शोषण और बदहाली से तंग पीओके के लोग खुद अब भारत में शामिल होना चाहते हैं
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में पिछले कुछ दिनों से आटे की आसमान छूती कीमत और बिजली के बिल में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन जारी है। वहां की बदहाली का मुख्य कारण पीओके के साथ पाकिस्तान का सौतेला व्यवहार है। पाकिस्तान पीओके के संसाधनों की लगातार लूट में लगा है। इसी नीति के विरोध में यह प्रदर्शन उग्र रूप ले चुका है। लोगों का कहना है कि पीओके स्थित मंगला बांध से उत्पादित बिजली की पाकिस्तान में आपूर्ति की जाती है। हमें मिलने वाली सब्सिडी बंद कर बिजली के बिल में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की गई है।
पीओके स्थित मंगला से बांध दो से ढाई हजार मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसकी उत्पादन लागत दर ढाई से तीन रुपये प्रति यूनिट है और पाकिस्तान सरकार उपभोक्ताओं से 50 से 60 रुपये प्रति यूनिट वसूल करती है। इस आंदोलन का नेतृत्व जम्मू-कश्मीर संयुक्त आवामी एक्शन कमेटी कर रही है। आंदोलन को कुचलने के लिए हजारों की संख्या में रेंजर्स तैनात किए गए हैं। इसमें दोनों तरफ से हुई झड़पों में आंदोलनकारी, रेंजर्स और पुलिस कर्मचारी मारे गए हैं। अब इस मुद्दे की गूंज ब्रिटेन और कई देशों में पहुंच गई है। ब्रिटेन में पाकिस्तान कश्मीर पीपुल्स पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान वाणिज्य दूतावास के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार, अब मुजफ्फराबाद में हेलीकॉप्टरों के माध्यम से सेना के कमांडो की तैनाती की जा रही है, जिससे हिंसा और जान-माल के नुकसान की आशंका और ज्यादा बढ़ गई है। पीओके के हालात अब इतने बदहाल हो गए हैं कि वहां के लोग पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ खुली बगावत पर उतर आए हैं। वे खुलेआम कह रहे हैं कि ‘हम भारत में शामिल होना चाहते हैं, कम से कम हमें वहां दो वक्त की रोटी तो मिल जाएगी। यहां जीना दूभर हो गया है। यहां के प्राकृतिक संसाधनों को पाकिस्तान लूट रहा है। वह अपनी जरूरत की चीजें निकाल कर ले जाता है, लेकिन हमें कुछ नहीं मिलता।’
गौरतलब है कि विगत 10 मई को वहां भारतीय तिरंगा लहराए गए। कई जगह पर ‘हमें भारत से मिला दो’ के नारे लिखे हुए पोस्टर भी लगाए गए। दरअसल पीओके के लोग देख रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर के निवासी शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में खुशहाली और विकास की नई लहर चल पड़ी है। हाल ही में हुए संसदीय चुनाव में जम्मू-कश्मीर में 38 फीसदी का रिकॉर्ड मतदान हुआ, जो पहले हुए मतदानों से काफी ज्यादा है।
पाकिस्तान की सरकार ने पीओके को 23 अरब पाक रुपये का अनुदान दिया है, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। हकीकत तो यह है कि पीओके के लोग पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर अब बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते। इसलिए अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पीओके जाकर बातचीत के जरिये वहां की समस्याओं का हल निकालना चाहते हैं। अब देखना होगा कि उनकी बातचीत क्या रंग लाएगी। देखा जाए, तो 1947 के बाद भारत की किसी भी सरकार ने पीओके को पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की। लेकिन हमारी मौजूदा मोदी सरकार के रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री ने पीओके के संजीदा हालात को देखते हुए कहा है कि पीओके भारत का हिस्सा है और हम इसे हर हाल में पाकिस्तान के चंगुल से निकाल कर रहेंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत इसे वापस लेने के लिए ठोस कदम उठाएगा, ताकि इसके दूसरे हिस्से को जम्मू-कश्मीर के साथ मिलाया जा सके। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात काफी बेहतर हुए हैं। इससे पहले संसद में दो प्रस्ताव भी पास हो चुके हैं। अब पाकिस्तान से हिसाब लेने का समय आ गया है। पीओके में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई वहां के युवाओं को हथियार और प्रशिक्षण देकर भारत के खिलाफ भड़काती है और जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करा रही है। पीओके में आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर भी बने हुए हैं। अगर पीओके को कब्जे से छुड़ा लिया गया, तो ये शिविर बंद हो जाएंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि आगामी चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब नई सरकार का गठन हो जाएगा, तो इसके तुरंत बाद सरकार अपने एजेंडे में पीओके की वापसी को प्राथमिकता में रखेगा।