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क्रोनी कैपिटलिज़्म की सरकार हारी….लोकतन्त्र विजयी

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विश्वजीत सिंह 

पूर्व कानूनमन्त्री एवं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने  इस जजमेंट पर कहा कि लोकतांत्रिक चुनाव के दृष्टिकोण से विगत 25 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह सबसे बड़ा फैसला है….

मोदी सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार ऐसा फैसला सुनाने का साहस किया है जो कि केंद्र सरकार से सीधे जुड़े होने के साथ ही यह 

भारत की जनता के अधिकार एवं पूंजीपतियों, राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है…. 

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड से चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी है. कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की गोपनीयता बनाये रखने को असंवैधानिक बताया है और इस पॉलिसी को रद्द कर दिया है. कोर्ट का कहना था कि चुनाव बॉन्ड की योजना सूचना के अधिकार (RTI) के खिलाफ है….. 

कोर्ट ने आयोग से कहा कि वो 2019 से अब तक की जानकारी तलब करे. बॉन्ड जारी करने वाले एसबीआई को यह जानकारी देनी होगी कि 2019 से लेकर अब तक कितने लोगों ने कितने- कितने रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे. एसबीआई तीन हफ्ते में यह जानकारी देगी. उसके बाद चुनाव आयोग जनता तक यह जानकारी पहुंचाएगा…. 

क्या था इलेक्टोरल बॉन्ड……? 

कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता था…. 

 ये व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान नहीं खोलती और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता था… 

5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया… 

 चीफ जस्टिस ने कहा, ‘पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।’

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था…. 

 इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की। 

इसे लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं… 

याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है….. 

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे….

वहीं सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, एवं विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी…. 

मोदी सरकार की दलील:

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। पहले नकद में चंदा दिया जाता था, लेकिन अब चंदे की गोपनीयता दानदाताओं के हित में रखी गई है….. 

चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी… 

 इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि: अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है…? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी…? 

मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश अपने हलफनामें मे कहा कि देश की जनता को यह  जानने का अधिकार नही है कि पैसा कहाँ से आया…. 

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि नागरिकों को पार्टियों का इनकम सोर्स जानने का अधिकार नहीं है…. 

प्रशांत भूषण : ने कहा कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। नागरिकों को जानने का हक है कि किस पार्टी को कहां से पैसा मिला… 

प्रशांत भूषण: केंद्रीय सत्तारूढ़ दल को कुल योगदान का 60 प्रतिशत से ज्यादा मिला। अगर किसी नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति, उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है..?

प्रशांत भूषणः बॉन्ड स्कीम कहती है कि अगर ED को पैसों के बारे में जानकारी चाहिए तो SBI खुलासा कर सकता है, लेकिन सभी एजेंसियां सरकार के नियंत्रण में हैं और SBI भी। ऐसे में किसी को इसके बारे में पता ही नहीं चल सकेगा… 

प्रशांत भूषणः ये बॉन्ड सत्ता में पार्टियों को रिश्वत के रूप में दिए जाते हैं। इससे सरकारी फैसले प्रभावित होते हैं। करीब-करीब सभी बॉन्ड केवल सत्ताधारी पार्टियों को ही मिले। 50% से ज्यादा केवल केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी और बाकी केवल राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी को मिले। यहां तक कि 1% भी विपक्षी दलों को नहीं मिला है… 

भूषण: एक आम आदमी को कैसे पता चलेगा कि 23 लाख कंपनियों में से किसने कितना दान दिया? लेकिन अगर केंद्र SBI पर दबाव डालेगा तो उन्हें इसके बारे में पता चल जाएगा, लेकिन नागरिकों को यह जानने का अधिकार खत्म हो जाता है कि इन राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है..? 

CJI: हो सकता है दान देने वाला व्यक्ति खुद ही अपनी पहचान छिपाना चाहता हो, क्योंकि वो बिजनेस करता है। अगर नाम का खुलासा हुआ तो उसे दिक्कत हो सकती है… 

भूषणः यह सिर्फ शेल कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों के पास आने वाला काला धन है। इस मामले में मैं आरबीआई का एक लेटर दिखाना चाहूंगा… 

भूषणः मैंने आरबीआई के कई पत्रों का हवाला दिया है। चुनौती का पहला आधार यह है कि राजनीतिक दलों का पैसे के सोर्स के बारे में न बताना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है….. 

इन तीन बड़ी संस्थाओं ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड को बताया था गलत…. 

सुप्रीम कोर्ट:

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए काले धन को कानूनी किया जा सकता है। विदेशी कंपनियां सरकार और राजनीति को प्रभावित कर सकती हैं… 

चुनाव आयोग:

चंदा देने वालों के नाम गुमनाम रखने से पता लगाना संभव नहीं होगा कि राजनीतिक दल ने धारा 29 (बी) का उल्लंघन कर चंदा लिया है या नहीं। विदेशी चंदा लेने वाला कानून भी बेकार हो जाएगा… 

आरबीआई:

आरबीआई ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड ‘मनी लॉन्डरिंग’ को बढ़ावा देगा। इसके जरिए ब्लैकमनी को व्हाइट करना संभव होगा…. 

देश के नागरिकों के अधिकारों को उठाने के लिए सभी याचिकाकर्ताओं, पैरवी कर रहे सभी वरिष्ठ अधिवक्ताओं एवं संविधान के संरक्षक पांचो जजों को सैल्यूट…. पर मुझे एक शंका तो है ही कि यह भ्रष्ट सरकार कोई न कोई दूसरा कानून , अध्यादेश अवश्य लायेगी…. 

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