अग्नि आलोक
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साम्प्रदायिकता के पीछे का खेल

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अजय असुर

दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में 16 अप्रैल हनुमान जयंती के दिन निकाली जा रही शोभायात्रा पर पथराव, फायरिंग, आगजनी और हिंसा की घटना हुई। हुवा ये था कि तेज आवाज में डीजे लगाकर हाथों में हथियार से लैस तकरीबन 200 लोगों का हुजूम जहांगीरपुरी मोहल्ले की गलियों में नारे लगाते हुए दोपहर से ही जुलूस में घूम रहे थे। शोभायात्रा में शामिल लोग पिस्तौल और तलवार लहराते हुए देखा गया, जिसकी पुष्टि विभिन्न टीवी चैनलों पर दिखाए गए वीडियो से होती है। जोरदार और आक्रामक नारे लगाए जा रहे थे। यह स्थानीय लोगों द्वारा आयोजित जुलूस नहीं था, बल्कि बजरंग दल की युवा शाखा द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें क्षेत्र के बाहर के अधिकांश लोग शामिल थे।
यह शोभायात्रा पहले ही ब्लॉक सी जहांगीरपुरी में उस क्षेत्र के दो चक्कर लगा चुका था, जिसमें प्रमुख रूप से बंगाली भाषी मुसलमान रहते हैं। जुलूस जब  तीसरा चक्कर लगा रहा था तब यह घटना हुई। यदि स्थानीय मुस्लिम निवासियों द्वारा जुलूस पर हमला करने की साजिश होती, जैसा कि मीडिया और भाजपाई बता रहें हैं, तो हमले पहले ही हो चुके होते। जबकि यह घटना उस समय हुईं जब जुलूस एक मस्जिद के बाहर ठीक उसी समय रुक गया जब रोजा रखने वाले मस्जिद में नमाज के लिए जमा हो रहे थे। .
इस घटना के बाद  दिल्ली ‌BJP अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने इन इलाकों में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के होने की बात कही और वहां के निवासियों को गैर कानूनी काम में लिप्त बताया। फिर इसके बाद क्या आर एस एस की आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर माहौल बना दिया कि जहांगीरपुरी बांग्लादेशियों और रोहिंग्या के प्रवासियों का गढ़ है। इसके बाद केन्द्र सरकार के मातहत दिल्ली नगर निगम ने जहांगीरपुरी के सी ब्लाक में भाजपा ब्रैंड बुलडोजर को लेकर मकान और दुकान गिराना शुरू कर दिया और बताने लगे कि ये गिराए जा रहे दुकान और मकान अवैध है इसलिये गिराया जा रहा है।
जहांगीरपुरी के मुसलमानों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या का बताया जा रहा है, क्या ये बात सही है?जहांगीरपुरी के सी ब्लॉक में घुसते ही कबाड़ का ढेर (पॉलिथिन, प्लास्टिक, कांच और गंदगी) हर तरफ कचरा और तीखी बदबू। गलियां इतनी संकरी कि दो लोग एक साथ ना निकल पाएं। जहांगीरपुरी सी ब्लॉक मुस्लिम बहुल इलाका है, लेकिन यहां बीच-बीच में कई घर हिंदुओं के भी हैं। हिंदू भी बंगाल मूल के ही हैं। इन बस्तियों में करीब 80% आबादी उत्तर प्रदेश और बिहार मूल की है, वहीं करीब 20% आबादी पश्चिम बंगाल से है। पश्चिम बंगाल से आने वाले लोग हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों से थे। इन्हीं 20% आबादी को ये सांप्रदायिक लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या बताते हैं। जहांगीरपुरी में रहने वाले पश्चिम बंगाल के हल्दिया, मेदिनीपुर, मालदा, उत्तरी चौबीस परगना, हावड़ा जैसे जिलों से यहां आकर बसे हैं। लोगों की ये बसावट हाल फिलहाल की भी नहीं है। यहां जिनका घर है वो करीब 50 साल पहले से यहां रह रहे हैं। बस्ती के बाशिंदे बताते हैं कि उनकी जिंदगी में ये पहला मौका है जब हिंदू-मुस्लिम के नाम पर झगड़ा हुआ है।
जहांगीरपुरी में रहने वालों के बाप-दादा उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल से काम करने के लिए दिल्ली आए और यहीं बस गए। दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) के पूर्व कमिश्नर एके जैन के मुताबिक ‘दिल्ली को झुग्गी मुक्त करने के लिए 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिए पुनर्वास योजना शुरू की थी। इसके तहत 40 कॉलोनियों को बसाया गया था और जहांगीरपुरी भी इसी में से एक कॉलोनी थी। दिल्ली में यमुना नदी के किनारे, रिंग रोड, सड़कों पर कई सारे लोग झुग्गियों में रहा करते थे। झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए 25 गज के प्लॉट बहुत सस्ती दरों पर दिए गए थे। 1970 के बाद से दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी ने ही इसकी प्लानिंग की थी।’
हकीकत क्या हैयदि वाकई में ये दुकान और मकान अवैध हैं तो 1975 से अभी तक क्या कर रही थी दिल्ली नगर निगम और 2014 से बुलडोजर वाली भाजपा सरकार और जहांगीरपुरी में रहने वाले इस देश के नागरिक नहीं रोहिंग्या और बांग्लादेश के घुसपैठिये हैं तो ये सब देश की राजधानी में खुलेआम क्या कर रहें हैं? इन्हें तो जेल के भीतर या इनको पकड़कर वापस इनके देश भेज देना चाहिये। 
लगातार घटती चली आ रही इस तरह की घटना के क्रम में आगे की कड़ी में ये जहांगीरपुरी की घटना है। ये सारी घटनायें पूरी तरह से सोची समझी और प्रायोजित घटना है। ऐसी घटनाऒं के पीछे शासक वर्ग की सोच एकदम साफ है कि बढ़ती महँगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से लड़ने के बजाये आपस में ही लड़ जाये इसके लिये शासक वर्ग ने गोटी फेंक दिया है और उन्हीं के दांव-पेंच में फंसकर असल मुद्दे गौण हो जा रहे हैं। जनता को लड़ना था इस पूंजीवादी सरकार से महँगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के लिये और नतीजा आपके सामने।  साम्प्रादायिकता का मुद्दा देने से शासक वर्ग न्यायालय की गिरती साख को भी जनता के बीच में बचाने में कामयाब हुई है। शासक वर्ग की एक तीर से कई निशाने साध रही है। ये पूंजीवादी व्यवस्था भी साफ-साफ बच गयी और न्यायालय की गरिमा भी जनता के मन में बढ़ गयी। इस बुलडोजर सरकार का कुछ नहीं करेगी ये सर्वोच्य न्यायालय, बस ज्यादा से ज्यादा फटकार लगा देगी इस गैर संवैधानिक कार्य के लिये और इसी फटकार में ही जनता गदगद और अगले 5 साल तक चुनाव होने का इंतजार करेगी।
*अजय असुर**राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा*

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को
मत छेड़िये,
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को
मत छेड़िये.

हममें कोई हूण
कोई शक
कोई मंगोल है,
दफ़्न है जो बात
अब उस बात को
मत छेड़िये.

ग़लतियाँ कोई करे जुम्मन का घर ही क्यों जले,
ऐसे नाजुक वक्त में
हालात को
मत छेड़िये.

हैं कहाँ हिटलर
हलाकू,जार
या चंगेज़ ख़ाँ,
मिट गये सब
क़ौम की औक़ात को
मत छेड़िये.

छेड़िये इक जंग
मिल-जुल कर
गरीबी के ख़िलाफ़,
दोस्त!मेरे मजहबी
नग्मात को
मत छेड़िये.

अदम गोंडवी

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