ग्वालियर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने परिवहन विभाग से ऐसी सेवाओं पर शुल्क लेने जो देश के अन्य राज्यों में मुफ्त में दी जा रही हैं उन पर स्पष्टीकरण मांगा है। जिसमें ONLINE फीस जमा करने के दौरान 70 रुपए एडिशनल चार्ज लिए जाने का मुख्य मामला है। हाईकोर्ट ने इस में सुनवाई के दौरान कहा कि देश के 33 राज्यों में लोगों को जो सेवा नि:शुल्क दी जा रही हैं, उनके लिए प्रदेश में क्यों रुपये लिए जा रहा हैं। इस पर परिवहन विभाग स्पप्टीकरण दे। इस याचिका की अगली सुनवाई अब 23 नवंबर को होनी है। विभाग को शपथ पत्र के साथ जवाब देना होगा।
शिवपुरी निवासी विजय शर्मा ने स्मार्ट चिप कंपनी की सेवाओं के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुनील जैन ने तर्क दिया कि यदि कोई व्यक्ति विभाग का कोई शुल्क ONLINE जमा करता है तो उससे 70 रुपए अतिरिक्त जमा करने पड़ते हैं। यह रुपये ट्राजेक्शन शुल्क के नाम पर लिए जाते हैं, जो स्मार्ट चिप कंपनी को दिए जाते हैं। मध्य प्रदेश परिवहन विभाग व केन्द्रीय परिवहन विभाग के बीच जो करार हुआ है, उसके अनुसार ये सेवाएं निशुल्क दी जानी चाहिए, लेकिन इसके लिए 70 रुपये लिए जा रहे हैं। स्मार्ट चिप कंपनी हर महीने ढाई से तीन करोड़ रुपये के बीच कमाती है। सालभर में 30 करोड़ रुपये कंपनी को मिल जाते हैं। जनता का पैसा एक निजी कंपनी को जा रहा है।
ठेका खत्म फिर भी कंपनी काम कर रही है
याचिकाकर्ता का तर्क है कि कंपनी का ठेका दिसंबर 2018 में खत्म हो गया है, फिर भी कंपनी काम कर रही है, जबकि यह कार्य NIC से लिया जाना था। ताकि लोगों को सेवाएं नि:शुल्क मिल सकें। परिवहन विभाग की ओर से कहा गया कि स्मार्ट चिप कंपनी से करार के तहत कार्य लिया जा रहा है। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई थी। बहस के दौरान कोर्ट ने कहा था कि क्या मध्य प्रदेश देश से अलग है। ज्ञात हो इस मामले में स्मार्ट चिप कंपनी ने भी जवाब देने की इजाजत मांगी थी। कोर्ट ने 25 हजार के हर्जाना जमा करने पर जवाब देने की इजाजत दी थी।
आसान भाषा में ऐसे समझें पूरा मामला
– परिवहन विभाग ने 2013 में स्मार्ट चिप कंपनी को ठेका दिया है। ONLINE ट्रांजेक्शन के बदल में 70 रुपये फीस तय की गई।
– किसी भी तरह के ONLINE ट्रांजेक्शन पर 70 रुपए चार्ज देना पड़ता है
– इस कंपनी के माध्यम से होने वाले ONLINE ट्रांजेक्शन से औसतन हर साल परिवहन विभाग को 2800 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है।
– बस का O फार्म जमा करने की फीस 10 रुपये है, लेकिन इस फीस को जमा करने आपरेटर को 70 रुपये अतिरिक्त जमा करने पड़ते हैं।
– सबसे ज्यादा रसीदें ड्राइविंग लाइसेंस की कटती हैं। एक साल में लर्निंग व परमानेंट लाइसेंस के लिए करीब 18 लाख लोग रसीद कटवाते हैं। 12 करोड़ लगभग रुपये ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वालों से मिल जाते हैं।