किसान जानता था
एक दिन में उर्वरा नही होती
बंजर जमीन
एक दिन में प्रस्फुटित नही होता बीज
एक दिन में तो समतल भी नही होता खेत
किसान जानता था
खोदनी पड़ेगी पथरीली जमीन
अपनी उंगलियों से
अपने हाथों से काटनी होंगी कंटीली झाड़ियां
चुनने पड़ेंगे कांटे
हटानी होगी खरपतवार
झेलनी होगी मौसमों की मार
किसान दिल्ली जाने से पहले
आश्वस्त था
कि बंजर पथरीली राजनीतिक जमीन को
पथरीला नही रहने देंगे
हटा देंगे कंटीली झाड़ियां
नरमी से तर कर देंगे हर जर्रा
लौट आया है किसान
सब आंखों में नमी छोड़
पथरीली जमीन में उम्मीदो के बीज डाल
कंटीले कानफोड़ू (मीडिया) कांटो की खरपतवार को हटा
किसान
जिस जमीन पर खड़ा होता है
उसे प्रेम से सींचता है
प्रेम उगाता है
किसान को
सबसे खराब लगता है जमीन का बंजर हो जाना
किसान को सबसे खराब लगता है
अपनी सरजमीं पर खरपतवार का फैलते जाना
वीरेंदर भाटिया