,मुनेश त्यागी
हम पिछले कई वर्षों से देखे चले आ रहे हैं कि हमारे समाज में भोले बाबाओं संतों के समागम और सत्संगों की संख्या बढ़ती जा रही है। लाखों करोड़ों लोग लगातार इन बाबाओं के सत्संगों में जाते रहते हैं। अब इन सत्संगों ने कई आपदाओं का रूप धारण कर लिया है। इन सत्संगो में पिछले कई वर्षों में हजारों लोग अकाल मौत के शिकार हो चुके हैं। यह भी एक हकीकत है कि इन सत्संगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
यहीं पर सबसे बड़ा कारण है कि आजादी के बाद और मुख्य रूप से पिछले बीस पच्चीस सालों से इनकी संख्या बढ़ती जा रही है और लोग उन में बढ़-चढ़ का हिस्सा ले रहे हैं। जब इनके कारणों पर सोचते हैं तो हम पाते हैं कि ये बाबा लोग, लोगों से सीधे जुड़े हुए हैं। करोड़ों लाखों लोग जो आज भी पिछड़े, वंचित, गरीब, बेरोजगार, अनपढ़, अशिक्षित, उपेक्षित, असुरक्षित, कमजोर और भेदभाव और छुआछूत के शिकार बने हुए हैं, वे लोग ही इन बाबाओं की शरण में जाते हैं।
ये तमाम बाबा तर्क पर नहीं, बल्कि भावनाओं पर काम करते हैं। एक सोची समझी कार्य प्रणाली से वे कई पीढियां के भगवान बन गए हैं। भारतवर्ष में यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ये बाबा अपने समागम में जनता से सीधे-सीधे बात करते हैं, उनकी सुरक्षा पर, उनकी गरीबी पर, उनके साथ हो रहे शोषण जुल्म पर, उनके पिछड़ेपन पर बात करते हैं, इसलिए भारत के उत्तरी इलाकों में यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
वैसे यह दृश्य केवल भारत में ही नहीं फूल फल रहा है बल्कि सारी दुनिया में उनका साम्राज्य फैलता जा रहा है। अमेरिका में उन्हें कैरिसमेटिक कहा जाता है, जिसमें कहा जाता है कि पवित्र आत्मा, आदमी के जीवन में करिश्मा करती है। वहां लोगों को बताया जाता है कि गरीब धनवान बन जाएंगे, लंगड़े चलने लगेंगे, अंधे देखने लगेंगे। तमाम देशों में वे इतने ताकतवर बन गए हैं कि वे राजनीतिकों को पैसा देते हैं जो उनकी हां में हां मिलते हैं, उन्हें करो और टैक्सों में छूट दिलाते हैं और उन्हें कानून के शिकंजों से बचाते हैं।
मुस्लिम दुनिया में इन पवित्र उपदेश देने वालों ने नौजवान मुसलमानों के दिलों दिमाग में यह बात मजबूती से बैठा दी है कि पूरी दुनिया उनके खिलाफ है, उन्हें अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए, उन्हें अपने विश्वासों के सामने आत्म समर्पण कर देना चाहिए, तब उन्हें दुनिया के पीछे नहीं दौड़ना पड़ेगा, बल्कि दुनिया उनके ही पीछे दौड़ेगी।
इन सब धर्म गुरुओं को सभी राज सत्ताओं ने फलने फूलने का भरपूर मौका दिया है और इनके अवैधानिक का नाम को वैधता प्रदान की है। इस सोच को अमलीजामा पहनाया है और इस पर जोर दिया गया है कि जो जीवन में है, वही सच है। वह सच नहीं है जिसकी व्याख्या विज्ञान, विवेक और तर्क द्वारा की जाती है। इन्होंने वैज्ञानिक सोच विचार, संस्कृति और आविष्कारों का विरोध किया है। इन्होंने आत्मा और भूत प्रेत को मान्यता प्रदान की है। हजारों साल तक यह सब होता रहा। इसी अंधविश्वासी सोच को बढ़ावा दिया जाता रहा। इसी वजह से अधिकांश लोगों ने तर्क, विज्ञान, विवेक, विश्लेषण, खोजने में और आविष्कारों में विश्वास करना ही छोड़ दिया है।
आज जब अधिकांश सामंती, पूंजीवादी, अंधविश्वासी और धर्मांध समाजों में सब कुछ दरक रहा है, लोगों की समस्याओं का पर्याप्त समाधान नहीं हो रहा है, जब सभी प्रयास असफल होते जा रहे हैं, जब तर्क और विवेक को छोड़ दिया गया है, तब निराश होकर, बहुत सारे निराश लोगों द्वारा ऐसे ही विशिष्ट लोगों यानी बाबाओं को खोजा जाता है, जो लोगों को अतार्किकता की रहस्यमई दुनिया में ले जाते हैं, जो आसमानी, तार्किक और अवैज्ञानिक बातें करते हैं। यही वह दुनिया है जिस पर इन पवित्र बाबाओं और माताओं ने कब्जा कर लिया है। उनके अनुयायियों के लिए यही असली संत बाबा बन बैठे हैं। जबकि इन बाबाओं की बातों पर विश्वास नही करने वाले लोगों द्वारा इन बाबाओं छली, कपटी और दम्भी कहा जाता है।
कई बुद्धिजीवी लोग जो इन पवित्र आदमियों की जीवनियां लिखते हैं, वे आशा करते हैं कि ये पवित्र आत्माएं बुद्धिमानी पूर्वक और तर्कसंगत तरीकों से कम करें। यह पहुंच कुछ लोगों तक ही काम करती है। अधिकांश लोग ऐसा नहीं मानते और ना ही ऐसा सोचते हैं।
आम जनता सोचती है कि उन्हें इन गुरुओं से भावनात्मक संतुष्टि मिले। ये पवित्र आत्माएं लोगों को ऐसा एहसास कराती हैं कि “आप खास आदमी हैं, आप पवित्र लोग हो, आप देवीय जाति के लोग हो।” वे जनता को यह एहसास करा देते हैं कि “यदि आप धनवान नहीं है तो कोई बात नहीं, यदि आप सुंदर नहीं है तो क्या हुआ, यदि आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो कोई बात नहीं, यदि भाग्य धोखा देता है तो कोई बात नहीं, आपके पास पूरे अवसर हैं, आपके सारे काम बन जाएंगे, यदि आप सही गुरु की यानी बाबाओं शरण में जाओगे।”
अपनी इन्हीं सोची समझी चालों ओर कारनामों से ये बाबा लोगों का दिल जीतते हैं, हार मान चुके लोगों के दिलों में जीत की भावना भरते हैं, वे लोगों में कामयाबी, नियंत्रण और सुरक्षा की भावना भरते हैं, उनकी जिंदगी में भरी निराशा दूर करते हैं, उन्हें आश्वासन देते हैं, उन्हें आशावान बनाते हैं और उनमें झूठा आत्मविश्वास भर देते हैं, उन्हें घमंडी बना देते हैं।बस इसके बाद यही लोग बार-बार उनकी नकल करते हैं, दूसरे लोगों लोग भी इनकी शरण में जाकर नाचने गाने लगते हैं और लोग अपने को भाग्यशाली समझने लगते हैं।
इसके बाद ये हताश, निराश, असफल और जीवन में हार मान चुके लोग वही करने लगते हैं जो ये बाबा उनसे करने को कहते हैं। फिर जब बाबा इन लोगों की तरफ देखते है, हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं तो ये लोग अपने को भाग्यशाली और उनके कृपा पात्र समझने लगते हैं और सारी जिंदगी के लिए उनके दीवाने बन जाते हैं।
क्योंकि इन गरीब लोगों के साथ समाज में, स्कूल में, ऑफिस में और घर में ऐसा मधुर और मानवीय व्यवहार नहीं किया जाता है, इन लोगों की कोई परवाह नहीं करता है, बस यहीं ये लोग समझने लगते हैं कि बाबा उनको समझता है, उनकी परवाह करता है, उनके दुख दर्द को दूर करने की बात करता है और वह लोगों को एहसास करा देता है कि “आपकी कोई कीमत है।” वह लोगों के जीवन के भार को कम करता हुआ दिखाई देता है और इस प्रकार लोग हमेशा के लिए उसके होकर रह जाते हैं, उसके बन जाते हैं, फिर जो वह कहता है, लोग वही करते हैं, वही कहने लगते हैं और उसके बाद वे बाबा का कहा कुछ भी कर सकते हैं।
यह सब होने के बाद, इनके भक्तगण लोग इनके इतने दीवाने हो जाते हैं कि वे अपने मां-बाप, गुरुओं और जीवन सुधरने वालों की भी बात भी नहीं सुनते। फिर लोग समझने लगते हैं कि उनकी सारी समस्याएं गुरु कृपा से दूर हो गई है, अदालतों में लंबित केस सुलझ गए हैं, नौकरी मिल गई है, शादी हो गई है मनचाही बीवी मिल गई है, बच्चों की शादी हो गई है, उनका व्यापार बढ़ गया है, उनकी आमदनी बढ़ गई है ,उसे पर पैसों की बारिश हो रही है, उसे समाज में उच्च स्थान और सम्मान मिल गया है, उसकी तमाम असुरक्षाएं खत्म हो गई हैं।
ये बाबा कभी भी तर्क, विवेक और विज्ञान ज्ञान विज्ञान की बातें नहीं करते, उनके सामने मौजूद समस्याओं के कारणों की चर्चा नहीं करते, वे हमेशा लोगों की असुरक्षा और अन्याय की बात करते हैं, उन समस्याओं को दूर करने की बात करते हैं जो समस्याएं लोगों को परेशान करती आ रही हैं। ये बाबा यह सब कुछ जान पूछ कर करते हैं ताकि लोगों का विश्वास उसमें बना रहे और यह और ज्यादा मजबूत होता रहे और फैलता रहे।
अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए ये बाबा विशेष दिनों, मौकों और त्योहारों का इस्तेमाल करते हैं ताकि उनकी पहुंच लोगों में बनी रहे। अपने समागम में ये बाबा लोग गाना बजाना, नाचना-गाना करते हैं, कसरत करवाते हैं, गीत संगीत और रोशनियों का मनमोहक प्रबंध करते हैं। ख़ान पान का भी इंतजाम करते हैं। यह सब सामूहिक रूप से किया जाता है। इससे लोगों को लगने लगता है कि जैसे यहां तो सब कुछ बदल गया है और वे एक नई दुनिया में आ गए हैं।
यह सब देख सुनकर, महसूस करके लोग इनके दीवाने बन जाते हैं। फिर सारी जिंदगी ये बाबा इन लोगों के साध्य और साधना बन जाते हैं। फिर ये लोग उनके बिना नहीं रह सकते। इसके बाद ये बाबा लोग अपने भक्त लोगों की अपने प्रति दीवानगी का फायदा उठाते हैं। ये भक्त लोग इन बाबाओ की भेड़ बकरियां बन जाते हैं, जो बाबा कहते हैं और चाहते हैं वही ये लोग करने लगते हैं।
उसके बाद लोगों की यह भीड़, इन बाबाओं के दरबार को धन-धान्य, सोने, चांदी, हीरे, मोतियों और मिठाइयों से भर देती है, इनके अंबार लगा देती है। इसके बाद ये बाबा और माताऐं समाज के लोगों और समाज की नजरों में छा जाते हैं। बहुत सारे कमजोर राजनीतिक लोग उनके चेले बन जाते हैं, ताकि इन बाबाओ को खुश करके उन्हें मनचाही वोट मिल सके और इस प्रकार धीरे-धीरे यह बाबा लोग अपनी प्रसिद्धि और ताकत बढ़ा लेते हैं। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि इन्हीं सब कारणों से इन बाबाओं की अन्धभक्ति का साम्राज्य लगातार बढ़ रहा है और फलता-फूलता जा रहा है।