यदि भारत और चीन में भविष्य में युद्ध हुआ तो भारत 10 दिनों में यह युद्ध हार सकता है. बहुत कम सैनिकों की क्षति पर ही चीन अरुणाचल और लद्दाख को अपने कब्ज़े में ले सकता है. भारत के लिए इसे रोक पाना मुश्किल होगा. यह इसलिए है कि भारतीय सेना एक गलत युद्ध की तैयारी कर रही है. आंख खोलने वाली और बेचैन कर देने वाली इस किताब में सैन्य विशेषज्ञ प्रवीण साहनी (Pravin Sawney) ने बहुत विस्तार से बताया है कि यदि ऐसी खतरनाक स्थिति बनी तो क्या होगा.
चीन का भारत से युद्ध बहुत कुछ 1991 के ‘खाड़ी युद्ध’ जैसा होगा. अमेरिकी सेना के युद्ध नेटवर्क में सेंसर को शूटर, लक्ष्य-भेदी आयुध के साथ जोड़ा गया था और उन्हें अन्तरिक्ष से सहायता दी जा रही थी और इसने दुनिया की सेनाओं को सदमे में डाल दिया था. ठीक इसी तरह चीन भी भारत के ख़िलाफ़ युद्ध में ‘आर्टिफीसियल इंटेलीजेंस’, उभरती तकनीक, विविध क्षेत्रों के ऑपरेशन, कल्पनाशील युद्ध विचारों और रोबोट व मानव के बीच सहयोग के माध्यम से दुनिया को स्तब्ध कर देगा. चीन इसकी तैयारी डोकलाम संकट (2017) के समय से ही कर रहा है. इसके बाद ही उसने स्थाई रूप से अपनी सेना LOC पर जमा कर ली है.
लेखक का तर्क है कि चीन का महाशक्ति का दर्जा और बढ़ेगा और दोनों देशों के बीच ‘क्षमता का अंतर’ और गहरा होगा. और अगर पूर्ण युद्ध हुआ तो भारतीय सेना चीन की ‘आर्टिफीसियल इंटेलीजेंस’ समर्थित युद्ध मशीन का मुकाबला नहीं कर पायेगी. ऐसे युद्ध में परंपरागत ताकतें नुकसान में रहेंगी, परमाणु हथियारों की कोई भूमिका नहीं होगी और सैनिकों की व्यक्तिगत बहादुरी कोई परिणाम नहीं दे पाएगी.
भारत तीन भौतिक क्षेत्रों में युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहा है- समुद्र, स्थल और वायु. वहीं PLA सात क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए तैयारी कर रहा है- वायु, स्थल, समुद्र (समुद्र के नीचे भी), उपर अन्तरिक्ष में, साइबर जगत में, इलेक्ट्रोमैगेनेटिक स्पेक्ट्रम में और अन्तरिक्ष के नजदीक (Hypersonic domain). युद्ध शुरू होने के 72 घंटे के अंदर PLA की अवरुद्ध करने वाली तकनीक (disruption technologies) भारत को अपने प्रभाव में ले लेगी और भारत के प्रतिरोध को बहुत जल्द ख़त्म कर देगी. मुख्य युद्ध का मैदान जमीन नहीं होगा बल्कि साइबर जगत और इलेक्ट्रोमैगेनेटिक स्पेक्ट्रम होगा.
यह किताब बताती है कि क्यों यह महत्वपूर्ण है कि भारत ऐसे युद्ध को घटित होने से रोके. भारत को अमेरिका (जिसकी ताकत इस क्षेत्र में घट रही है) के साथ साझे युद्ध अभ्यास से बचना चाहिए. इसके बजाय भारत को अपने मुख्य विरोधी पाकिस्तान और चीन के साथ शांति कायम करना चाहिए. और इसके साथ-साथ उन क्षेत्रों में अपनी सैन्य व तकनीकी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जहां इसने अभी तक अपने संसाधनों को केन्द्रित नहीं किया है. सिर्फ़ तभी देश की सीमायें मजबूती से सुरक्षित रह सकती हैं. और इस क्षेत्र में भविष्य की शांति और सम्पन्नता सुरक्षित की जा सकती है.
(इसी किताब के फ्लैप से)
- अनुवाद – मनीष आज़ाद