तीन जनवरी को 167वें उपवास पर 28 जिनालयों में 15 हजार 596 दीप प्रज्ज्वलित होंगे।
============आम इंसान की बात छोड़िए, किसी तपस्वी साधु संत, आध्यात्मिक धर्मगुरु के लिए भी मौन रह कर 557 दिनों उपवास करना आसान नहीं है, लेकिन यह चमत्कार जैन आचार्य 108 प्रसन्न सागर महाराज सम्मेदशिखर तीर्थ क्षेत्र में कर रहे हैं। इन 557 दिनों में महाराजश्री सिर्फ 61 दिन आहार ग्रहण करेंगे। आहार भी नाममात्र का होगा यानी 496 दिन पूर्ण उपवास पर रहेंगे। संभवत: दुनिया में आचार्य प्रसन्न सागर महाराज अकेले धर्म गुरु होंगे जो मौन रह कर 557 दिनों के उपवास कर रहे हैं। यह उपवास 21 जुलाई 2021 से शुरू हुए और 28 जनवरी 2023 को पूरे होंगे। 3 जनवरी 2022 को उपवास का 167वां दिन होगा। इसलिए 2 जनवरी को देश के प्रमुख 28 जिनालयों में 15 हजार 596 दीप प्रज्वलित किए जाएंगे। चूंकि उपवास मौन व्रत के साथ हो रहे हैं, इसलिए आचार्य श्री से संवाद नहीं हो सकता है। लेकिन उपवास शुरू करने से पहले आचार्यश्री ने अपने अनुयायियों को लिखित संदेश और भावनाएं बताई। इनमें कहा, चलते चलते पैर और मन थक चुका है,खुद को तलाशते तलाशते….। अब ठहराव चाहिए, खुद को ढूंढने के लिए….।
इस संदेश में महाराजश्री ने बता दिया है कि खुद को तलाशने की राह पर निकल चुके हैं। महाराज श्री 557 दिनों के उपवास की जो राह चुनी है उसके परिणाम के बारे में तो वे ही जाने लेकिन सिंहनिष्क्रीडित व्रत के बारे में हरिवंश पुराण में उल्लेख मिलता है। इस शास्त्र के अनुसार उत्कृष्ट सिंहनिष्क्रीडि़त व्रत में एक से लेकर पन्द्रह तक के अंकों का प्रस्तार बनना चाहिए और उसके शिखर में 15 अंक लिखना चाहिए। इसके बाद उल्टे क्रम से एक तक के अंक लिखना चाहिए। इस व्रत में 496 उपवास और 61 पारणाएं होती है। यह व्रत 557 दिनों में पूर्ण होता है। व्रत का फल इस व्रत के फलस्वरूप मनुष्य वज्र वृषभ नाराच संहनन का धारक, अनन्तवीर्य से सम्पन्न, सिंह के समान निर्भय और अणिमा आदि गुणों से युक्त होता हुआ शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है। भगवान महावीर के जीवन ने नंदन मुनिराज के भव में कनकावली, रत्नावली, मुक्तावली और सिंहनिष्क्रीडित आदि अनेकों व्रतों का अनुष्ठान किया था। उसी प्रकार भगवान नेमिनाथ के जीव ने भी तीर्थंकर से तृतीय भव पूर्व सुप्रतिष्ठ मुनिराज की अवस्था में इन कनकावली आदि अनेकों व्रतों का अनुष्ठान किया था और आज तक बहुत से महापुरुष इन व्रतों का अनुष्ठान करते रहते हैं। आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज पूर्व में भी साधना और मौन व्रत कर चुके हैं। सिंहनिष्क्रीडि़त मौन व्रत का महत्व सबसे ज्यादा है, इसलिए देशभर के श्रद्धालु सम्मेदशिखर पहुंचकर महाराज श्री के दर्शन कर रहे हैं। आचार्य श्री के इस उपवास को लेकर सभी धर्मों में चर्चा हो रही है। यूं तो सम्मेदशिखर का पहले ही धार्मिक महत्व है,लेकिन आचार्य श्री के उपवास की वजह से इस धार्मिक स्थल का महत्व और बढ़ गया है। आचार्य प्रसन्न सागर महाराज के उपवास के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414154825 पर जैन समाज के प्रतिनिधि बसंत सेठी से ली जा सकती है।
S.P.MITTAL B