अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

सत्ता की सियासत : समरथ को नहिं दोष गुसाईं

Share

पुष्पा गुप्ता

       समरथ को नहिं दोष गुसाईं, तुलसीदासजी की लिखी इस एक पंक्ति के सामने दुनिया भर में लोकतंत्र को लेकर किया गया विमर्श, मानवाधिकारों की व्याख्याएं, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दलीलें, न्याय व्यवस्था की मजबूती का विचार, सब बेमानी लगने लगते हैं।

          सिद्धांतों और व्यावहारिकता का फ़र्क तुलसीदासजी ने पहले ही समझ लिया था कि सारे नियम-कायदे, कानून, नैतिकताएं, मर्यादा के बंधन, समाज को अच्छा बनाए रखने की जिम्मेदारी कमजोरों के लिए हैं। समर्थवान अगर इनका पालन करना चाहें, तो यह कमजोरों के लिए कृपा है और न करना चाहें तो फिर शोषित और पीड़ित होना कमजोरों की नियति है, जिसे बदला नहीं जा सकता। अगर कोई बदलना चाहे, तो एक ताकतवर, दूसरे शक्तिमान को बचाने के लिए उठ खड़ा होता है।

भारत में हमने देखा है कि किस तरह बिल्किस बानो के अपराधी जेल से रिहा कर दिए गए। उनका स्वागत-सत्कार हो गया और अब उन्हें संस्कारी बताने वाले व्यक्ति को गुजरात चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी भी बना दिया है।

       अगस्त से लेकर नवंबर तक देश में बार-बार इन हत्यारे, बलात्कारियों की रिहाई पर चिंता जतलाई गई, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। अन्याय की ऐसी कई मिसालें पहले भी सामने आईं, मगर कुछ लोगों के ऐतराज के अलावा, वृहत्तर समाज में कहीं कोई हलचल नहीं होती। जैसे, सबने मान लिया है कि ऐसा ही होना है और विरोध की आवाज़ों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है।

       अभी दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले देश अमेरिका से भी यही मिसाल सामने आई है। सऊदी अरब के निर्वासित पत्रकार, वाशिंगटन पोस्ट में स्तंभकार रहे जमाल ख़ाशोगी की हत्या के मुकदमे में अब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान को अमेरिका में कानून सुरक्षा हासिल हो गई है।

        गौरतलब है कि 2 अक्टूबर 2018 को जमाल ख़ाशोगी को आखिरी बार इस्तांबुल में जिंदा देखा गया था। वे अपने विवाह के लिए जरूरी कागजात जुटाने इस्ताबुंल में सऊदी वाणिज्य दूतावास गए थे, लेकिन फिर उन्हें बाहर आते हुए नहीं देखा गया।

       उनकी मंगेतर हातिज़ सेनगीज़ दूतावास के बाहर ही उनका इंतजार करती रह गईं। बताया जाता है कि दूतावास के भीतर ही सुनियोजित तरीके से उनकी हत्या कर दी गई और फिर उनके शरीर के टुकड़े कर उन्हें गायब कर दिया गया, ताकि किसी को उनके बारे में पता ही नहीं चले।

        इस हत्या का आऱोप सऊदी अरब के एजेंटों पर लगा कि उन्होंने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आदेश पर ऐसा किया। हालांकि सऊदी अरब इस हत्याकांड से पहले इंकार करता रहा। फिर भी कई सवाल उठे, जैसे 2 अक्टूबर को तुर्की के सभी कर्मचारियों को दूतावास से छुट्टी लेने क्यों कहा गया।

      सुरक्षा कैमरे के फुटेज क्यों हटा दिए गए। 15 लोगों की टीम वाणिज्यिक दूतावास क्यों आई थी। इन सवालों के कोई जवाब नहीं मिले, न ही ख़ाशोगी का कुछ पता चला।

इस हत्या के कुछ सप्ताह बाद रियाद में एक निवेश सम्मेलन में क्राउन प्रिंस ने इसे एक जघन्य अपराध और दुखद घटना करार देते हुए ज़िम्मेदार लोगों को न्याय के दायरे में लाने का वादा किया था। और एक साल बाद सितंबर 2019 में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वो पिछले साल सऊदी एजेंटों द्वारा की गई ख़ाशोगी की हत्या की ज़िम्मेदारी लेते हैं क्योंकि इसे उनके रहते ही अंजाम दिया गया।

       अपराध और अपराध के कबूलनामे के बाद सज़ा का होना ही शेष रह जाता है, ताकि इंसाफ़ की प्रक्रिया पूरी हो सके। मगर यहां मोहम्मद बिन सलमान का ओहदा उनके लिए रक्षा कवच बन गया है।

        ख़ाशोगी की मंगेतर सेनगीज़ और अधिकार समूह डेमोक्रेसी फॉर द अरब वर्ल्ड नाओ (डॉन) ने 2020 में क्राउन प्रिंस के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा दायर किया था। लेकिन अब अमेरिकी न्याय विभाग ने बताया है कि क्राउन प्रिंस जब इस साल प्रधानमंत्री बने, तभी उन्हें इस मामले में प्रतिरक्षा हासिल हो गई है।

        याद रखने वाली बात ये है कि अमेरिका ने जमाल खाशोगी की हत्या की निंदा की थी। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान जो बाइडन ने आश्वासन दिया था कि वह सुनिश्चित करेंगे कि हत्या के मामले में न्याय हो और सऊदी शासक से दूरी बनाए रखने का वादा भी किया था।

        मगर तेल की वैश्विक कीमतों के मद्देनजर अमेरिकी फ़ायदे को देखते हुए जो बाइडेन न केवल सऊदी अरब के शासक से नज़दीकी बढ़ा रहे हैं, बल्कि एक जघन्य हत्याकांड में न्याय की संभावनाओं को भी ख़त्म कर रहे हैं। अमेरिकी सरकार के इस फैसले से दुखी सेनगीज़ ने कहा कि जो बाइडेन ने न केवल ख़ाशोगी, बल्कि अपने शब्दों को भी धोखा दिया है।

 इतिहास इस गलत फैसले की माफी नहीं देगा। वहीं डॉन की कार्यकारी निदेशक सारा लेह विटसन ने इस प्रतिरक्षा को चौंकाने वाला कदम बताते हुए इसे सऊदी अरब के लिए भारी छूट बताया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस फ़ैसले को बड़ा धोखा बताया है।

       हालांकि अमेरिकी सरकार के अपने तर्क हैं कि ये एक आम चलन है कि हम राष्ट्राध्यक्ष, सरकार के प्रमुख और विदेश मंत्रियों को रियायत देते रहे हैं। अमेरिका ने याद दिलाया कि 1993 में हैती के राष्ट्रपति अरिस्टाइड, ज़िम्बाब्वे के राष्ट्रपति मुगाबे को 2001 में, 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 2018 में डीआरसी के राष्ट्रपति कबिला को इसी तरह की कानूनी छूट दी जा चुकी है।

        याद रहे कि गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका के वीज़ा से इन्कार कर दिया गया था। हालांकि 2014 में चुनावी जीत के बाद श्री मोदी को वाशिंगटन द्वारा जल्दी ही निमंत्रण दिया गया था।

         गुजरात चुनाव से पहले अमेरिका के एक फ़ैसले के कारण गुजरात दंगों की बात फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर याद दिलाई गई है। हालांकि भाजपा के चुनावी प्रदर्शन पर इसका शायद ही कोई असर पड़े।

      2002 के बाद भी गुजरात में भाजपा जीतती ही आई है। तुलसीदासजी का लिखा सदियों बाद भी सच साबित हो रहा है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें