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सरकार जनतंत्र की बुनियाद को ही धाराशाई कर रही है चंदा देने वाले का नाम छुपाकर

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मुनेश त्यागी

      भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का पूरा ब्यौरा देश की जनता के सामने पेश करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह राजनीतिक दलों के लिए केवल नकद चंदा प्रणाली पर वापस जाने का सुझाव नहीं दे रही है, वह केवल चंदा देने के स्वरूप की बात कर रही है, ताकि इसमें पारदर्शिता आये , जनता को पता चले की कौन-कौन लोग कितना पैसा  किस पार्टी को दे रहे हैं और इसी के साथ साथ मौजूदा प्रणाली की गंभीर कमियों को भी दूर किया जाना चाहिए।

      अदालत ने कहा है कि जनवरी 2018 में शुरू की गई चुनावी बांड योजना ने चुनावी प्रक्रिया में नकदी को कम कर दिया व अधिकृत बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित किया, लेकिन इसमें पारदर्शिता जरूरी है। रिश्वत देने और एक दूसरे को लाभ पहुंचाने को कानूनी नहीं बनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से देश के राजनीतिक दलों को 30 सितंबर 2023 तक चुनावी बोंड के जरिए मिले चंदे का ब्यौरा देने के लिए कहा है। अदालत ने चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।

     सर्वोच्च न्यायालय के सामने जारी इस मामले में कई याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि मतदाताओं को यह जानने का पूरा अधिकार है कि किस पार्टी या उम्मीदवार को कितना चंदा कब-कब किस स्रोत से मिला है? यह मामला पिछले काफी दिनों से गर्मागर्म चर्चा का विषय बना हुआ है कि किस पार्टी को, कितना चंदा, किस स्रोत से आ रहा है? किसी को भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। 

     बहुत कोशिश करने के बाद भी जब इस मामले को नहीं सुलझाया जा सका और सरकार ने इस बारे में कोई सहयोग नहीं किया तो कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और मांग की कि प्रत्येक मतदाता का अधिकार है कि वह यह जाने की किस पार्टी को, कौन-कौन लोग चंदा दे रहे हैं, इसकी जानकारी उन्हें होनी चाहिए। 

      बहस के दौरान यह जानकारी में आया कि सरकार याचिका कर्ताओं के द्वारा उठाए गए सवालों से भाग रही है, वह उनका सीधा-साधा उत्तर नहीं दे रही है। इस मामले में जब बहस के दौरान इन मुद्दों को उठाया गया तो एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के जजों ने, कई बार सरकार के वकीलों से यह जानने की कोशिश की कि सरकार इसकी जानकारी दें कि किस पार्टी को, किस स्रोत से, कितना चंदा, कब कब आया है, मगर वे लगातार इन जरूरी सवालों से भागते रहे।

      सर्वोच्च न्यायालय के इन सवालों का जवाब सरकार के अधिवक्ताओं के पास नहीं था। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछने के बावजूद भी इन सवालों का जवाब नहीं दिया। वे घूमा घूमा कर जवाब देते रहे। उन्होंने इन पूछे गए सीधे साधे सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं दिया और बल्कि यहां तक कहा कि किसी मतदाता को वोट डालने का तो अधिकार है, मगर उसे यह जानने का बुनियादी अधिकार नहीं है कि किस पार्टी को, कितना चंदा, कहां से आया। सरकार के इन जवाबों को सुनकर हर कोई आश्चर्य चकित था कि आखिर सरकार इन सवालों का सीधा जवाब क्यों नहीं दे रही है? वह इनसे क्यों भाग रही है?

      सरकार के वकीलों और सरकार के इस रुख ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह गंभीर शक पैदा कर दिया कि वाकई सरकार सीधे-सीधे जवाब नहीं दे रही है, वह जनता से बहुत कुछ छुपा रही है, जिसकी पूरी जानकारी उसे है, मगर वह जनता को या अदालत को उसकी जानकारी नहीं दे रही है और इसके लिए घुमा फिरा कर पूरे देश के साथ धोखाधड़ी कर रही है।

       यहां पर यही बात पूरी तरह से और साफतौर से उभर कर सामने आ रही है कि यह बड़े आसानी से कहा जा सकता है कि सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों से चंदे के रूप में बहुत बड़े पैमाने पर पैसा ले रही है, जिसके फल स्वरुप वह केवल और केवल चंदा देने वाले पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ा रही है, उनके हितों को बढ़ाने का काम कर रही है और उनके लाभ कमाने और मुनाफाखोरी को अवैध रूप से आगे बढ़ा रही है और इसके लिए उन्हें पूरा मौका भी दे रही है।

       यही कारण है कि इन कुछ ही चंदा देने वाले पूंजीपतियों को देश के सारे संसाधन बेचे जा रहे हैं, सड़क मार्ग, हवाई जहाज, बैंक, एलआईसी, रेल, बंदरगाह और यहां तक जमीन भी सरकार इन्हीं चंदा देने वाले पूंजीपतियों के हवाले करना चाह रही थी। वह तो भारत के दूरदर्शी किसान नेता सरकार की इन बेइमान नीतियों को समझ गए और उन्होंने किसानों को एकजुट करके दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे दिया और किसानों को पूंजीपतियों का गुलाम होने से बचा लिया। हालांकि इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी कुर्बानी भी देनी पड़ी जिसमें सैकड़ों किसान असमय शहीद होकर मौत के शिकार हो गए।

         भारत की सरकार संविधान से चलती है और संविधान ने भारत में जनतांत्रिक व्यवस्था कायम की है। यहां पर सरकार की मनमानी नहीं चल सकती। उसे बताना होगा कि उसने किस पूंजीपति से, किस साल, कितना पैसा लिया? यह भारत की जनता का बुनियादी का अधिकार है। यह किसी शासक या पूंजी पति का कोई अधिकार नहीं है कि वह चंदा दे और सरकार येन-केन प्रकारेण उसका नाम छुपाए। आखिर क्यों? जो कोई चंदा दे रहा है तो उसका नाम पूरी जनता को, पूरे देश को पता चलना चाहिए।

       क्योंकि यही सारे मुद्दे की जड़ है। यही रुख भारत के जनतंत्र को बिगाड़ रहा है, उसकी छवि खराब कर रहा है और सरकार की इन्हीं नीतियों ने जनता के विकास को त्याग दिया है और अब वह इन बड़े-बड़े पूंजीपतियों से चुनावी चंदा लेकर, केवल और केवल उन्हीं की हित रक्षा कर रही है, उन्हीं के मुनाफों को बढ़ा रही है, उन्हीं को देश को बेच रही है और इसीलिए वह यह सब काम चोरी चोरी कर रही है और जनता को उसके कानूनी हकों से वंचित कर रही है।

        इस सारे विवरण से यह भली भांति कहा जा सकता है कि सरकार जान पूछ कर सर्वोच्च न्यायालय के सवालों का जवाब नहीं दे रही है, वह सर्वोच्च न्यायालय और देश की पूरी जनता को धोखा दे रही है, घुमा फिरा कर बात कर रही है, झूठे मुद्दों को सुप्रीम कोर्ट के सामने उठा रही है और अदालत समेत इस पूरी बहस को और पूरे देश को गुमराह कर रही है। अब वह पूरी तरह से पूंजीपतियों की गोद में बैठ गई है। अब वह उनसे चंदा लेकर, केवल उन्हीं के मुनाफे बढ़ाने के लिए काम कर रही है और सरकार की इस पूंजीवादी प्रणाली ने भारत के संविधान को और भारत की जनतांत्रिक प्रणाली को सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है।

      हम यहीं पर जोर देकर कहेंगे कि जो सरकार भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों के बस में नहीं आ रही है, उसके सवालों का सीधा जवाब नहीं दे रही है और पूरी देश की जनता को, पूरी दुनिया के सामने गुमराह कर रही है, वह भला भारत की सीधी सादी जनता के बस में कैसे आ सकती है? वह यह सब भारत की जनता को क्यों और कैसे बता सकती है? 

      अब यहीं पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय की सबसे अहम जिम्मेदारी हो गई है कि वह सरकार की इन संविधान विरोधी और जनतंत्र विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाये और पूरे देश की जनता को यह बुनियादी अधिकार प्रदान करे कि उसे चंदा देने वाले के नाम और पता जानने का पूरा अधिकार है। ऐसा जानकर ही वह अपनी जिम्मेदार और जनसमर्थक सरकार को चुनेगी। ऐसा करके ही भारत की जनतांत्रिक प्रणाली और भारत के संविधान को बचाया जा सकता है। सरकार की यह तमाम कारस्तानियां बता रही हैं कि भारत के संविधान को इस मौजूदा सरकार से सबसे ज्यादा और गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

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