– विवेक रंजन सिंह
‘ का जाने मुरखू गंवार राजा मोरे,हर के जोतइया ‘ ये अवधी लोकगीत का बोल काफी है यह बताने के लिए कि भाजपा द्वारा राम के नाम पर मांगा गया वोट आख़िर अवध के लोगों द्वारा ही क्यों नकार दिया गया।
आगे बात करने से पहले मैं इस अवधी गीत का अर्थ समझा दूं कि ‘ मूर्ख और गंवार राजा को क्या ही पता कि हर जोतना यानी खेती करना क्या होता है ‘।
अमेठी, रायबरेली तो कांग्रेस की पुस्तैनी सीट थी, मगर सुल्तानपुर,फैजाबाद,अंबेडकरनगर,बस्ती,बाराबंकी,
प्रतापगढ़, कौशांबी जैसी सीटों पर भी भाजपा का जादू न चलना यह संकेत करता है कि अवध के लोगों में राम नाम का जादू नहीं चला बल्कि किसी अन्य मुद्दों पर लोगों ने जमकर वोट किया और इंडिया गठबंधन की झोली में ये सीटे आकर गिरीं। इसका जो सबसे बड़ा कारण मुझे समझ आता है वो है यहां के किसानों का एकतरफा विपक्ष को वोट करना।
अवध क्षेत्र हमेशा से ही किसानों का बड़ा गढ़ रहा है। किसानों के बड़े बड़े आंदोलन और विद्रोह यहां की धरती से उठे हैं। बाबा राम चंदर जैसे किसानों के मसीहा ने इसी धरती पर रहकर किसानों के हित की लड़ाइयां लड़ी। गांधी और नेहरू ने भी अवध के किसान विद्रोह को आजादी आंदोलन में प्रमुखता से लिया।भाजपा ने अपने मुद्दों और रैलियों में राम के नाम का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से खूब प्रयोग किया। भाजपा नेता और समर्थकों को पूरा विश्वास था कि राम मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या और आस पास के जनपदों में इसका अच्छा प्रभाव पड़ा होगा मगर परिणाम तो चौंकाने वाले निकले। अयोध्या की सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई। यह पहली बार नहीं हुआ है जब अवध, खासकर अयोध्या में जाति और धर्म के समीकरण बिगड़े हैं और लोगों ने इन मुद्दों से ऊपर उठकर वोट किया है। आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर क्या क्या कारण थे जिन्होंने भाजपा को अवध से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
उन्नीसवीं सदी के बीसवें दशक में अयोध्या का किसान विद्रोह इतिहास में दर्ज बड़े आंदोलनों में शामिल रहा है। उसके बाद से कम्युनिस्ट पार्टी ने नेताओं के आंदोलनों का भी बड़ा गढ़ रहा है अयोध्या। राम मंदिर निर्माण और राम जन्मभूमि की लड़ाइयां तेज होने के बाद भी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने यहां 1989 में जीत दर्ज की थी। भाजपा और खासकर मोदी आर्मी यह समझने की भूल कर बैठी कि अवध के पास राम नाम के अलावा भी कई मुद्दे हैं। विपक्ष और खासकर समाजवादी पार्टी ने इन्हीं मुद्दों को लपका और जीत दर्ज की। अयोध्या शहर को जगमग करने में लगी हुई भाजपा आसपास के ग्रामीण इलाकों की सुध लेना भूल गई। उसे यकीन था कि राम मंदिर निर्माण के बाद रामत्व में डूबी जनता उसी को वोट करेगी मगर ऐसा हुआ नहीं। सिर्फ गोंडा की सीट छोड़कर भाजपा आस पास कहीं नहीं टिक पाई।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के करीब दो हफ्तों बाद अयोध्या में बिताए पांच दिनों में हमने जो अनुभव किया, उससे ये कयास लग गए थे कि शहर में भले ही राम मंदिर के नाम पर लोग खुश है मगर पेट पालने और रोजगार के मुद्दे उनके भीतर जिंदा हैं। ज्यादातर लोगों के घर सड़क चौड़ीकरण में गिराए गए और उन्हें उचित मुआवजा भी नहीं मिला। किसी किसी को तो कुछ भी मुआवजा नहीं दिया गया था। ऊपर से भाजपा के नेताओं के उल्टे पुल्टे और कुतर्क भरे बयानों से भी जनता नाराज थी। कुछ स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना था कि जिन हिंदुओं के मकान सड़क चौड़ीकरण में गए हैं उनमें जो भाजपा से जुड़े हैं उनको तो मुआवजा मिला मगर जो दूसरी पार्टियों से थे उनके एक पैसा नहीं मिला। समाजवादी पार्टी को यादवों की पार्टी मानी जाती है। स्थानीय यादव बिरादरी की शिकायत यही थी कि नाम देखकर मुआवजा दिया जा रहा है। और तो और बिना कोई कारण बताए या पहले से पुनर्स्थापित किए बिना ही उनके घरों पर बुलडोजर चला दिया गया। लोग अपने हाथों में हथौड़ा पकड़े घर तोड़ रहे थे। वो अंदर का रोष मतदान में दिखा और परिणाम आपके सामने है।
अयोध्या में करीब चौरासी प्रतिशत हिंदू और तेरह प्रतिशत मुसलमान हैं। ऐसे में भाजपा का हिंदुत्व कार्ड भी यहां कोई काम करता नहीं दिखा। स्थानीय हिंदू मुसलमानों ने भी इस बात को खुलकर कहा कि बाबरी की घटना के बाद से भाजपा और हिंदू दलों ने यहां लगातार भाईचारे को बिगाड़ने का काम किया है। एक समय था जब मुसलमानों के बनाए खड़ाऊ वहां के साधू संतों के पैरों में सजते थे। अयोध्या और आस पास के इलाकों में ज्यादातर लोग किसान है और वो खेती किसानी से ही अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे में आवारा पशुओं की समस्या को भाजपा ने गंभीरता से न लेकर अपना खुद नुकसान किया। इसके इतर वो गाय, गोबर और गौमूत्र की राजनीति में लगी रही। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इन मुद्दों को उठाया और जन समर्थन प्राप्त कर इन सीटों पर विजय सुनिश्चित की। वैसे प्राण प्रतिष्ठा के बाद से भाजपा जिस माहौल की अपेक्षा कर रही थी वो चुनाव में नहीं दिखा। भाजपा समर्थकों को भी इस बाद का अंदेशा हो गया था कि मंदिर मस्जिद की राजनीति से उन्हें खास फायदा नहीं होने वाला।
आंखों देखी बात कही जाए तो अयोध्या शहर में लोग इस बात से भी नाराज थे कि अयोध्या का स्थानीय व्यापार बड़े बड़े पूजीपतियो के हाथों में जा रहा है। ये बात अलग है कि पर्यटकों के आने से उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ है मगर वो अपने जीवन में एक स्थायित्व और आने वाली पीढ़ियों के लिए सम्मानजनक रोजगार की भी आशा रखते हैं। मोदी सरकार ने पिछले दस सालों में स्थाई नौकरियों को खत्म किया है, इसको नकारा नहीं जा सकता। एक विशेष कंपनी अयोध्या के नजदीक अपनी फैक्ट्री लगा चुकी है और उसके बड़े बड़े बैनर अयोध्या राम मंदिर के नजदीक तक पटे नजर आए। बुलडोजर वाले फंडे से भी जनता अक्रोशित दिखी थी और उनका कहना था कि आम आदमी के घरों पर ये बुलडोजर ज्यादा चले हैं। हनुमानगढ़ी मंदिर के सामने नए बुलडोजर को खड़ा करना और उसकी पूजा करना, आखिर इस सरकार की कैसी सोच को प्रदर्शित करता है, आप बताइए?
अयोध्या में निषादों की संख्या भी ठीक ठाक है। चौरासी प्रतिशत हिंदू वोटर में करीब सत्ताइस प्रतिशत ओबीसी वोटर हैं। ऐसे में जातिगत समीकरण भी भाजपा की हार का बड़ा कारण बना है। अयोध्या शहर के बाहरी छोर पर सरयू किनारे रहने वाले निषादों की काफी जमीनें सड़क चौड़ीकरण में गई हैं। चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग के चौड़ीकरण में ज्यादा हिंदुओं के ही मकान गए हैं,जिससे वहां के स्थानीय लोगों ने लगातार नाराजगी देखने को मिलती रही है। उसका असर चुनाव में साफ साफ दिखा है। भाजपा को अपनी हार के इन कारणों को स्वीकार करना ही होगा।
इन कारणों के साथ एक बड़ा कारण यह भी समझ आ रहा है कि भाजपा अपनी पहुंच गावों तक नहीं बना पाई। वो इस मुगालते में रही कि शहरों की चकाचौंध से वो गांव की जनता को भी प्रभावित कर ले जाएगी। विपक्षी पार्टियों ने गांवों में जमकर जनाधार तैयार किया। वहां के स्थानीय मुद्दों और समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया और परिणाम उनकी मेहनत के अनुरूप ही आया। भाजपा को इस बात से बड़ा धक्का लगा है कि राम नाम की राजनीति से उसे खास फायदा नहीं मिला। अमेठी में कांग्रेस की वापसी और रायबरेली में राहुल गांधी का बंपर वोट से जीतना, वहीं दूसरी ओर वाराणसी में नरेंद्र मोदी का मामूली अंतर से विजई होना ये भी बताता है कि 2014 में मोदी का बनाया तिलिस्म इस बार टूटा है। मोदी सरकार आज एन डी ए की सरकार बन कर रह गई है। वाराणसी में भी जनता का मोदी के प्रति मोह भंग हुआ है। हिंदू मुसलमान तुष्टीकरण और नरेंद्र मोदी के छिछले बयानों ने भी जनता का मूड बदला है।
बगल की सीट सुल्तानपुर और अमेठी की बात करें तो मेनका गांधी और स्मृति ईरानी का हराना भी भाजपा के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ है। इन सभी जिलों में किसानों की संख्या काफी है। खेती बाड़ी से हुए नुकसान के चलते काफी किसानों ने अपने खेतों को कई सालों से खाली छोड़कर रखा है। किसानी से लागत भी नहीं निकल पाती और ऊपर से छुट्टे जानवरों के द्वारा किया गया नुकसान अलग। प्रियंका गांधी ने आस पास के क्षेत्रों में की गई रैलियों में आवारा पशुओं की समस्या को गंभीरता से उठाया था। उधर स्मृति ईरानी बाईपास, सड़क और सस्ती चीनी जैसे मुद्दों से ही खेलती रहीं और बाजी इंडिया गठबंधन ने मार ली।
नाम बदलने की राजनीति भी इस बार काम नहीं आई। फैजाबाद से अयोध्या बनना भाजपा के लिए कोई खास फायदेमंद साबित नहीं हुआ। प्रयागराज के साथ भी यही देखने को मिला है। अयोध्या ने भाजपा को एक आईना दिखाया है और इस बात का सबक दिया है कि धर्म से अलग भी जनता के मुद्दे होती हैं बल्कि वो मुद्दे धर्म से कहीं ज्यादा जरूरी होते हैं। राम के भरोसे देश का जनाधार बटोरने वाली भाजपा जरूर इस परिणाम से सबक लेगी।
विवेक रंजन सिंह
(छात्र, पत्रकारिता विभाग महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा )