दूर करता और सही व्यापार के तौर-तरीकों को फिर से स्थापित करता है। सबसे बड़ी बात, यह ड्यूटी देश के अंदर एक मजबूत इंडस्ट्री को खड़ा होने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, पेंसिलिन-जी का मामला लीजिए जो न्यूमोनिया और डिप्थीरिया की प्रमुख दवा है।
- DGTR ने करीब एक साल की लंबी जांच के बाद 2011 में चीन और मेक्सिको से होने वाले पेंसिलिन-जी के आयात पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने की सिफारिश की थी।
- इन दोनों देशों से डंपिंग के कारण लोकल मैन्युफैक्चरर्स अपनी क्षमता के मुताबिक उत्पादन नहीं कर पा रहे थे और उनकी प्रॉफिटेबिलिटी पर बुरा असर पड़ रहा था।
- वित्त मंत्रालय एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने को राजी नहीं हुआ।
- अब स्थिति यह है कि सी-डेप.ऑर्ग के मुताबिक पेंसिलिन-जी का घरेलू उत्पादन पूरी तरह बंद हो गया है। आज भारत इस दवा के मामले में पूरी तरह आयात पर निर्भर हो चुका है।
भारत अपनी मूल्य संवेदनशील प्रकृति और घरेलू बाजारों के बड़े आकार के कारण डंपिंग के काफी अनुकूल माना जाता है। हम विदेशी कंपनियों के लिए बड़ा आकर्षण इसलिए भी हैं कि भारतीय उपभोक्ता मूल्यों के थोड़े अंतर से भी प्रभावित हो जाते हैं। इसके अलावा भारत में सप्लायर्स और ग्राहकों के बीच उस तरह का जुड़ाव भी नहीं है जैसा जापान या कोरिया जैसे देशों में दिखता है जहां सस्ता आयात उपलब्ध होने के बावजूद स्थापित सप्लायर्स शायद ही कभी बदले जाते हों।
झिझक छोड़ने की जरूरत
इन हालात को देखते हुए और भारतीय उद्योग जगत की ओर से लगाई जा रही संरक्षण की गुहार को सुनते हुए सरकार को अपनी झिझक छोड़कर छोटे मैन्युफैक्चरर्स की मदद में आगे बढ़ने की जरूरत है। एक तरफ तो सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रॉडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम शुरू कर रही है और दूसरी तरफ उसने चीन व अन्य देशों से हो रही डंपिंग से लघु उद्योगों की रक्षा करने के अपने दायित्व से चुपचाप पल्ला झाड़ लिया है। वित्त मंत्रालय को DGTR की सिफारिशें संज्ञान में लेने की जरूरत है जो काफी जांच-पड़ताल के बाद भेजी जाती हैं और घरेलू बिजनेस को जरूरी सुरक्षा मुहैया कराती हैं।