क्या कर रहे थे सांसद, विधायक, पार्षद, महापौर…जब शहर में वॉटर प्लस सिटी के नाम पर नाला टेपिंग पर स्टॉर्म वाटर लाइन का काम शुरू हुआ?
करोड़ो के काम मे केवल कमीशन पर ही फ़ोकस रखा, शहर जाये भाड़ में
विपक्ष की तो बात करना ही बेमानी, निगम के भृष्टाचार में हिस्सेदारी के बाद चुप्पी
नम्बर वन के तमगे ओर स्वयम की ब्रांडिंग में शहर का कर दिया सत्यानाश
…इससे तो मेरा वो पुराना इंदौर ही अच्छा था जहां बारिश का पानी सरपट बहकर निकल जाता था। अहिल्या नगरी की भौगोलिक संरचना ही ऐसी थी कि जलजमाव की कभी नोबत ही नही आई। पानी के प्राकृतिक बहाव के हिसाब से यहां पहले से ही ऐसी जल सरंचनाए थी जिनके जरिये बरसात का पानी सरपट बह निकल जाता था। दो चार इंच नही, सात सात दिन की झड़ी लगती थी..फिर भी कभी शहर में वो दृश्य ओर हालात पैदा नही हुए जो महज साढे 4 इंच की बारिश में हो गए। यह पानी भी एकमुश्त नही बरसा। पहले ढाई इंच। फिर दो इंच। इस बीच घण्टे-डेढ़ घण्टे का अंतराल। बावजूद इसके हाल-बेहाल। अगर किसी दिन एकसाथ 5-7 इंच बरस जाएगा तो क्या होगा?
पानी के प्राकृतिक बहाव की जल संरचनाए, जिन्हें हम नाला कहते है। ये नाले ही ओवरफ्लो को “अटोप” लेते थे।
एक उदाहरण-छोटे बड़े सिरपुर तालाब का। यहां का ओवरफ़्लो या इस हिस्से की जोरदार बारिश का पानी तालाब के सामने से सीधे गीता नगर के पीछे खेड़ापति हनुमानजी मन्दिर के पास वाले नाले से गुजरता, चंदन नगर के पीछे से होता हुआ गंगा नगर तक आता था और यहां से रामानंद नगर के बगल से होता, पंचमूर्ति नगर से गुजरता पँचकुइया आश्रम तक आता था। यहां से भूतेश्वर महादेव के पीछे दास व वीर हनुमान बगीची के बीच से होता हुआ पीलिया खाल के पुल तक सरपट आता था और यहां से हरी पर्वत होता हुआ ये पानी किला मैदान पहुंचता था और वीर गढ़ी हनुमान मन्दिर होता हुआ शहर से बाहर हो जाता था। यानी पानी के प्राकृतिक बहाव की ये जल संरचना बगेर इंजीनियरिंग और बिना करोड़ो खर्च किये जलजमाव वाले पानी को शहर के बाहर कर देती थी। ऐसे ही माणिकबाग, शंकरबाग, लालबाग, बारह मत्था, गणगौर घाट, सरस्वती, कान्ह, चंद्रभागा आदि क्षेत्र से गुजरते नाले जलजमाव को रोकने ओर बरसाती पानी को बहाकर ले जाते थे। कुल मिलाकर ये सारे नाले ही इस शहर को डूबने से बरसो बरस से बचाते आये थे।
अब जब इन्ही नालों की टेपिंग की ( इंदोरियो ने तो ये शब्द भी पहली बार सुना ) बारी आई तो इस पर कितना चिंतन मन्थन ओर अध्ययन होना चाहिए था? कितनी बारीकी से सब पहलुओं को जांचना परखना था? बात आखिर शहर के प्राकृतिक बहाव से जुड़ी थी। लेकिन हुआ क्या? ये सब काम वैसे ही कर लिया गया जैसे किसी घाव पर अंदर से सफाई कर ड्रेसिंग करने की जगह बैंडेज टेप लगाकर मरीज को रवाना कर दिया। ऐसी ड्रेसिंग के बाद अब जख्म रिसेगा ही नही, नासूर भी बनना तय है। ऐसा ही इस शहर के नाला टेपिंग के साथ हुआ।
अब सारा दोष नगर निगम के अफसरों और इंजीनियर्स पर डाला जा रहा है। निःसन्देह ये लोग प्रमुख रूप से दोषी है क्योंकि ये विषय विशेषज्ञ है। इनके पास इसी काम की डिग्री है। लेकिन सवाल उन जनप्रतिनिधियों से जो इस शहर के बीते 20-30 बरस से कर्णधार बने हुए है। जो सत्ता से सीधे जुड़े थे। वे क्या कर रहे थे जब नाला टेपिंग ओर स्टॉर्म वाटर लाइन का बड़ा प्रोजेक्ट्स इस शहर में आया। क्या तब ये नेता सोये हुए थे? कल जो घुटनो तक पेंट चढ़ा चढ़ा कर डूबती हुई जनता के तारणहार बनते फिर रहे थे, वे इस पूरे प्रोजेक्ट पर एक बार भी झांकने आये की मेरे इलाके का क्या होगा? एक बार भी इस बात पर सवाल क्यो नही उठाया कि नालों को बन्द कर वहां क्रिकेट खिलाओगे और खाट लगवाओगे तो बरसात का पानी कहा से होकर गुजरेगा? किसी ने इस पर चिंता क्यो नही जाहिर की कि स्टॉर्म वाटर लाईन के नाम पर ये 6 – 8 इंच के पाईप अतिवृष्टि को झेल पाएंगे? मूसलाधार पानी इनसे होकर गुजर पायेगा? सड़कों पर नाव चलाने की नोबत तो नही ले आएगा?
क्या केवल इसी बात की फिक्र थी कि कैसे भी हो बस पुरुस्कार हमको ही मिलना चाहिए? केवल हमारे कार्यकाल और हमारे नाम की ब्रांडिंग ही दिलो दिमाग में छाई हुई थी? जो नगर निगम की सत्ता पर काबिज़ थे, ज्न्होने ये देखने समझने की जहमत उठाई की नाला ही बन्द कर देंगे तो ओवरफ़्लो कहा से होकर गुजरेगा? किसी ने फिक्र की? सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद, विपक्ष…शहर की भौगोलिक संरचना में हो रहे इतने बड़े परिवर्तन पर मौन कैसे थे? नाला टेपिंग ओर स्टॉर्म वाटर लाइन के मामले में जो अफ़सरो ने जँचा दिया…उसको इन लोगो ने मैदान में जाकर जांचा?
अब “पायचा” उठाकर डूबते शहर का हितेषी बनने का ढोंग करने वाले ये जनप्रतिनिधियो को तब शहर से ज्यादा इस करोड़ो के प्रोजेक्ट्स में “लाभ” नजर आ रहा था। निगम से जुड़े विपक्ष के नेता भी “लाभ” के एक हिस्से मे शामिल थे। एक ने भी इस पूरे प्रोजेक्ट्स का पुरजोर विरोध नही किया। उल्टे वाटर प्लस सिटी का पुरुस्कार लेने और श्रेय का सेहरा बंधवाने के लिए नेता मर मर गए। पुरुस्कार की ट्रॉफी लेकर जुलूस जलसे तुमने सजाए…जयजयकार तुमहारी करवाई… ओर अब शहर डूब रहा है तो अफसर जिम्मेदार….!!! वाह रे मेरे रणबांकुरो…!! ये शहर आपसे जवाब मांगता है…अफ़सरो से नही। उनका अनुराग थोड़े ही है इस अहिल्या नगरी से। वे तो आज इस शहर में, कल उस शहर में। तुम्हे तो आखरी सांस भी तो इसी शहर में लेना है। लेना है न..? तो पहली और आखरी जवाबदेही ही श्रीमानों आपकी ही बनती है। तो दो जवाब शहर को ओर करो दुरूस्त उन गड़बड़ियों को जो इस प्रोजेक्ट्स के तहत हुई। और थोड़ी गैरत हो तो अफ़सरो की जवाबदेही भी तय करना। वरना…हिसाब हर बार आप लोगो से ही पूछा जाएगा कि 276 वर्ग कि.मी. निगम सीमा के क्षेत्रफल की जल संवर्चनाओं का निगम के पास कोई रिकार्ड क्यो नहीं है? गलत योजनाओं पर लगभग 3 हजार करोड़ रुपये से अधिक फूंकने के बाद भी शहर में प्रतिवर्ष डूब क्षेत्र क्यो बड़ता जा रहा है?