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*वक्फ करना धार्मिक प्रक्रिया ,इसे कोई गैर-इस्लामी कैसे संचालित करेगा? : अली अनवर*

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वक्फ करना धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है। इसे कोई गैर-इस्लामी कैसे संचालित करेगा? मैं कहता हूं कि क्या आप किसी हिंदू धर्म के ट्रस्टों में इस तरह का प्रावधान कर सकते हैं कि उसकी समिति में गैर-हिंदू शामिल हों? पढ़ें, पूर्व राज्यसभा सदस्य व ऑल इंडिया पसमांदा महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अनवर का यह साक्षात्कार

लोकसभा में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया है। इस संदर्भ में आपके विरोध के मुख्य बिंदु क्या हैं?

मैं इस संशोधन के खिलाफ हूं, क्योंकि सरकार भले ही यह कह रही है कि वह वक्फ बोर्ड को रेग्यूलेट करना चाहती है, लेकिन कल ही लोकसभा में सरकार के मंत्री किरेन रिजिजू अपने संबोधन में रेलवे और रक्षा मंत्रालय की जमीन का हवाला दे रहे थे, जिससे स्पष्ट है कि सरकार की मंशा वक्फ बोर्ड की जमीन हथियाने की है। उसकी मंशा वक्फ बोर्ड में जबरन हस्तक्षेप करने की है। मेरे विरोध का दूसरा कारण यह है कि यह पूरी तरह असंवैधानिक है। यह सभी जानते हैं कि जमीन का सवाल राज्यों का सवाल है। जबकि कल ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह भारत सरकार का कानून है और सभी इसे मानने के लिए बाध्य हैं।

सवाल है कि जब जमीन का सवाल केंद्र का सवाल है ही नहीं और यह राज्यों से जुड़ा सवाल है तो राज्य सरकारें इसे मानने के लिए क्यों बाध्य होंगी। आप यह देखिए जिन राज्यों में गैर-भाजपाई या गैर-एनडीए सरकारें हैं, वहां अभी से इसका विरोध किया जा रहा है। असल बात यह है कि केंद्र की मौजूदा सरकार देश के संघीय ढांचे पर हमला कर रही है और केंद्र व राज्यों के बीच तनाव को बढ़ा रही है।

मेरे विरोध की तीसरी वजह यह है कि सरकार की असली मंशा देश भर में तनाव पैदा करने की है। पहले बाबरी मस्जिद को ढाहा और उसके बाद काशी और मथुरा की बात करने लगे। वे अब वक्फ बोर्ड की सियासत कर रहे हैं। इससे होगा यह कि देश के सभी हिस्सों में लोग विरोध करेंगे और हो सकता है कि कुछ मुसलमान उकसावे में आ जाएं, आंदोलन करें और सरकार उनके खिलाफ गोलीबारी करे।

एक और बात जो मैं कहना चाहता हूं कि इस संशोधन के लिए जो संयुक्त संसदीय कमेटी बनाई गई थी, जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में, उसमें शामिल एक सदस्य, जिनका नाम निशिकांत दूबे हैं, ने न केवल संसदीय समिति के अनुशासन को भंग किया बल्कि संसद की मर्यादा का भी उल्लंघन किया। मैं आपको बताऊं कि हिंदी समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ में प्रमुखता से उनके हवाले से यह खबर पहले ही छापी गई कि कमेटी को इतने सारे सुझाव आदि मिले, जबकि समिति की रिपोर्ट संसद में रखी भी नहीं गई। तो हुआ यह कि मैंने इस बारे में जगदंबिका पाल को पत्र भी लिखा कि आप समिति की गोपनीयता को भंग करने पर दूबे को समिति से निष्काषित करें, लेकिन उन्होंने नहीं किया।

सरकार पसमांदा और मुस्लिम महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल करने की बात कह रही है, इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

आपने ठीक याद दिलाया। मैं आपको बताऊं कि पसमांदा के नाम पर संयुक्त संसदीय समिति ने एक अजीबोगरीब कारनामा किया। हुआ यह कि उसने एक सरकारी कर्मी, जो कि पसमांदा समुदाय का था, के ऊपर जोर-जबरदस्ती या कहिए कि लालच देकर उससे बयान लिया। उन लोगों ने उसकी पीठ भी थपथपाई और कल अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री ने इसका उल्लेख भी किया। लेकिन मैं आपको बताऊं कि संयुक्त संसदीय समिति की बैठक पटना में प्रस्तावित थी। तब मैंने जगदंबिका पाल जी को पत्र लिखकर कहा कि मैं ऑल इंडिया पसमांदा महाज का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं और दो दशकों से यह आंदोलन चला रहा हूं तथा मैं बारह वर्षों तक राज्यसभा का सदस्य रहा हूं, इसलिए जब आप पटना आएं तो मुझे सूचित करें ताकि हम अपना पक्ष रख सकें। लेकिन उन्हें सरकारी कर्मी से बयान लेने की खबर मिल गई थी और यह भी कि मैंने ऐतराज जताया है तो यह सोचकर कि पटना आने पर उनकी पोल खुल जाएगी, समिति की बैठक ही रद्द कर दी गई।

रही बात यह कि सरकार इसमें पसमांदा और महिलाओं को नुमाइंदगी देगी तो मैं आपको बताऊं कि यदि सरकार की मंशा वक्फ बोर्ड की जमीन हड़पने की नहीं होती तो मैं पहला व्यक्ति होता जो इस बिल के पक्ष में खड़ा होता। लेकिन सरकार की मंशा नेक नहीं है। उसने तो जिलाधिकारी को असीम ताकत दे दी है और अब वह जितना चाहे हस्तक्षेप करेगा। इससे गांव-गांव में विवाद फैलेगा। दंगा होगा और तनाव होगा।

सरकार यह भी कह रही है कि वक्फ की संपत्तियों से आय नहीं होती। क्या उसका इरादा वक्फ की संपत्तियों का व्यवसायीकरण करना है? आप इसे कैसे देखते हैं?

आप सही कह रहे हैं। केंद्र सरकार का इरादा वक्फ बोर्ड की जमीन हड़पकर उसे कारपोरेट ताकतों को वैसे ही दे देना है, जैसे वह रेलवे, रक्षा और जंगल के नाम पर रेखांकित जमीनें दे रही है। सरकार इसे ही आय सृजन करना कह रही है।

पसमांदा समाज को एक बार फिर से ढाल बनाने की कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है। क्या इसकी वजह यह नहीं कि पसमांदा समाज को अब तक विपक्षी दलों ने नजरअंदाज किया?

मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि यह सब सरकार की साजिश है। आप देखिए कि यह मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर हमला है। वक्फ करना धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है। इसे कोई गैर-इस्लामी कैसे संचालित करेगा? मैं कहता हूं कि क्या आप किसी हिंदू धर्म के ट्रस्टों में इस तरह का प्रावधान कर सकते हैं कि उसकी समिति में गैर-हिंदू शामिल हों? क्या आप इसी तरह का प्रावधान सिक्खों के धार्मिक ट्रस्टों में कर सकते हैं? मैं तो मानता हूं कि यदि ऐसा हुआ सिक्ख समुदाय के लोग अपने कृपाण हाथ में लेकर सड़कों पर उतर जाएंगे। हां, सरकार के लोग चाहें तो ईसाई धर्म के मामले में ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि उसके निशाने पर इस्लाम और ईसाई धर्म के लोग हैं।

बिहार में इस साल चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार की पार्टी द्वारा विधेयक को समर्थन दिए जाने का असर क्या उनके वोट बैंक पर पड़ेगा?

नीतीश कुमार को तो बोहनी भी नसीब नहीं होगी। जिस तरह से उन्होंने या कहिए कि उनके दल के सांसद राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने या एक सदन के उपसभापति, जिनका नाम लेना मैं आवश्यक नहीं समझता, बिहार के लोग उन्हें माफ नहीं करेंगे। आप यह देखिए कि कैसे वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक का विरोध करने पर इमारत-ए-शरिया पर कब्जे की कोशिश सरकार के मंत्रियों और पुलिस को भेजकर की गई। बिहार की मुस्लिम जनता सब अपने आंखों से देख रही है।

हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधेयक (यदि राज्यसभा में पारित हो गया) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने और किसान आंदोलन की तर्ज पर आंदोलन करने की बात कही है। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

यह अच्छी बात है कि वे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कह रहे हैं। लेकिन देश के उन सभी राजनीतिक दलों को इसके खिलाफ आंदोलन करना चाहिए जो इस देश में धर्मनिरपेक्षता और संविधान में यकीन रखते हैं। एक बात यह भी कि अल्पसंख्यकों को न्याय आजकल अदालतों में नहीं मिलता। आप बाबरी मस्जिद मामले को देखिए कि जिसके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि वहां मस्जिद के पहले कोई मंदिर था, वहां मंदिर बता दिया गया। फैसला सुनाने वाले एक जज को राज्यसभा का सदस्य बना दिया गया तो एक मुस्लिम जज को गर्वनर बना दिया गया। आंदोलन करना एक तरीका हो सकता है। लेकिन मैं तो इस बात से सशंकित हूं कि यदि यह विधेयक लागू हुआ तब पूरे देश में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और यह भी कि केंद्र और राज्यों के बीच तनाव बढ़ेगा। आज तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की सरकारें कह रही हैं। कल और राज्यों की सरकारें कहेंगी। असल में केंद्र सरकार अपनी नाकामी छिपा रही है। वह यह छिपाने का प्रयास कर रही है कि कैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने रातोंरात भारत पर टैरिफ टैक्स लाद दिया है। तो सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर हमला कर रही है।

केंद्र के इस संशोधन विधेयकों से उन गरीब-गुरबों (जिनमें पसमांदा समाज के लोग भी शामिल हैं) पर क्या असर पड़ेगा, जो वक्फ की संपत्तियों के लाभार्थी पहले से रहे हैं?

देखिए, मूल बात यह है कि वक्फ बोर्ड द्वारा गरीब-गुरबों के जमीन जीने-खाने के लिए बहुत ही मामूली किराए पर दिये गए हैं। इसी कारण वक्फ बोर्ड की आय कम होती है। यह कोई होल्डिंग टैक्स जैसा नहीं है। यह तो मजहबी बात है कि जो गरीब हैं, लाचार हैं, उन्हें सहूलियत मिले। लेकिन सरकार जो अब करना चाहती है, उससे होगा यह कि वक्फ की संपत्तियों पर बाजार मूल्य के हिसाब से किराया वसूला जाएगा। इससे गरीब-गुरबों पर बुरा असर पड़ेगा। जो नहीं दे सकेंगे, उनसे जमीनें छीन ली जाएंगीं। यह अनैतिक होगा और मजहबी काम में हस्तक्षेप भी।

देश भर के पसमांदा समुदाय की राजनीति पर इसका क्या असर होगा?

कहीं भी कोई असर नहीं पड़ेगा। मैंने पहले ही कहा और अब भी यह कहता हूं कि वक्फ बोर्डों में पसमांदा समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व नगण्य था, उसमें उनकी नुमाइंदगी होनी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप इसके नाम पर वक्फ बोर्ड की जमीनें हड़प कर कारपोरेट को दे दें। मैं फिर कहता हूं कि यदि पसमांदा समाज को नुमाइंदगी देने और महिलाओं को नुमाइंदगी देने की बात होती तो मैं सबसे पहला इंसान होता जो विधेयक के समर्थन में खड़ा होता। मैंने पहले भी ऐसा किया है। तीन तलाक कानून के संबंध में मैंने और सभी प्रगतिशील लोगों ने समर्थन दिया।

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