अनिर्बान चौधरी
ऐसा लगता है कि बाब अल मंदेब की खाड़ी अपने नाम का असर दिखा रही है। अरबी भाषा में बाब अल मंदेब का मतलब होता है दुख का द्वार। इस्राइल और हमास के बीच छिड़ी जंग का दायरा बढ़ने के साथ माल ढोने वाले जहाजों के लिए बाब अल मंदेब की खाड़ी दुख का सबब बन गई है। यह स्वेज नहर में एक संकरा सा रास्ता है।
हूती विद्रोहियों के निशाने पर: गाजा पर इस्राइल की बमबारी के जवाब में हूतियों ने स्वेज नहर से गुजरने वाले जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। हूतियों का अड्डा यमन में है। उन्हें ईरान का सपोर्ट हासिल है। उनके पास काफी नौसैनिक ताकत भी है।
20 हजार से ज्यादा जहाज : स्वेज नहर से हर साल 20 हजार से ज्यादा जहाज गुजरते हैं। दुनिया में जो व्यापार होता है, उसका करीब 12 प्रतिशत माल इसी रास्ते से आता-जाता है। 9 प्रतिशत क्रूड ऑयल, 6 प्रतिशत LNG इंपोर्ट और 30 प्रतिशत कंटेनर शिपमेंट भी स्वेज नजर से गुजरता है।
बदल रहे हैं रास्ता : हूतियों के हमलों को देखते हुए पिछले हफ्ते 300 से ज्यादा जहाजों ने रास्ता बदला और केप ऑफ गुड होप का चक्कर लगाकर आगे निकले। इसमें उन्हें 6 हजार नॉटिकल मील ज्यादा सफर करना पड़ा। इससे समय तो ज्यादा लग ही रहा है, शिपिंग रेट और इंश्योरेंस प्रीमियम भी बढ़ गया है। इसके चलते दुनिया भर में कंपनियों के प्रोडक्शन शेड्यूल पर असर पड़ने का डर बढ़ गया है।
बनी हुई हैं आशंकाएं : शिपमालिकों, निर्यातकों, इंडस्ट्री के लोगों और बीमा कंपनियों का कहना है कि यह संकट कुछ समय में खत्म हो जाएगा। कई लोगों को डर है कि अगर संकट लंबा चला, तो शिपिंग रेट्स बढ़ सकते हैं। शिपिंग रेट बढ़ने से महंगाई को भी हवा मिलेगी, जिससे पूरी दुनिया परेशान है।
फ्रेट रेट बढ़े : कंटेनरों के लिए ऑनलाइन मार्केटप्लेस कंटेनर एक्सचेंज के CEO क्रिश्चियन रोएलॉफ्स ने बताया, ‘पिछले तीन हफ्तों में ऑन द स्पॉट फ्रेट रेट 40 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। पिछले दो हफ्तों में सेकेंडहैंड कंटेनरों के दाम भी बढ़े हैं, खासतौर से उत्तरी यूरोप में क्योंकि इंडस्ट्री को लग रहा है कि सप्लाई और कम हो सकती है।’
इंश्योरेंस प्रीमियम : इंश्योरेंस प्रीमियम भी बढ़ रहा है। जहाज अगर युद्ध वाले इलाके के करीब से गुजर रहा हो तो इंश्योरेंस कंपनियां जहाज मालिकों से वॉर इंश्योरेंस प्रीमियम चार्ज करती हैं। जहाज की वैल्यू के पर्सेंटेज में यह प्रीमियम तय होता है। इसका बोझ आखिर में माल की ढुलाई कराने वालों पर ही पड़ता है।
पहले भी बढ़े हैं प्रीमियम : इससे पहले भी जब कभी जहाजों पर अटैक हुए, तो शिपर्स को अतिरिक्त प्रीमियम चुकाना पड़ा है। लंदन के इंटरनैशनल ग्रुप ऑफ पीएंडआई क्लब्स के CEO निक शॉ का कहना है कि हूतियों के हमलों का नॉर्मल प्रोटेक्शन और इंडेम्निटी इंश्योरेंस पर कोई असर नहीं होगा।
भारत से क्या जुड़ाव : स्वेज नहर से भारत का रिश्ता 1956 के संकट से जुड़ा है, जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इजिप्ट के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर की मदद के लिए दुनियाभर के देशों से अपील की थी। तब इस्राइल, फ्रांस और ब्रिटेन ने इजिप्ट पर चढ़ाई करने का फैसला कर लिया था। नेहरू के उस कदम से ऐसी पार्टनरशिप की नींव पड़ी, जिसने आगे चलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन का रूप लिया।
तेल आयात: वित्त वर्ष 2023 में भारत के कुल क्रूड ऑयल इंपोर्ट का करीब 65 प्रतिशत हिस्सा स्वेज नहर से आया होगा, ऐसा अनुमान है। इसकी कीमत 105 अरब डॉलर है। यूरोप और नॉर्थ अफ्रीका के साथ अगर कुल मर्चेंडाइज ट्रेड की बात करें तो वित्त वर्ष 2023 में भारत से एक्सपोर्ट 106 अरब डॉलर का था और इंपोर्ट 98 अरब डॉलर का। इस आयात का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा और निर्यात का 60 प्रतिशत हिस्सा स्वेज नहर के रास्ते से आया-गया होगा, ऐसा अनुमान है। इसकी कुल कीमत 113 अरब डॉलर सालाना की है।
मशीन के पार्ट्स, कपड़े : भारत मशीन पार्ट्स और कपड़ों जैसे कम कीमत के कंटेनराइज्ड गुड्स इस स्वेज नहर के जरिए यूरोप को निर्यात करता है। स्वेज कैनाल अथॉरिटी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2019 में नहर से जो भी माल गुजरा, उसका 9 प्रतिशत हिस्सा या तो भारत से भेजा गया था या भारत पहुंचा था।
अगली तिमाही तक : सवाल यह है कि यह सब कब रुकेगा? इस पर KPMG के ग्लोबल लॉजिस्टिक्स हेड प्रह्लाद तंवर का कहना है कि ’यह समस्या अगली तिमाही तक बनी रह सकती है।’ पिछले दिनों अमेरिका ने कहा था कि वह ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्डियन के तहत एक टास्क फोर्स बना रहा है। इसमें 10 देशों को शामिल किया गया है। इसका मकसद स्वेज नहर से गुजरने वाले जहाजों की सुरक्षा है।
मध्यस्थ की भूमिका : भारत इंटरनैशनल टास्क फोर्स का हिस्सा नहीं है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि वह मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है क्योंकि ईरान से उसके रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। रिटायर्ड नेवल कोमोडोर और सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के डायरेक्टर उदय भास्कर का कहना है कि ‘भारत को चर्चाओं में शामिल होना चाहिए क्योंकि न केवल हम पर भी प्रभाव पड़ रहा है, हम एक बड़े ट्रेडिंग नेशन भी हैं। चीन भी ऐसा ही है। आज अमेरिका जैसे देशों के बजाय ईरान से भारत और चीन के रिश्ते ज्यादा अच्छे हैं।’