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दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का फरमान  असंवैधानिक और मानवाधिकार विरोधी 

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मुनेश त्यागी 

     उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ मार्गों पर दुकानदारों द्वारा अपने मालिक और मजदूरों की नेम प्लेट लगाने का फरमान जारी किया है। इसे लेकर जैसे पूरे क्षेत्र में सरकार विरोधी तूफान आ गया है। सरकार के इस मनमाने और एकतरफा आदेश के खिलाफ आज व्यापारियों, वकीलों द्वारा द्वारा प्रदर्शन किए गए और सरकार से मांग की गई कि इन जन विरोधी आदेशों को तुरंत वापस लिया जाए।

     बहुत सारे वकीलों ने और सैकड़ो व्यापारियों ने अपने काम छोड़कर प्रदर्शन किये और राज्यपाल और राष्ट्रपति को ज्ञापन दिए, जिनमें मांग की गई कि नफरत फैलाने वाले इन सांप्रदायिक आदेशों को तुरंत वापस लिया जाए। वकीलों ने इन तुगलकी फरमानों को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक मनमाने, एक तरफा गैर कानूनी, जन विरोधी, मानवाधिकार विरोधी और साझी संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब के खिलाफ बताया।

     उनका कहना था कि ये तुगलकी आदेश जनता का आपसी भाईचारे को तोड़ने वाले हैं और उनके अंदर हिंदू मुसलमान की नफरत फैलाने वाले हैं। ये आम जनता की एकता तोड़ने वाले हैं। जब उनसे पूछा गया की सरकार ऐसा क्यों कर रही है तो उन सबका कहना था कि सरकार पिछले चुनावों के परिणामों से डर गई है, वह बौखला गई है, उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई है और उसकी हिंदुत्व की सांप्रदायिक राजनीति की जमीन धसक गई है। वह जनता की जागरूकता से डर गए हैं। अतः जनता की एकता तोड़ने के लिए और जनता में धर्म की नफरत फैलाने के लिए और फिर से सत्ता में बने रहने के लिए यह सरकार ऐसा कदम उठा रही है।

    जब इस बारे में कुछ प्रोफेसरों से बात की गई तो वे भी सब के सब अचंभित थे और उन सब का कहना था कि सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे समाज में नफरत फैलेगी, भाईचारा टूटेगा और लोगों को आर्थिक नुकसान होगा, जिसका सबसे बड़ा खामियाजा गरीब मजदूरों को भगतना पड़ेगा।

     इस बारे में बहुत सारे व्यापारी नेताओं, चाय वालों, दर्जियों, सब्जी वालों, फल विक्रेताओं, चाट पकड़ा समोसा बेचने वालों, हिंदू मुसलमान नाइयों और घर का सामान, खाने पीने का सामान बेचने वालों से बात की गई, तो वे सब के सब अचंबे में थे और उनका कहना था कि सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए, इससे समाज में नफरत फैलेगी, आपसी भाईचारा टूटेगा और उन सबके काम और व्यवसाय आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे। सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस ले लेना चाहिए।

     सरकार के इस एक तरफा आदेश से सैकड़ो साल से चली आ रही कावड़ यात्रा, “नफरत यात्रा” में बदल गया बदल गई है और सरकार ने अपनी सांप्रदायिक राजनीति के तहत और फिर से सत्ता में आने की हवस के तहत, इस मिलीजुली कावड़ यात्रा को नफरत यात्रा में बदल दिया है। सरकार का यह हमला एकदम अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के खिलाफ है। सरकार ऐसा करके नफरत की राजनीति को बढ़ा रही है। यह जनता के रोजगार के अधिकार पर हमला है और सरकार ऐसा करके जैसे अल्पसंख्यकों पर आर्थिक हमला कर रही है। यह सरकार की मुसलमानों की आर्थिक बहिष्कार की सरकारी नीति जैसी है।

     अधिकांश नौजवानों का कहना है कि सरकार के पास जनता की समस्याओं को हल करने की कोई नीति नहीं है। सरकार अपने वादों और नारों से मुकर गई है। सरकार ने जनता की रोटी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य महंगाई भ्रष्टाचार की समस्याओं का कोई हल नहीं किया है। उसने बेरोजगारों को नौकरियां नहीं दी हैं। अब क्योंकि जनता उसके खिलाफ हो गई है, अतः जनता की एकता तोड़ने के लिए और अपनी सत्ता और सरकार बचाए रखने के लिए वह ऐसा कर रही है।

      सरकार का यह क़दम साझी विरासत पर और गंगा जमुनी तहजीब पर बहुत बड़ा हमला है। यहां पर हमेशा से हिंदू मुसलमानों के सहयोग से कावड़ यात्राएं निकलती रही हैं। अधिकांश कांवड़ मुसलमान ही बनाते रहे हैं। बहुत सारे मुसलमान असंख्य कांवडियों को खाना खिलाते हैं, उनकी सेवा करते हैं, उनके हारे थके पैरों को दबाते हैं, उनके घायल पैरों की मरहम पट्टी करते हैं। सैकड़ों साल से कावड़ यात्राएं जारी हैं, मगर पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। अब अचानक ऐसा क्या हो गया? सबके सब अचंबे में हैं।

     सरकार के इस कदम से अधिकांश राजनीतिक पार्टियों सहमत नहीं हैं। सरकार के सहमत दल जैसे रालोद और चिराग पासवान की पार्टी सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। दूसरी विपक्षी पार्टियों बसपा, कांग्रेस, सपा, सीपीआई, सीपीएम और सीपीआईएमएल ने इसे असंवैधानिक और धर्म विशेष का आर्थिक बहिष्कार बताया है, इसकी कड़ी निंदा की है और इसे जातीय और सांप्रदायिकता को बढ़ाने वाला कदम कहा है। इन सभी विपक्षी दलों ने सरकार से अपने इस कदम को वापस लेने की मांग की है।

    सरकार का यह कदम एकदम मनमाना और जनता को बांटने वाला, उसमें नफरत फैलाने वाला फासीवादी कदम है। 80 साल पहले जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने भी यहूदियों के खिलाफ ऐसी ही नफरत फैलाई थी। उन सांप्रदायिक हमलों में 60 लाख से ज्यादा यहूदियों को अकाल मौत के घाट उतारा गया था।

       आज हमें इस असंवैधानिक, गैर कानूनी, मनमाने, अलोकतांत्रिक और मानवाधिकार विरोधी और नफरत फैलाने वाले कदमों को रोकने की और उनके खिलाफ जोरदार आवाज उठाने की जरूरत है। ऐसे में हम चुप्पी नहीं साध सकते और अलग थलग नही रह सकते, वरना हमारी चुप्पी बहुत खतरनाक साबित होने जा रही है। यहां पर जर्मन कवि पास्तर निलोमर की मशहूर कविता के साथ हम यही कहेंगे,,,,

पहले वे यहूदियों के लिए आए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।

फिर वे कैथोलिकों के लिए आए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं कैथोलिक नहीं था।

फिर वो कम्युनिस्टों के लिए आए,
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।

फिर वे ट्रेड यूनियनिस्टों के लिए आए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनिस्ट नहीं था।

फिर वे मेरे लिए आए
और फिर वहां
मुझे बचाने के लिए कोई नही था।

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