अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

तीनों नए कृषि बिल वापस आखिरकार झुकी सरकार

Share

के. पी.  मलिक 
गुरु पर्व के दिन लोग को सुबह चाय की चुस्कियां ले रहे थे। तो प्रधानमंत्री मोदी ने टेलीविजन पर आकर देश के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की तो कुछ लोगों को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था। लगातार मेरे फोन की घंटी धंनधना रही थी। कि क्या वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी तीनों कृषि बिल वापस ले सकते हैं? जी हां आखिरकार सरकार ने बिल वापस ले लिए हैं, 
हालांकि प्रधानमंत्री की घोषणा पर किसान संगठनों को अभी भी संशय बना हुआ है और उन्होंने संसद में कानूनों के रद्द होने तक आंदोलन जारी रखने की घोषणा की है। उनका कहना है कि सरकार अध्यादेश लाकर तीनों कानूनों की वापसी सुनिश्चित करे। सरकार के इस निर्णय से संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में अध्यादेश सर्व सम्मति से पारित होने की शत प्रतिशत गारंटी है। 
हालांकि सब कुछ लुटाकर होश में आए, तो क्या आये? मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कुछ ऐसे कि है कि इस फैसले का स्वागत पूरे देश में हो रहा है और होना भी चाहिए। लेकिन उनसे यह भी अपेक्षा है कि आइंदा वो ऐसे फैसले नहीं लें, जिससे कि देश की आर्थिक रफ्तार, कृषि उत्पादन सब कुछ ठहर जाए। अपने अनुभवहीन सलाहकारों और चाटूकारों को सत्ता की पहुंच से दूर रखें। अब सवाल है कि जान, माल का जो नुकसान किसानों ने उठाया है, उसकी भरपाई कौन करेगा? 
सवाल तो यह भी है कि यदि उत्तर प्रदेश में चुनाव नहीं होते, तो भी क्या सरकार यह निर्णय लेती? आंदोलन के दौरान किसानों ने जो नुकसान उठाया है, उसकी भरपाई कैसे होगी? 14 महीने पहले केंद्र सरकार द्वारा लाये गए किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों को अमान्य करते हुए उनके विरोध में किसानों के विभिन्न संगठन देश भर में उसी समय से लगातार और दिल्ली के सभी बॉर्डर्स पर पिछले लगभग एक साल से इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। 
करीब एक दर्जन बार सरकार ने किसानों के सभी संगठनों के वरिष्ठ नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया, लेकिन एक भी बार मुद्दे पर ठीक से बातचीत नहीं हो सकी। उसके बाद सरकार ने किसानों को हर तरह से आंदोलन खत्म करने के लिए दबाव बनाने के अलावा कुछ राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोगों ने किसानों को बदनाम करने की कोशिश की। हाड़-मांस गला देने वाली सर्दी, जिस्म का पानी सुखा देने वाली गर्मी, और विकट बरसात में खुले आसमान के नीचे, कई बाधाओं, धमकियों के बीच अपने परिवार की परवाह किये बिना, हजारों, लाखों का नुकसान सहकर आंदोलन में बैठे लाखों किसान शांतिपूर्वक अहिंसात्मक आंदोलन करते रहे। इस आंदोलन में 650 से ज्यादा किसानों की शहादत के बाद भी सरकार ने एक बार भी किसानों के प्रति संवेदना नहीं जताई। 
अब जब भाजपा की पहले पश्चिम बंगाल में और फिर हाल ही में हुए उपचुनावों में हार हुई और उसे लग गया कि यूपी जीतना अब उसके लिए आसान नहीं है, तब कहीं जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को गुरु पूर्णिमा के दिन भावनात्मक लहजे में किसानों से माफी मांगते हुए कृषि कानूनों को इसी शीत सत्र में वापस लेने का ऐलान किया है। कुल मिलाकर किसानों के सामने केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और प्रधानमंत्री ने तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा के साथ ही आंदो किसानों के हठ के आगे आखिरकार मोदी सरकार को झुकना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया है। 
इस ऐलान के लिए दिन चुना गया प्रकाश पर्व का। प्रधानमंत्री ने गुरु पूर्णिमा के दिन राष्ट्र के नाम 18 मिनट के संबोधन में कहा कि, ‘मेरे प्यारे देशवासियों आज देव दीपावली का पावन पर्व है। आज गुरु नानक देव जी का भी पावन प्रकाश पर्व है। मैं विश्व में सभी लोगों और सभी देशवासियों को बधाई देता हूं। यह भी बेहद सुखद है कि डेढ़ साल बाद करतारपुर साहिब कॉरिडोर फिर से खुल गया है। हमारी सरकार की 10 हजार एफपीओ किसान उद्पादक संगठन बनाने की प्लानिंग है। हमने एमएसपी और क्रॉप लोन बढ़ा दिया है। यानी हमारी सरकार किसानों, खासतौर पर छोटे किसानों के हित में लगातार एक के बाद एक कदम उठाती जा रही है। 
इसी अभियान में तीन कृषि कानून लाए गए थे, ताकि किसानों को फायदा हो। साथियो, मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी, जिसके कारण मैं कुछ किसानों को समझा नहीं पाया। मैं आंदोलनकारी किसानों से घर लौटने का आग्रह करता हूं और तीनों कानून वापस लेता हूं। इस महीने के अंत में संसद सत्र शुरू होने जा रहा है उसमें कानूनों को वापस लिया जाएगा। 
हमने किसानों को समझने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिन प्रावधानों पर उन्हें ऐतराज था उन्हें बदलने को भी तैयार थे। देश के हर 100 में से 80 किसान छोटे किसान हैं। उनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। इनकी संख्या 10 करोड़ से भी ज्यादा है। हमने किसान कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। हमारी सरकार ने फसल बीमा योजना को प्रभावी बनाया गया। 22 करोड़ किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए गए हैं। छोटे किसानों को ताकत देने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।’ 
यहां बताना जरूरी होगा कि तीन कृषि कानूनों में पहला कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, दूसरा कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और तीसरा आवश्यक वस्तु (संसोधन) विधेयक 2020 आदि हैं, जिन पर किसानों ने शुरू से आपत्ति जताई और उन्हें रद्द करने की मांग पंजाब से, फिर हरियाणा से उठी और धीरे-धीरे यह मांग देश के हर किसान की मांग हो गयी और 26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर देश भर के किसान आ जुटे। अब सरकार 29 नवंबर से शुरू हो रहे इसी शीतकालीन सत्र में संवैधानिक तौर पर खत्म करेगी। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के तुरंत बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे, जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे। अब देश में एक बहस कृषि कानूनों की वापसी पर शुरू हो चुकी है, कुछ लोग इसे सही तो जो पहले कानूनों को सही बता रहे थे, वो अब इन्हें गलत बता रहे हैं। 
सवाल यह है कि जनता, खासतौर पर किसानों का रुख अब भाजपा के प्रति क्या रहेगा? क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह केवल कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा नहीं की है, बल्कि नाराज सिखों को साधने के साथ-साथ एक इमोशनल कार्ड खेला है, ताकि देश की नाराज जनता के मन में उनकी खराब होती छवि फिर से सुधर सके और लोग फिर से उन्हें पहले की तरह सर-आंखों पर बिठाकर न केवल आगामी साल और 2024 से पहले के सभी विधानसभा चुनावों में उनके चेहरे पर भाजपा को विजयी बना सकें, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी उन्हें फिर से प्रधानमंत्री चेहरा स्वीकार करते हुए एक बार फिर उन्हें मौका दें। 
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री अपनी और भाजपा की कमजोर हो चुकी छवि को वापस मजबूत करने की कोशिश में जुटे हैं, जिसमें कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान बहुत बड़ा काम करेगा। लेकिन क्या लोग बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और किसान पिछले एक साल में अपने साथ हुई घटनाओं को भूल पाएंगे? क्या लोगों को कृषि कानून वापस लेने से राहत मिलेगी और बेताहाशा बढ़ चुकी महंगाई कम होगी? 
सबसे बड़ी बात यह है कि कृषि कानून सरकार अपनी मर्जी से लाई और अब जब उसने देखा कि देश में उसके खिलाफ माहौल बन रहा है, तो उसने अपनी ही मर्जी से उन्हें वापसी का मन बनाया है, क्योंकि अगर किसानों की बात सरकार के लिए इतने ही मायने रखती, तो कृषि कानून कब के वापस हो गए होते। मेरी यह बात भले ही कुछ लोगों को बुरी लगे, लेकिन सच्ची है। 
आपको याद होगा कि इस आंदोलन में देश भर के किसानों नें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हुए अनेकों कुर्बानियां दीं, अलग अलग राज्यों के सैंकड़ों किसान वीरगति को प्राप्त हुए, हर तरह के कष्ट सहते हुए केंद्र की कृषि कानून नीति के खिलाफ लगातार शांतिपूर्वक अहिंसात्मक लड़ाई लड़ते रहे। हालांकि यह भी सच है कि मोदी सरकार को झुकने को किसानों ने ही मजबूर किया है। मैं समाज के सभी लोगों को इस जीत की बधाई देता हूँ तथा इस आंदोलन में वीरगति को प्राप्त हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं तथा केंद्र सरकार से मांग करता हूं कि आने वाले लोकसभा सत्र में इन कानूनों को विधिवत समाप्त करेगी। 
किसान भारत की आत्मा हैं। किसान से भारत है। भारत भूमि की खुशहाली और प्रगति के वाहक है किसान। खेत मे किसान-सीमा पर जवान। इनसे है हमारी शान। भारत सरकार और किसान भाइयो के बीच साल भर से चल रहे गतिरोध का समापन स्वागत योग्य कदम है। चरण सिंह कहते थे भारत की उन्नति भारत के किसान से है। सरकार को भी यह बात न केवल समझनी होगी, बल्कि इस पर अमल करते हुए आगे भी किसानों के हित में काम करना चाहिए। 
(लेखक ‘दैनिक भास्कर’ के राजनीतिक संपादक हैं)

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें