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राजस्थान के सफाई कर्मियों की हड़ताल से प्रदेशवासी परेशान

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एस पी मित्तल, अजमेर 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत महंगाई राहत शिविर लगाकर लोगों को राहत देने का दावा कर रहे हैं लेकिन वहीं सफाई कर्मियों की हड़ताल से प्रदेशवासी पिछले चार दिनों से बुरी तरह परेशान है। हड़ताल की वजह से घर घर कचरा संग्रहण का कार्य ठप हो गया है, तो वहीं सड़कों पर झाड़ू तक नहीं लग पा रही है। यह स्थिति राजस्थानी जयपुर से लेकर तीर्थ नगरी अजमेर तक की है। पार्षद, विधायक और सांसद तो ऐसे हो गए हैं, जैसे उन्हें जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। इस हड़ताल में मुख्य भूमिका वाल्मीकि समाज की है। वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार ने सफाई कर्मियों के तौर पर गैर वाल्मीकि समाज के लोगों की भर्ती कर ली है, लेकिन जाट, गुर्जर, रावत, मेघवाल और अन्य जातियों के कार्मिक अब सफाई का कार्य नहीं कर रहे। सड़क पर झाड़ू लगाने से लेकर नाली-नालों की सफाई करने तक का कार्य पहले की तरह सिर्फ वाल्मीकि समाज के लोग ही कर रहे हैं। गैर वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मी निकाय दफ्तरों में बैठ कर बाबूगिरी कर रहे हैं। वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधियों की यह मांग जायज है कि जिस कर्मियों की भर्ती सफाई कर्मी के पद पर हुई है, उसे सफाई का कार्य करना होगा। लेकिन वाल्मीकि समाज को अपनी इस मांग पर पुनर्विचार करना चाहिए कि सफाई कर्मियों की भर्ती में वाल्मीकि समाज को प्राथमिकता दी जाए। सवाल उठता है कि वाल्मीकि समाज स्वयं को सफाई कार्य तक ही सीमित क्यों रखना चाहता है? देश में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत वाल्मीकि समाज के युवा पार्षद विधायक सांसद मंत्री बन सकते हैं तब वाल्मीकि समाज को सफाई कर्मी तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार वाल्मीकि समाज के लोग प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से बाबू से लेकर आईएएस और आईपीएस बन रहे हैं, तब भी समाज के युवाओं को सिर्फ सफाई कार्य ही नहीं करना चाहिए। वाल्मीकि समाज के लिए यह अच्छी बात है कि दूसरी जातियों के लोग भी सफाई कमी का कार्य करने को तैयार हैं। वाल्मीकि समाज के जो व्यक्ति सांसद, विधायक, पार्षद और बड़े अधिकारी बन गए हैं उनकी यह जिम्मेदारी है कि वे अपने समाज में शिक्षा को बढ़ावा दे और युवाओं को कुरीतियों से बचाएं। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो युवा प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गया है वह अपने ही समाज से दूर हो जाए। देश में वाल्मीकि समाज के कई युवा हैं जो आईएएस और आईपीएस के पद पर बैठे हुए हैं। सरकारी नौकरी में आने के बाद कोई भेदभाव नहीं होता है। वाल्मीकि समाज के जो लोग प्रभावशाली पदों पर बैठे हुए हैं उनका यह दायित्व है कि वे अपने समाज को आगे बढ़ाए। सरकार को भी गैर वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मियों से सड़कों पर झाड़ू लगाने का काम करवाना चाहिए। 

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