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वैज्ञानिक सोच और विवेकशीलता से ही होगा देश की जनता का भला 

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मुनेश त्यागी 

        आजकल हमारे देश में अंधविश्वास और धर्मांधता की आंधी चल रही है। पूरे परिवेश को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे हमारे समाज को हमारे वर्तमान लुटेरे शासक वर्ग ने अज्ञानता और  अविवेकशीलता के गड्ढे में डाल दिया है। अखबार पढ़ना और टीवी देखना जैसे गुनाह हो गया है। वहां पर ज्ञान विज्ञान और मनुष्यता का अकाल पड़ा हुआ है। चारों तरफ काल्पनिक देवी देवताओं की बात हो रही है। हमारे मीडिया संस्थान और अधिकांश अखबार धर्मांधताओं और अंधर्विश्वासों को फैलाने के माध्यम बन गए हैं।

       इन माध्यमों पर आज मनुष्य द्वारा की गई देश दुनिया में ज्ञान विज्ञान की तरक्की का कोई उल्लेख नहीं होता, कोई कार्यक्रम पेश नहीं किया जाता। बस चारों तरफ काल्पनिक देवी देवताओं की धूम मची हुई है और जनता ने तो जैसे ज्ञान विज्ञान की बात करना छोड़ ही दिया है। वह आजकल अपनी मूलभूत समस्याओं जैसे रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार महंगाई गरीबी अन्याय जुल्मों सितम पर कोई चर्चा नहीं करती और कमल तो यह हो गया है कि वह यह मान बैठी है कि वह जो भोग रही है वह सब उसके पूर्व जन्मों का फल है और हद तो यह भी हो गई है कि अब उसे अपनी मूलभूत समस्याओं से पार पानी का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है, इसलिए वह धर्मांता और अंधविश्वास के गर्त में जाना अपनी नियति समझ रही है।

       समाजवादी मुल्कों को छोड़कर, तमाम पूंजीवादी और धार्मिक देशों में जनता को बचपन से ही धर्मांधता, अज्ञानता और अंधविश्वास की घुट्टी पिलाने और पाठ पढ़ाने शुरू कर दिए जाते हैं। हमारे देश के सभी धर्मों के अधिकांश लोगों को बचपन से ही धर्म, धर्मांधता, अंधविश्वास, पाखंडों और अवैज्ञानिक विचारों की घुट्टी पिलानी शुरू कर दी जाती है और इन सब विज्ञान विरोधी और जन विरोधी विचारों का साम्राज्य इतना व्यापक, गहरा और सर्वमान्य हो जाता है कि अधिकांश जनता जीवन भर इनकी सच्चाई और असलियत को जान पहचान ही नहीं पाती है।

     हमारे समाज और देश के आदमी को, स्वार्थी तत्वों द्वारा पिछले हजारों साल से अनेक अवैज्ञानिक तथ्यों और जानकारियों का गुलाम बनाकर रखा गया है। वह  इनको सही, सच और असली मानकर अपने विचारों और जीवन को इसी तरह ढाल लेता है और फिर समाज में वैसा ही व्यवहार करने लगता है। वह कभी यह जान ही नहीं पता कि उसके साथ यह सब अमानवीय और अज्ञानता का व्यवहार क्यों किया जा रहा है?

    हजारों हजार साल से यही होता चला आ रहा है। इन्हीं अंधविश्वासों, धर्मांधता और अज्ञानता की वजह और शिक्षा और संसाधनों के अभाव में आदमी पुराने समय से ही सैकड़ों बीमारियों जैसे चेचक, हैजा, मलेरिया, उल्टी दस्त, अंधापन, अपंगता, दिमागी बीमारियों, नजला, जुकाम आदि का शिकार रहा है। पर्याप्त दवाइयों के अभाव में अपना समुचित इलाज नहीं करा पाता था और इन सब को देवीय योग मानकर संतोष कर लेता था और उनके भाग्य में यही बदा है और यह सब उनके पिछले जन्मों का फल है, यह कहकर उन्हें चुप करा दिया जाता था।

     उन्हें हजारों सालों से सामंती शोषण, अन्याय, भेदभाव, छुआछूत, गरीबी, ऊंच-नीच, छोटा बड़ा की सोच और जुल्मों सितम का शिकार बनाकर रखा गया है और प्रभु वर्ग यानि शोषक वर्ग द्वारा उन्हें बहका दिया गया कि यह सब पुराने जन्मों का फल है और ये अत्याचार अनाचार क्यों होते हैं? इनके कारण उन्हें कभी नहीं बताए गए और वे इन सब को ईश्वरीय और देवीय मानकर, इन जुल्मों सितम और अत्याचारों को हजारों वर्षों तक सहन करते रहे हैं।

       वैसे अगर गौर से देखा जाए तो वैज्ञानिक सोच समझ और व्यवहार पुराने जमाने में भी था। खेत खलियान, हल हथियार, लोहार बढ़ई, मकान निर्माण, भोजन पाक शास्त्र की जानकारी तब भी थी। किसानों मजदूरों को कब खेत जोतना है, कब फसलों को पानी देना है। हमारे दलित हजारों साल से जानते थे कि जानवरों की खाल को उतारकर उनसे कैसे जूतियां, जूते, बैग आदि बनाए जाते हैं और कैसे कपड़ों के अभाव में जानवरों की खाल को ओढ़ा जाता था। हल, दराती, फावडा आदि का ज्ञान उसे पहले से ही था, मगर इसे कभी अहमियत नहीं दी गई और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी को जनता में नहीं बांटा गया और उसे समाज की सोच का हिस्सा नहीं बनने दिया गया।

     इसका स्वरूप, आकार और दायरा वैश्विक था। यूरोप में  सैंकड़ों साल के अंधे युग में और उसके बाद यही हो रहा था। वहां वैज्ञानिक सोच विचारों को दबाया जा रहा था। कॉपरनिकस, ज्यार्दन ब्रुनो और कई वैज्ञानिकों के साथ यही किया गया था और ज्यार्दन ब्रुनो को तो जिंदा ही जला दिया गया था। कोपरनिकस को आजीवन अज्ञात वास में रखा गया।उनका उसका दोष इतना था कि उन्होंने यह कहा था कि “पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है।” इससे पूरी ईसाई दुनिया में तहलका मच गया और सैकड़ों साल पुरानी मान्यताओं और अंधविश्वास की जड़ें हिल गईं। मगर  इसके बावजूद भी वहां लगातार ज्ञान विज्ञान की खोज और प्रचार प्रसार होता रहा, अन्वेषण और आविष्कार जन्म लेते रहे और ये विचार पिछले 100 सालों में सारी दुनिया में फैल गए।

   इससे धर्म, आस्था और अंधविश्वास की सोच और साम्राज्य को धक्का लगा और दुनिया में लगातार ज्ञान और विज्ञान के विचारों को बढ़ावा मिलता रहा, उनका प्रचार प्रसार होता रहा। ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार बढ़ता गया, वैज्ञानिकों ने दुनिया के हर क्षेत्र में लगातार खोजें कीं और देश दुनिया के ज्ञान विज्ञान के अध्ययन और पठन-पाठन को गति प्रदान की।

    रूस में 1917 में किसानों मजदूरों की समाजवादी क्रांति होने के बाद, वहां वैज्ञानिक शिक्षा और संस्कृति का काफी विस्तार और प्रचार प्रसार किया गया और समाजवादी देशों में होती हुई यह वैज्ञानिक संस्कृति, दुनिया की अनेक पूंजीवादी देशों में भी फैल गई। बाद में इस ज्ञान विज्ञान के बल पर आदमी ने अपनी हजारों साल पुरानी समस्याओं और बीमारियों पर काबू पा लिया। प्रकृति पर अनेक विजय प्राप्त की और बीमारियों, बाढ़, पाला, अतिवृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं पर काबू पा लिया। वहां की जनता ने देखते ही देखते नदियों पहाड़ों पत्थरों को नाथ दिया। वहां पर यातायात के साधनों का जाल बिछा दिया और मनुष्य को प्रकृति का विजेता बना डाला।

     धीरे धीरे ज्ञान विज्ञान का प्रचार प्रसार होने पर विश्व के सारे ईश्वरीय, देवीय, अंधविश्वासों और पाखंडों पर विजय प्राप्त कर ली गई। इसी ज्ञान विज्ञान के बल पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक आपदाओं के भेद खोले गए और विज्ञान विज्ञान के बल पर इन पर विजय प्राप्त की गई। ज्ञान विज्ञान आने के बाद सामंती और अंधेरे युग के विचारों का साम्राज्य खत्म कर दिया गया। इसी ज्ञान-विज्ञान के सहारे वहां हजारों साल पुरानी गरीबी, शोषण, अन्याय, जुल्म भेदभाव, पिछड़ेपन अज्ञानता, अंधविश्वासों और धर्मांधताओं पर विजय प्राप्त की गई। मगर अफसोस है कि हमारे देश में यह सब आज भी जारी हैं।

      ज्ञान विज्ञान के इन्हीं विचारों के प्रचार-प्रसार के बल पर देश, दुनिया और समाज में समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, जनतंत्र, गणतंत्र, आजादी, भाईचारे और  क्रांति व समाजवाद के विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ और नए किस्म का आधुनिक समाज पैदा हुआ जिसमें शोषण, जुल्मो सितम, अन्याय, भेदभाव, उऊच नीच और छोटे-बड़े की सोच का खात्मा कर दिया गया। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के देवीय और ईश्वरीय विचारों के साम्राज्य धराशाई हो गए। 

     भारतीय समाज में भी इसी ज्ञान विज्ञान का प्रचार प्रसार करने के लिए भारतीय संविधान में समय-समय पर संशोधन किए गए और इसी ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार पर और ज्यादा बल देने के लिए संविधान में धारा 51a को लागू किया गया जिसे फंडामेंटल ड्यूटीज यानी मूलभूत कृतव्यों का नाम दिया गया और नागरिकों और सरकार की यह जिम्मेदारी तय की गई कि वे भारतीय समाज में वैज्ञानिक विचारों और संस्कृति, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना का विकास करेंगे।

       अफसोस की बात है कि भारतीय संविधान में फंडामेंटल ड्यूटी का प्रावधान करने के बाद भी हमारा देश आज भी अवैज्ञानिकता और बौद्धिक अंधकार के काल में ही सो रहा है। उसने जनता में ज्ञान विज्ञान की ज्योति नहीं जलाई और विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए, जैसा इंतजाम समाजवादी मुल्कों और कई पूंजीवादी राष्ट्रों में किया गया, वह काम हमारी सरकार ने और हमारे नागरिकों ने नहीं किया। हमारे बहुत से धार्मिक संगठन आज भी उन्हीं अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी और धर्मांध रीति-रिवाजों से लिपटे चिपटे हुए हैं, उन्हीं में मगन हैं और वे इसी अंधविश्वासी मानसिकता का इस्तेमाल करके अपनी पेट पूजा और अपन स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं और जनता को मूर्ख बनाये हुए हैं।

   मगर हमारे देश का प्रभु वर्ग आज भी इन्हीं पुरातनपंथी विचारों से चिपका हुआ है। वह आज भी इन्हें खत्म नहीं होने देना चाहता है। इन जनविरोधी अंधविश्वासों, परंपराओं और पाखंडों को दूर करने के लिए हमारा राष्ट्र, जनता के बीच कोई काम नहीं कर रहा है और वह आज भी जनता को अंधविश्वासों और धर्मांधता का गुलाम बनाए रखना चाहता है ताकि उसकी स्वार्थ पूर्ति होती रहे, उसकी उदर पूर्ति होती रहे।

    हम पूरे इत्मीनान के साथ कह सकते हैं कि इसी ज्ञान विज्ञान की संस्कृति के बल पर ही हमारे देश और समाज का कल्याण हो सकता है। इसी वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान के सिद्धांतों के प्रचार प्रसार से, भारत में जारी और बची हुई अज्ञानता, धर्मांधता, अंधविश्वास, मानसिक गुलामी और पाखंडों का खात्मा और विनाश किया जा सकता है और तभी हमारा देश तरक्की और विकास के रास्ते पर आरूढ़ हो सकेगा।

       इसी वैज्ञानिक और ज्ञान विज्ञान की संस्कृति से, हमारे देश और दुनिया की जनता का कल्याण हो सकता है और हमारा देश और समाज आगे बढ़ सकता है। जब हमारे देश की पूरी जनता और सब धर्मों के लोग, इसी ज्ञान-विज्ञान की संस्कृति, विचारधारा, सोच और मानसिकता से ओतप्रोत हो जाएंगे और इसी में रच बस जायेंगे, तभी हमारा देश दुनिया का विश्व गुरु बन पाएगा।

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