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BJP की मेयर कैंडिडेट के घर रो पड़े मंत्री; कलेक्टर के फोन से उतरा नेतागिरी का नशा

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भोपाल

चुनाव लड़ना कोई सस्ता सौदा नहीं है। जेब ढीली करनी पड़ती है। पैसा ना हो तो अच्छे-अच्छे के आंसू निकल आते हैं। हुआ यूं कि MP के एक बड़े शहर में मेयर पद के लिए चुनाव लड़ रहीं BJP प्रत्याशी ने अपने घर पर बैठक बुलाई। इसमें कैंडिडेट के बहुत करीबी लोगों के साथ एक मंत्री भी शामिल हुए। सुना है कि बैठक में मंत्री यह कहते हुए आंसू बहाने लगे कि- मैंने आपको टिकट दिलाकर बहुत बड़ी गलती कर दी, क्योंकि मैं आपकी आर्थिक तौर पर मदद नहीं कर पा रहा हूं।

यह सुन कैंडिडेट ने कहा- मैं भी इतनी संपन्न नहीं हूं कि चुनाव में पैसा खर्च कर सकूं। मंत्री ने उन्हें रिश्तेदारों का हवाला देकर इस समस्या से निकलने का रास्ता सुझाया, लेकिन वह नहीं मानीं। उन्होंने कहा- चुनाव के दौरान सब दूर हो जाते हैं। कोई मदद नहीं करता। बता दें कि भले ही दोनों दुखड़ा रो रहे थे, लेकिन चर्चा है कि जो चंदा हुआ, वह कहां गया?

विधायक ने भुना लिया पूर्व मंत्री का मौका

CM शिवराज सिंह नगरीय निकाय चुनाव में BJP के लिए ताबड़तोड़ प्रचार कर रहे हैं। एक रोड शो में भीड़ नहीं जुटने पर ‘सरकार’ नाराज हो गए। सुना है कि ‘सरकार’ पैदल चलने के बजाय गाड़ी में बैठ गए। तब विधायक ने मोर्चा संभाला। 15 मिनट में ही मौके पर कार्यकर्ताओं का हुजूम पहुंच गया। रोड शो का जिम्मा एक पूर्व मंत्री के हाथों में था। खास बात यह है कि इस पूर्व मंत्री की सिफारिश पर टिकट दिया गया। ऐसे में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी भी उनकी ही बनती है, लेकिन विधायक को भीड़ जुटाकर अपनी ताकत का मौका मिल गया।

कलेक्टर का फोन, ठेकेदार ने छोड़ दी नेतागिरी

एक जिले में ठेकेदार ने नेता बनने के लिए पार्षद का चुनाव लड़ने का फैसला किया। पहले BJP से टिकट के लिए लॉबिंग की, सफल नहीं हुए तो निर्दलीय कूद गए। प्रचार भी शुरू कर दिया। BJP के स्थानीय नेताओं ने उन्हें बैठाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। सुना है कि नामांकन वापस करने की अंतिम तारीख से ठीक एक रात पहले कलेक्टर ने उन्हें फोन कर सलाह दी कि वे नाम वापस ले लें। उन्हें समझाया गया कि आप ठेकेदार हैं, यही काम करें। वरना… आगे दिक्कत होगी। ठेकेदार ने अगले दिन नाम वापस ले लिया। उनके समर्थकों ने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा- नेतागिरी के लिए काम धंघा बंद नहीं कराना।

सिंधिया समर्थकों को अफसोस

MP में दो साल पहले हुए पॉलिटिकल ड्रामे की स्क्रिप्ट महाराष्ट्र में रिपीट हुई, लेकिन इसका अंत जिस तरह से मध्यप्रदेश में हुआ, वैसा महाराष्ट्र में नहीं हुआ। क्लाइमेक्स यह आया कि वहां सरकार की बागडोर बागियों के हाथ में सौंप दी गई। ऐसा मध्यप्रदेश में नहीं हुआ। यहां सरकार BJP ने ही बनाई।

हालांकि, सिंधिया को केंद्र में मंत्री बनाकर उनके ओहदे को छोटा होने नहीं दिया। अब सिंधिया के समर्थकों के बीच चर्चा है कि यदि ‘महाराज’ भी एकनाथ शिंदे की तरह सीएम बन जाते तो बरखा.. बहार आ जाती। उनके एक समर्थक नेता की टिप्पणी- वे सौदेबाजी करते तो शायद सीएम बन जाते, लेकिन अफसोस..!

चुनाव की आड़ में ठेकेदारों से वसूली

एक विभाग के बोर्ड को सड़क निर्माण के लिए 200 करोड़ का फंड मिला है, जबकि विभाग का निर्माण से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है, लेकिन मंत्रीजी के दफ्तर से ठेकेदारों को संदेश पहुंचाया जा रहा है कि ठेका चाहिए तो चंदे की रसीद कटवा लीजिए। सुना है कि मंत्रीजी चुनाव की आड़ में वसूली का मौका नहीं छोड़ना चाहते। ये वही मंत्री हैं, जो सरकार में अपना कद बढ़ाने के लिए पूजा करा चुके हैं। बता दें कि मंत्री की ‘सरकार’ से पटरी नहीं बैठती। वैसे भी उन्हें मंत्री पद मिलने में दिल्ली दरबार का रोल रहा है।

अंत में…

मैडम छुट्टी पर, गाड़ी का किराया 2 लाख

अपर सचिव स्तर की एक महिला अफसर दो महीने से छुट्टी पर हैं, लेकिन वे सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल कर रही हैं। जबकि नियमानुसार अवकाश के दौरान सरकारी वाहन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। सुना है कि विभाग ने गाड़ी किराए पर ली है। अब ट्रेवल एजेंट ने 2 लाख रुपए का बिल थमा दिया। बिल देखने के बाद बाबुओं के माथे पर पसीना आ गया। कैसे बिल का भुगतान करें?

मैडम ने अवकाश के दौरान गाड़ी का उपयोग कर लिया। चूंकि मैडम मंत्रालय में पदस्थ हैं, इसलिए विभाग ने फाइल प्रमुख सचिव कार्यालय को भेज दी। अभी देखना बाकी है कि मैडम से वसूली होगी, या फिर कोई रास्ता निकाला जाएगा‌?

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