मुख्तार अंसारी की मौत के बाद राजनीति में अपराध को लेकर एक बार फिर से चर्चा हो रही है। देश में पिछले एक दशक में राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। इसका असर लोकसभा में जीते सांसदों में भी नजर आता है। एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है।
यूपी के बांदा जेल में माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी की हार्ट अटैक से मौत हो गई। मुख्तार की मौत के बहाने सोशल मीडिया पर राजनीति और अपराध को लेकर बहस देखने को मिल रही है। देश की राजनीति को अपराध मुक्त करने को लेकर न्यायपालिका से लेकर सरकार, राजनीतिक दलों से लेकर राजनेताओं तक बातें खूब होती हैं। राजनीति में अपराधियों पर नकेल कसने के लिए कानून भी बने हैं लेकिन राजनीति में प्रवेश को लेकर कोई बैरियर नहीं दिखता है। देश की राजनीति में अपराधिक प्रवृति वाले लोगों का आना जारी है। ये पहले अपराध की दुनिया में सिक्का जमाते हैं फिर पार्षद, विधायक लेकर सांसद तक निर्वाचित हो जाते हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर राजनीति में अपराधियों की हिस्सेदारी कहां तक पहुंच चुकी है।
क्या कहती है एडीआर की रिपोर्ट
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से पिछले साल विश्लेषण में दावा किया गया था कि भारत भर में राज्य विधानसभाओं में लगभग 44 प्रतिशत विधायकों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) की तरफ से किए गए विश्लेषण में देश भर में राज्य विधानसभाओं और केंद्र शासित प्रदेशों में वर्तमान विधायकों के स्व-शपथ पत्रों की जांच की गई थी। यह डेटा विधायकों की तरफ से उनके हालिया चुनाव लड़ने से पहले दायर किए गए हलफनामों से निकाला गया था। विश्लेषण में 28 राज्य विधानसभाओं और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में सेवारत 4,033 व्यक्तियों में से कुल 4,001 विधायकों को शामिल किया गया था। विश्लेषण किए गए विधायकों में से 1,136 या लगभग 28 प्रतिशत ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे। इनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध, सहित अन्य अपराध शामिल थे।
किस राज्य में सबसे अधिक दागी
केरल में, 135 में से 95 विधायकों, यानी 70 प्रतिशत, ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे। इसी तरह बिहार में 242 विधायकों में से 161 (67 फीसदी), दिल्ली में 70 में से 44 विधायक (63 फीसदी), महाराष्ट्र में 284 में से 175 विधायक (62 फीसदी), तेलंगाना में 118 विधायकों में से 72 विधायक (61 प्रतिशत) और तमिलनाडु में 224 विधायकों में से 134 (60 प्रतिशत) ने अपने हलफनामों में स्वयं घोषित आपराधिक मामले दर्ज की जानकारी दी थी। इसके अलावा, एडीआर ने बताया कि दिल्ली के 70 में से 37 विधायकों (53 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। बिहार में 242 में से 122 विधायक (50 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 284 में से 114 विधायक (40 प्रतिशत), झारखंड में 79 में से 31 विधायक (39 प्रतिशत), तेलंगाना में 118 में से 46 विधायक (39 प्रतिशत) ) और उत्तर प्रदेश में 403 विधायकों में से 155 (38 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे।
अरेस्ट पर राजनीति गरमाई, दिल्ली शराब घोटाला मामले में केजरीवाल की गिरफ्तारी पर किसने क्या कहा?
- केजरीवाल की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए आप मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि न्यूनतम मानवीय मूल्यों का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा। अरविंद केजरीवाल के बुजुर्ग माता-पिता, बिना सहारे चल भी नहीं पाते। रिश्तेदारों को केजरीवाल के परिवार से भी नहीं मिलने दिया जा रहा। आप मंत्री ने आगे कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के सामने कहेंगे कि अरविंद केजरीवाल को उनके वकील और परिवार से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए और उन्हें अपना आधिकारिक काम करने की भी अनुमति दी जानी चाहिए। केजरीवाल के परिवार को नजरबंद कर दिया गया है। सौरभ ने आगे कहा कि ईडी को सिर्फ 70,000 रुपये नकद मिले। उन्होंने मुख्यमंत्री का मोबाइल ले लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उनके पास कोई सबूत या पैसे का पता नहीं है।
- पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने ईडी की कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा किदिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का मैं कड़ा विरोध करती हूं। उन्हें जनता ने चुना था। मैंने उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल से बात करके अपना पूरा समर्थन जताया है। यह बहुत गलत है कि चुने हुए मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार किया जा रहा है जबकि सीबीआई/ईडी जांचों का सामना कर रहे लोगों को भाजपा में शामिल होने के बाद बे रोकटोक घूमने दिया जाता है। ये लोकतंत्र पर सीधा हमला है। आज, हमारा भारत राष्ट्रीय गठबंधन (INDIA alliance) चुनाव आयोग से मुलाकात करेगा और विपक्षी नेताओं, खासकर चुनाव आचार संहिता (MCC) के दौरान उनकी गिरफ्तारी का विरोध जताएगा। इसके लिए मैंने डेरेक ओ ब्रायन और मोहम्मद नदीमुल हक को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना है।
सांसदों का रिकॉर्ड भी देख लीजिए
एडीआर के आंकड़ों के अनुसार, भारत में संसद के लिए चुने गए आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या 2004 के बाद से बढ़ रही है। 2004 में, 24% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जो 2019 में बढ़कर 43% हो गए। एक याचिका में फरवरी 2023 में दायर इस याचिका में दावा किया गया था कि 2009 के बाद से घोषित आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 44% की वृद्धि हुई है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, 159 सांसदों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे।इनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और अन्य अपराध भी शामिल थे।
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- राजनीति में क्यों बढ़ रहे अपराधी?
राजनीति का अपराधिकरण होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं। इसमें वोट बैंक की राजनीति, भ्रष्टाचार, निहित हित, बाहुबल के साथ ही पैसा प्रमुख कारण है। इसके अलावा सरकार चलान में असफलता भी एक वजह है। कोई भी दल हो वे वोट बैंक की राजनीति को सबसे अधिक तव्वजो देते हैं। भले ही वे बात विकास और साफ सुथरी राजनीति की करें लेकिन जब बात टिकट देने की आते हैं तो वो खास वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ही चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारते हैं। ऐसे में वह अपराधियों को भी टिकट देने से गुरेज नहीं करते हैं। राजनीतिक अपराध की यह संस्कृति अक्सर राजनेताओं और उनके निर्वाचन क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संबंधों के कारण बनी रहती है। राजनेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सत्ता और संसाधनों के दुरुपयोग का वातावरण भी तैयार करते हैं। इससे भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियां बढ़ रही हैं। चुनाव लड़ने वाले अधिकांश उम्मीदवारों को पैसा, फंड और डोनेशन की आवश्यकता होती है। ऐसे में उनकी मदद करने वाले फिर चाहे वह बिजनेसमैन हो, मदद के बदले अपना हित भी साधता है। लोग आम तौर पर सामुदायिक हितों के संकीर्ण चश्मे से वोट करते हैं। ऐसे में वे राजनेताओं की आपराधिक पृष्ठभूमि की उपेक्षा करते हैं। काला धन और माफिया फंड राजनीति के अपराधीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। धन के इन अवैध स्रोतों का उपयोग वोट खरीदने और चुनाव जीतने के लिए किया जाता है। इस वजह से राजनीति के अपराधीकरण में वृद्धि होती है।