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इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा प्रयोगवादी राजनीतिक संत

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दिलीप कुमार

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो 

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो 

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं 

तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो 

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता 

मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो 

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा 

ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो 

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो,

निदा फाजली 

प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर पांच साल पहले कांग्रेस ने राहुल गांधी ने सदन में अनैतिक राजनीति करने का आरोप लगाया था. तब प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल को निदा फाजली को यह शेर सुनाया था. मुझे याद है, यह शेर खुद राहुल को बार – बार याद आता होगा. तब आज वो चल पड़े हैं. 

राहुल गांधी को सब कुछ  अपने परिवार के कारण मिला. उनकी शख्सियत में कुछ ख़ास नहीं था. ऐसे ही जैसे आम नवयुवक होते हैं, सभी को अपने हिस्से कुछ न कुछ करना ही होता है. राहुल ने भी चुन लिया बिजनेसमैन बनना है. नियति आपको कहीं और ही ले जाती है. जहां तक आपका रास्ता खत्म नहीं हो जाता,अंततः आप तब तक दौड़ते रहते हैं. राहुल गांधी ने भी कभी राजनेता बनने का सोचा ही नहीं था. कहते हैं राजनीति में दो लोग कभी नहीं आते, एक स्वार्थी दूसरे बुजदिल राहुल न स्वार्थी हैं या नहीं कोई नहीं बता सकता, लेकिन वो बुजदिल नहीं है, यह कई बार तय हो चुका है.

राहुल न न करते राजनीति में आ ही गए, कुंठित, उत्सवधर्मी, समाज में कोई उदारवादी राजनेता को सफलता मिलना दूर की कौड़ी है. राजनीति में कम्युनिकेशन का बहुत बड़ा रोल होता है. आपको सबसे पहले अपना खुद का प्रचारक एवं खुद का प्रवक्ता बनना पड़ता है. खुद का कोई पैरोकार कितना सच बोलता है मौजूदा प्रचार मंत्री माफ कीजिए प्रधान मंत्री उसके सटीक उदहारण हैं. एक व्यक्ति खुद को ही पॉलिश करता है, और क्या खूब करता है. कम्युनिकेशन से मतलब है लोगों के अनुरूप बोलना होता है,अब तक यह सिद्ध हो चुका है कि हमारा समाज अधिकांश कम – पढ़ा लिखा है, राहुल इस अशिक्षित समाज़ के साथ संवाद के ज़रिए जुड़ नहीं पाते थे .

भारत जोड़ों यात्रा ने व्यक्तिगत रूप से राहुल को ज़िन्दा कर दिया है, उनको अल्पज्ञ कहने वालों की जमात अब दिखाई नहीं पड़ती, एसी में बैठने वालों को आप अल्पज्ञ कह सकते हैं. रॉयल गांधी फैमिली का प्रिंस आज रोज़ पच्चीस किलोमीटर सड़कों पर चलता है. सीधे लोगों के साथ जुड़ता है, उनको सुनता है . पहली बार उसको आभास हुआ है, कि लोगों के साथ जुड़कर कौन सी ताकत मिलती है. चाटुकारों से घिरे राहुल को आप परिपक्व कह सकते थे, आईटी सेल के द्वारा उनको पप्पू सिद्ध कर सकते थे. सड़क पर चलते हुए नायक से लड़ना उसको बदनाम करना नामुमकिन है. विरासत परिवारवाद के कारण मिल सकती है. कुछ दिनों के लिए आप प्रसिद्धि पा सकते हैं, लेकिन नायक सड़कों से ही पैदा होते हैं.

यह यात्रा ठीक समय पर शुरू हुई है, अगर राहुल गांधी इस संघर्ष के बिना ही सत्ता पर काबिज हो जाते तो उनको वो स्वीकार्यता कभी हासिल नहीं होती. आम तौर पर कांग्रेस में उनकी शख्सियत को सोनिया गांधी के अक़्स तले भी स्वीकार्यता न के बराबर है. इस यात्रा के बाद कांग्रेस को एक लीडर मिलेगा जो सड़कों से पैदा हुआ होगा, जो देश की परिस्थितियों से वाकिफ़ होगा. जो अपनी तपस्या से अपने उस मुकाम पर पहुंचा देगी, जहां से नायकत्व उभर कर सामने आएगा. जिसके पीछे एक परिवार एक दल की की ताकत नहीं अपितु जनमानस राहुल के पीछे खड़ा होगा. जनमानस को राहुल को पीछे आना ही होगा. चूंकि राहुल के हिस्से का संघर्ष कन्याकुमारी से कश्मीर पर खत्म हो जाएगा. यह उनको अपने जीवन में करना ही था. यह राहुल की व्यक्तिगत यात्रा है.

व्यक्ति जब घर से हिजरत के लिए निकलता है तो अकेला होता है, लेकिन लौटता है पूरी कॉम के साथ, क्योंकि कॉमे इतिहास नहीं बनाती, उनका एक अगुवा तूफान पैदा करता है, जिसके पीछे पूरा जनमानस हो लेता है, क्योंकि नायक को जनमानस की आवश्यकता नहीं ख़ासकर भारतीय समाज अपना नायक खुद चुन लेती है, उसने राहुल को चुन लिया है. राहुल को पीएम नहीं देश समझना हैं उनका रास्ता बुद्धत्व का है. उनको नेहरू, नहीं गांधी बनना हैं, राहुल इक्कीसवी सदी के सबसे बड़े प्रयोग वादी राजनीतिक संत बनकर उभरेंगे. राहुल ने अपनी यात्रा में इतना बेशुमार प्यार, सम्मान पाया है, देखकर सुकून मिलता है. यह सम्मान प्यार, स्नेह केवल राहुल के हिस्से आना था. आए होंगे देश जीतने वाले, राहुल ने जनमानस के प्रेम को जीत लिया है. जब ईमानदारी के साथ, आदमी अगुवा होकर चलने लगता है तो वो तूफान पैदा कर देता है. अब जनमानस को एक नायक मिल चुका है. जो इस समाज को माफ करते हुए उसके भविष्य को गढ़ेगा, राहुल की प्रवृत्ति इतिहास से ज्यादा भविष्य पर है. उनकी शख्सियत के केंद्र में प्रेम सद्भाव, है. हम सब साक्षी बन रहे हैं, जब गांधी के अनुयायी ने कहकर एक सिकंदर को ख़ामोशी से हरा दिया था.

दिलीप कुमार

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