सुसंस्कृति परिहार
अभी तक हम यह सुनते आए हैं कि बकरे की अम्मा अब तक खैर मनाएगी लेकिन यह जानकर आप आश्चर्य चकित रह जायेंगे कि आने वाले कल में बकरे की अम्मा बकरीद पर होने वाली कुर्बानी से खैर मनाएगी। पिछले दिनों त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में ईदुल अजहा के पूर्व इस बात का ऐलान किया गया कि जो व्यक्ति इस दिन बकरे को हलाल करेगा अब उसकी खैर नहीं।
त्रिपुरा के पशुसंसाधन विकास विभाग के सचिव डा टी के देबनाथ और निदेशक डी के चकमा ने एजेंसी के मुताबिक प्रेस कांफ्रेंस में कहा-किअब बकरीद पर किसी पशु की कुर्बानी नहीं हो सकेगी तथा कुर्बानी की परमीशन भी नहीं दी जाएगी। कांफ्रेंस में यह बताया गया कि यह पशु क्रूरता निवारण नियम2001 से सम्बंधित है अगर शहर में यह हुआ तो कुर्बानी को पूरी तरह अवैध माना जाएगा।पशु कल्याण बोर्ड की एक अधिसूचना का उल्लेख करते हुए कहा गया कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960और पशु क्रूरता निवारण वेधशाला नियम 2001को लेकर सम्बंधित विभागों को पत्र भेजे जा रहे हैं। सचिव डॉ. देबनाथ ने कहा कि इस अधिनियम या परिवहन अधिनियम 1978 की अनदेखी करते हुए जानवरों को लाया और ले जाया जा रहा है, परिवहन के दौरान कई जानवरों की मौत हो जाती है. इसके अलावा पशु क्रूरता निवारण (स्लॉटरहाउस) नियम 2001 कहता है कि बीमार जानवरों, तीन महीने से कम उम्र के बछड़ों का वध नहीं किया जा सकता है. अन्यथा उपरोक्त नियमों के अनुसार दंडित किया जाएगा. अगरतला के सभी संवेदनशील क्षेत्रों को प्रवर्तन विभाग द्वारा हाई अलर्ट पर रखा गया है।
गौर करने वाली बात है कि पवित्र 70 दिनों के बाद बकरीद का पाक त्योहार मनाया जाता है, इस मौके पर कुर्बानी दी जाती है। बकरीद के मौके पर कुर्बानी का खासा महत्व होता है।
यह भी कितना दुर्भावना पूर्ण निर्णय है, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अगरतला ने एक अधिसूचना प्रकाशित की है, जहां उसने पद के लिए सीधी भर्ती के लिए लिखित परीक्षा का उल्लेख किया है।असिस्टेंट इंजीनियर सिविल एंड इलेक्ट्रिकल 10 जुलाई 2022 को आयोजित की गई , जो ईद-उल-अजहा का दिन था। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और एक विशेष धार्मिक त्योहार के प्रति अधिकारिक अज्ञानता को उजागर करता है।
यह सब भाजपा शासित त्रिपुरा जैसे राज्य में हो रहा है जहां दशकों से कम्युनिस्ट पार्टी का शासन रहा है।ये दोनों निर्णय निश्चित तौर पर भाजपा का एक प्रयोग है।इस राज्य से इन विषयों पर छुटपुट आवाज उठाई गई पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।
इससे कथित हिंदुत्ववादी तत्वों का वास्तविक चेहरा सामने आ जाता है। मुस्लिम समाज के इस पर्व पर हलाल की पद्धति से ही वे नाराज़ हैं नहीं चाहते वे कि त्यौहार हर्ष पूर्वक मनाएं।उनकी पशुओं को मारे जाने पर आपत्ति नहीं ।स्लाटरहाऊस में भले असंख्य जानवर मारे जाएं।हम सभी जानते हैं कि बीफ के सबसे बड़े स्लाटर हाऊस का मालिक कौन है? आज बकरे पर प्रतिबंध लगा है हो सकता है कल मुर्गे और मछलियों पर भी मुसीबत आ जाए। कहीं इसके पीछे भी किसी कारपोरेट की नज़र तो नहीं है क्योंकि यह भी आजकल बड़ा व्यवसाय है।दूसरे इन व्यवसायों में बहुसंख्यक मुस्लिम ही हैं।जिस देश में देवी मंदिरों में सरे आम कबूतर से लेकर पड़े तक की बलि मंदिरों में हो रही है वहां सिर्फ एक समुदाय में कुर्बानी प्रतिबंधित करना लाजमी नहीं है।
यह एक नया मुद्दा है।इसे देश में लागू करने से पहले गहरे विमर्श की ज़रूरत है क्योंकि यह सिर्फ आस्था से जुड़ा सवाल ना होकर लोगों के रोजगार और भरण-पोषण से भी संबंधित है।