नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाईटेड) के भीतर एक ज्वालामुखी बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसका क्रेटर नए साल के अगस्त महीने तक तैयार हो सकता है। सितंबर,2023 में इसके फटने की आशंका है। ज्वालामुखी बनने की प्रक्रिया नौ अगस्त को शुरू हुई जब नीतीश ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ राजनीतिक सगाई की दूसरी पारी को विराम दे दिया। इसी दिन नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से दूसरी बार राजनीतिक निकाह का फैसला किया। भाजपा के साथ दो पारी खेल चुके हैं नीतीश कुमार। आरजेडी के साथ दूसरी इनिंग अभी चालू है। जब दूसरी इनिंग शुरू हुई तभी आरजेडी के खिलाफ राजनीतिक जमीन तैयार कर चुके जेडीयू के सवर्ण नेताओं में खलबली मची। अभी विधानसभा में जेडीयू के 45 विधायक हैं और लोकसभा में 16 सांसद। 45 में 10 विधायक और 16 में 3 सांसद सवर्ण हैं।
1.रिंकू सिंह – वाल्मीकिनगर – तेजस्वी यादव को कमेडियन बता चुके हैं
2. शालिनी मिश्रा – केसरिया (मोतिहारी) – लालू यादव को अधिकारियों से खैनी बनवाने वाले नेता बता चुके हैं। सदन में तेजस्वी यादव पर शायराना हमला करती हैं। आरजेडी को अपहरण में पीएचडी करने वाली पार्टी बता चुकी हैं।
3.पंकज कुमार मिश्रा – रून्नीसैदपुर (सीतामढ़ी)
4.सुधांशु शेखर – हरलाखी (मधुबनी)
5. लेशी सिंह – धमदाहा (पूर्णिया)
6.विनय कुमार चौधरी – बेनीपुर (दरभंगा)
7. अमरेंद्र कुमार पांडे – कुचायकोट (गोपालगंज)
8. विजय चौधरी – सरायरंजन (समस्तीपुर)
9.मटिहानी – राजकुमार सिंह (बेगूसराय)
10. बरबीघा – सुदर्शन कुमार
लोकसभा में 16 सांसदों में 3 सवर्ण हैं – कविता सिंह (सीवान), ललन सिंह (मुंगेर), सुनील कुमार पिंटू (समस्तीपुर)
सवर्णों की राजनीति
ऐसा नहीं है कि आरजेडी से सवर्णों को टिकट नहीं मिलता। पर जेडीयू और आरजेडी में फर्क है। आरजेडी के पास माय (मुस्लिम-यादव) का ठोस वोट बैंक है जो जाति देखे बिना लालू यादव-तेजस्वी यादव को वोट करता है। ऐसे में किसी खास सीट पर सवर्ण उम्मीदवार हो तो उस जाति का भी वोट आरजेडी को मिलता है। लिहाजा जीतने की संभावना रहती है। लेकिन जेडीयू के सवर्ण तो नीतीश कुमार को भूरा बाल साफ करो का नारा देने वाले लालू से छुटकारे दिलाने वाले नेता के तौर पर देखते आए हैं। आप कहेंगे 2015 में भी तो नीतीश की पार्टी से सवर्ण जीते थे। हां जीते, पर मोहन भागवत के बयान को याद कर लीजिए और आरजेडी के सपोर्ट को याद कर लीजिए।
नीतीश कुमार 2025 में नहीं रहेंगे तो क्या पार्टी रहेगी? इसे कनेक्ट करने के लिए आरजेडी की कार्यकारिणी की तरफ नेता चले जाते हैं। इसमें तेजस्वी यादव को पार्टी का नाम और झंडा बदलने का अधिकार दे दिया गया था। अंदरखाने जेडीयू के आरजेडी में विलय की चर्चा भी चल रही है।
आलोक कुमार
अब हो सकता है ये सवाल उठे कि तब और अब आरजेडी के सपोर्ट में क्या दिक्कत है। इसे दो तरीकों से समझिए। 2015 में तेजस्वी यादव 25 की दहलीज लांघे ही थे। लालू यादव के हाथ में कमान थी। स्टियरिंग नीतीश के पास रहेगा, इस कारण एनडीए के वोटरों में पिछड़ा तबका छिटका और नीतीश के नाम पर वोट पड़े। 2020 में सीएम कैंडिडेट तेजस्वी यादव थे। उधर नीतीश कुमार अपने पुराने यार लालू को छोड़ भाजपा के साथ। यानी नीतीश की विश्वसनीयता का पतन प्रारंभ। नतीजा ये निकला कि महज 12 हजार वोट के अंतर से तेजस्वी यादव सीएम नहीं बन पाए। 1,57,01,226 वोट एनडीए को मिले और 1,56,88,458 वोट महागठबंधन को मिला। एनडीए को 37.6 परसेंट वोट और महागठबंधन को 37.23 परसेंट वोट। यानी महज 0.03 परसेंट वोट से खेला हो गया। आरजेडी को 23 परसेंट वोट मिले। तीन करोड़ 15 लाख वोटों में 77 लाख 22 हजार वोट आरजेडी को मिले। यहां मैं महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और लेफ्ट को वोट को नहीं गिन रहा। साथ ही ये बता रहा हूं कि चिराग पासवान को 11 परसेंट वोट मिले थे।
स्टियरिंग जाने के बाद विलय
अब 2025 का आकलन कर लें। तेजस्वी यादव सीएम कैंडिडेट होंगे और नीतीश कुमार के समर्थन से होंगे। 13 दिसंबर को नीतीश कुमार ने इसका ऐलान कर ही दिया है। फिर स्टियरिंग तो गई। ऐसे में सवर्ण नेताओं का ऊहापोह पटना में दिखाई देने लगा है। ऊहापोह को हवा कई तथ्यों से मिल रही है। एक है, नीतीश कुमार 2025 में नहीं रहेंगे तो क्या पार्टी रहेगी? इसे कनेक्ट करने के लिए आरजेडी की कार्यकारिणी की तरफ नेता चले जाते हैं। इसमें तेजस्वी यादव को पार्टी का नाम और झंडा बदलने का अधिकार दे दिया गया था। अंदरखाने जेडीयू के आरजेडी में विलय की चर्चा भी चल रही है।
आरजेडी वोटर के निशाने पर नीतीश
विलय हो या न हो, ये तो साफ है कि 2025 में आरजेडी का कैडर तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए जी-जान लगा देगा। इस बीच तेजस्वी यादव ने कुढ़नी उपचुनाव से नीतीश के वोट बैंक को टेस्ट कर लिया है। भाजपा के साथ 50-50 वाला फॉर्म्युला तो चलने से रहा। मान लीजिए हो भी जाए तो क्या होगा। अगर ऐसा हुआ तो 2020 में एक चिराग पासवान थे, 2025 में 77 लाख 22000 चिराग होंगे। ये आरजेडी के वोटर्स हैं। ये कभी नहीं चाहेंगे कि नीतीश की ताकत उनके नेता तेजस्वी के आगे बनी रहे। इसलिए आरजेडी का 50 परसेंट वोट भी जेडीयू में ट्रांसफर हो जाए, इस पर मुझे शक है।
कुढ़नी टेस्ट के बाद सितंबर में होगा खेला
और ये बात उन 45 विधायकों और 16 सासंदों को भी मालूम है। उन्हें पता है कि कुढ़नी के बाद उनके नेता नीतीश कैसे फंस चुके हैं। नीतीश ने इसीलिए खुद ही तेजस्वी को आगे बढ़ा दिया। और ऐसा कर वो और फंस गए हैं। उन्होंने मैसेज दे दिया है कि जेडीयू का क्या होगा, उससे उन्हें मतलब नहीं। उनका फोकस तो खुद पर है। एक आखिरी कोशिश 2024 लोकसभा चुनाव में किया जाए। हमारे यहां कहावत है झाड़ पर चढ़ाना। तो ये काम नीतीश के लिए आरजेडी वाले कर ही रहे हैं। बाबा शिवानंद, जगदानंद 24-7 यही कर रहे। लेकिन जेडीयू कैडर को पता है कि अगर 50-50 के तहत 16 सीटें लोकसभा में मिल भी जाए और पार्टी 10 सीटें जीत भी ले तो क्या 10 सीटों वाली पार्टी के नेता के लिए दिल्ली में कोई चांस बनता है। वो भी तब जब मोदी की लोकप्रियता में गिरावट के संकेत नहीं दिख रहे। तो इंतजार कीजिए सितंबर, 2023 का। तब दल-बदल कानून को ठंडे बस्ते पर रखने का रिस्क भी लिया जा सकता है और 2024 की सूरत भी आभासी तौर पर सामने होगी। इसी का इंतजार जेडीयू के कई नेता कर रहे हैं। इसमें सिर्फ सवर्ण ही नहीं बल्कि लव-कुश वाले भी शामिल हैं।