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किसान आंदोलन की आंच

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राकेश श्रीवास्तव

किसान आंदोलन से सर्वाधिक प्रभावित पश्चिमी क्षेत्र मे अट्ठावन सीटों के मतदाताओं ने लोकतंत्र के मंदिर के लिए अपनी अपनी पसंद के उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम मे बन्द कर दिया है।देखना होगा कि किसान आंदोलन की आंच का कितना असर पड़ता है।उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इन सीटों पर 60.14% मतदान हुआ है जबकि 2017 के चुनाव में यह 64.22 प्रतिशत था।शामली जिले मे सबसे अधिक 69.42 प्रतिशत जबकि गाजियाबाद में केवल 54.77% मतदान हुआ है।कैराना जहां से देश के गृहमंत्री ने अपने प्रचार का आगाज किया था,सबसे अधिक 75.12 प्रतिशत मतदान हुआ है।छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान अधिकांशतः शांतिपूर्ण रहा। मेरठ के सरधना मे अवश्य बीजेपी के हाई प्रोफाइल प्रत्याशी संगीत सोम के विरुद्ध पीठासीन अधिकारी को थप्पड़ मारने के आरोप में एफ आई आर दर्ज की गई है।कुछ अन्य स्थानों से भी मारपीट की खबरें हैं।अबकी चुनाव में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम ना होने की शिकायतें भी सामने आ रही हैं। इसके अलावा ईवीएम की खराबी की भी बहुत खबरें हैं। 151 बूथों पर बैलट कंट्रोल यूनिट बदलनी पड़ी तथा 374 स्थानों पर गडबड़ी की शिकायतों के चलते वीवीपैट भी बदलनी पड़ी।

अभी तक उपलब्ध संकेतों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों के मुकाबले अधिक रहा।मतदाताओं के रूझान को देखकर लगता है की धार्मिक विभाजन की बातें जनता ने नकार दी हैं।किसान आंदोलन के साथ साथ ही साथ महंगाई,बेरोजगारी,कानून व्यवस्था इत्यादि मुख्य मुद्दे रहे।किसान आंदोलन की आंच की कुछ गर्मी वोट मे अवश्य परिवर्तित हुई होगी परंतु सपा रालोद गठबंधन जिस तरह एकतरफा मतदान की आशा कर रहा था वह नही दिख रहा है।इसके अतिरिक्त बसपा का कोर मतदाता तो पार्टी के नेतृत्व के साथ खड़ा रहा होगा परंतु बसपा द्वारा बीजेपी के प्रति नरम रवैया कहीं ना कहीं मतदान मतदाताओं में गठबंधन के प्रति रुझान दिखा रहा था। कांग्रेस आश्चर्यजनक रूप से कुछ स्थानों पर मुख्य संघर्ष मे दिख रही है।

बीजेपी ने धारा 370 व राम मंदिर निर्माण के माध्यम से जनता मे अपनी गहरी पैठ बनाई थी परंतु कोरोना काल की त्रासदी एवं किसान आंदोलन के प्रति उसके रवैये ने इन दोनों बढ़त को समाप्त कर दिया।उसके एक वर्ग में सत्ता का अहंकार और जनता की समस्याओं के प्रति उदासीनता ने लोगों को धरातल के विषयों पर सोचने को मजबूर किया है।आने वाले समय में सरकार किसकी बनती है यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है परंतु यह दिखता है कि टक्कर कांटे की है।पहले चरण की 58 सीटों में बीजेपी के लिए 53 सीटें बचा पाना बहुत बड़ी चुनौती है। उसके बहुत से दिग्गज कड़े मुकाबलों में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए संघर्षरत हैं।विशेष रुप से रक्षा मंत्री के पुत्र पंकज सिंह,संगीत सोम,कल्याण सिंह के पौत्र मंत्री संदीप सिंह,कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी,सुरेश राणा,राज्य मंत्री अतुल गर्ग,अनिल शर्मा, पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य आदि।बिजली कर्मचारियों के पीएफ घोटाले मामले में विशेष चर्चा में आए ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को मथुरा में कांग्रेस के चार बार के विधायक रहे कांग्रेस के प्रदीप माथुर के सामने सीट बचाने की चुनौती है।

राकेश श्रीवास्तव

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