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द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट: कैसे एक ट्रस्ट के माध्यम से भाजपा को मालामाल कर रहे हैं बड़े कारोबारी? 

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इस खबर को किसी भारतीय समाचार एजेंसी या टेलीविजन मीडिया ने देश की जनता के सामने लाने का काम नहीं किया, बल्कि दुनिया भर में सबसे नामचीन और प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी रायटर्स ने आज सुबह इस खबर को ब्रेक किया है। अब कुछ भारतीय अंग्रेजी समाचार पत्रों ने इस खबर को उठाना शुरू किया है, लेकिन इसे कितनी बड़ी खबर बनायेंगे, यह उन्हें मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर करता है।द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट नामक एक संस्था, जिसने चुनाव आयोग के समक्ष 26 अक्टूबर 2023 को स्वयं ट्रस्ट में दान की रकम का ब्यौरा सौंपा था, की पड़ताल से रायटर्स ने इस बड़े खुलासे को अंजाम दिया है। जनचौक के पाठक चाहें तो खुद चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर इन जानकारियों की पुष्टि कर सकते हैं। द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट का मुख्यालय नई दिल्ली में जी-15, हंस भवन, 1 बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर स्थित है। रायटर्स ने अपने लेख में ट्रस्ट के कार्यालय का जो विवरण दिया है, वह हैरत में डालने वाला है। दो कमरे में चलने वाले ट्रस्ट के कार्यालय को दो लोग चला रहे थे, जो भारत के सबसे बड़े इलेक्टोरल ट्रस्ट के बारे में अच्छी खासी उत्सुकता पैदा करता है। इस ट्रस्ट को देश की सभी नामचीन हस्तियां बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी करोड़ों रुपये का चुनावी चंदा देती आ रही हैं, इस तथ्य को देखकर सारे देश को हैरानी होनी चाहिए। 

जी हां, जैसे कुर्ते की सिलाई अगर एक जगह से उधड़ जाए तो उसके बाद सिलाई अपने आप खुलकर कुर्ते को रुमाल बना देती है, कुछ इसी प्रकार का नज़ारा सुप्रीम कोर्ट की एक सख्ती के बाद देश में देखने को मिल रहा है। 

इस खबर को किसी भारतीय समाचार एजेंसी या टेलीविजन मीडिया ने देश की जनता के सामने लाने का काम नहीं किया, बल्कि दुनिया भर में सबसे नामचीन और प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी रायटर्स ने आज सुबह इस खबर को ब्रेक किया है। अब कुछ भारतीय अंग्रेजी समाचार पत्रों ने इस खबर को उठाना शुरू किया है, लेकिन इसे कितनी बड़ी खबर बनायेंगे, यह उन्हें मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर करता है।

बहरहाल, खबर यह है कि द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट नामक एक संस्था, जिसने चुनाव आयोग के समक्ष 26 अक्टूबर 2023 को स्वयं ट्रस्ट में दान की रकम का ब्यौरा सौंपा था, की पड़ताल से रायटर्स ने इस बड़े खुलासे को अंजाम दिया है। जनचौक के पाठक चाहें तो खुद चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर इन जानकारियों की पुष्टि कर सकते हैं। द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट का मुख्यालय नई दिल्ली में जी-15, हंस भवन, 1 बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर स्थित है। रायटर्स ने अपने लेख में ट्रस्ट के कार्यालय का जो विवरण दिया है, वह हैरत में डालने वाला है। दो कमरे में चलने वाले ट्रस्ट के कार्यालय को दो लोग चला रहे थे, जो भारत के सबसे बड़े इलेक्टोरल ट्रस्ट के बारे में अच्छी खासी उत्सुकता पैदा करता है। इस ट्रस्ट को देश की सभी नामचीन हस्तियां बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी करोड़ों रुपये का चुनावी चंदा देती आ रही हैं, इस तथ्य को देखकर सारे देश को हैरानी होनी चाहिए। 

चुनाव आयोग को दिए अपने शपथपत्र में ट्रस्ट ने बताया है कि वर्ष 2022-23 के दौरान उसे कुल 363 करोड़ 16 लाख रुपये चुनावी चंदे के तौर पर प्राप्त हुए थे, जिसमें से उसके द्वारा मात्र 1 लाख रुपये को छोड़ बाकी सारी रकम राजनीतिक पार्टियों को वितरित कर दी गई है। ट्रस्ट ने इस बारे में सारा ब्यौरा चुनाव आयोग को न सिर्फ सौंपा है, बल्कि विभिन्न कॉर्पोरेट समूह के द्वारा अपने लेटरहेड पर इस रकम का ब्यौरा दिया गया था, उसे भी ट्रस्ट ने अपने शपथपत्र में नत्थी किया है।

अब आप पूछ सकते हैं कि जब सबकुछ इतना पारदर्शी तरीके से हुआ है, तो इसमें राजनीतिक पार्टियों और कॉर्पोरेट की आपसी सांठ-गांठ की बात कहां से नजर आती है? इसके लिए जब आप सिलसिलेवार ट्रस्ट को मिलने वाली रकम और इस रकम को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को हस्तांतरित किये जाने की प्रकिया को ध्यान से देखेंगे तो सारा माजरा खुद समझ आ जायेगा। इस खेल में भाजपा की बल्ले-बल्ले साफ नजर आ जायेगी। उससे भी बड़ी बात, ट्रस्ट को रकम मिलते ही अगले दिन भाजपा के खाते में रकम को ट्रांसफर करने की चपलता साफ़ बयां कर रही है कि द प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट असल में एक बिचौलिए के तौर पर कार्य कर रही है। 

खबर के मुताबिक, 19 दिसंबर 2013 से इस ट्रस्ट को अब तक करीब 2,250 करोड़ रुपये चुनावी चंदे के तौर पर मिल चुके हैं। लेकिन बड़ी खबर यह है कि इसमें से करीब 75% चंदा अकेले पीएम मोदी की पार्टी को मिला है। यह रकम कांग्रेस को मिले करीब 170 करोड़ रुपये से 10 गुना अधिक है। 

अब खेल देखिये, 2013 में इलेक्टोरल ट्रस्ट को देश के सामने पेश करने वाली पार्टी कांग्रेस थी, जिसने इसके जरिये राजनीतिक दलों को कर-मुक्त चंदे का प्रावधान लाया था। इसका मकसद यह बताया गया था कि इसके माध्यम से देश में चुनावी अभियान में अधिक पारदर्शिता आएगी और इससे नकद में चंदा देने की प्रवृति में कमी आएगी। इससे यह भी पता लगाना आसान रहेगा कि किस पार्टी को कितना चंदा मिल रहा है। लेकिन कुछ चुनाव विशेषज्ञों का इस बारे में मानना है कि ट्रस्ट से मिलने वाले चंदे से अंधेरा और घना हुआ है, और कॉर्पोरेट की ओर से जिस प्रकार से बड़े पैमाने पर सत्ताधारी दल के पक्ष में चंदा दिया जा रहा है, उसके चलते तीसरी बार फिर से मोदी के सत्ता में आने की राह आसान हुई है।   

रायटर्स को कॉर्पोरेट दानदाताओं के द्वारा दान में दिए गये धन के वितरण में किस राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया जाना है, के बारे में ट्रस्ट से कोई खुलासा तो नहीं हो पाया, लेकिन उसके द्वारा 2018 से लेकर 2023 तक रिकार्ड्स को खंगालने पर देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों के चंदे को ट्रैक करना आसान हो गया। रायटर्स के विश्लेषण में भारत की 8 सबसे बड़े बिजनेस ग्रुप के आंकड़ों की तहकीकात की है, जिन्होंने 2019 से 2023 के बीच ट्रस्ट को कम से कम 400 करोड़ रुपये चुनावी चंदे के बतौर दिए थे, जिसे बाद में ट्रस्ट द्वारा भाजपा के पक्ष में चेक जारी कर भुनाया गया है। 

इनमें चार प्रमुख नाम इस प्रकार से हैं: इस्पात उत्पादन में दुनिया में नंबर 1आर्सेलर मित्तल निप्पोन स्टील, टेलिकॉम में देश की अग्रणी कंपनी भारती एयरटेल, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सहित इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में प्रमुख नाम, जीएमआर ग्रुप और एनर्जी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एस्सार। ये वे चार कंपनियां हैं जिन्होंने भाजपा को प्रत्यक्ष तौर पर कोई पैसा नहीं दिया है, और न ही इन्हें पार्टी की दानदाता सूची में ही देखा जा सकता है। 

इस बारे में जब रायटर्स ने जीएमआर और भारती एयरटेल से जानना चाहा तो उनकी ओर से जवाब था कि उनके दान को कैसे वितरित करना है, यह सब प्रूडेंट निर्धारित करता है। इस मासूमियत पर तो खुदा भी जान दे दे। रायटर्स के मुताबिक, जीएमआर के एक प्रवक्ता का इस बारे में कुछ इस प्रकार कहना था, “यह सब प्रूडेंट ट्रस्ट के भीतर के दिशानिर्देश पर तय होता है, जिसके बारे में हम अनजान हैं।” इसके साथ ही जीएमआर प्रवक्ता ने एक और बात कही, “हमारी कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ खुद को जोड़ना पसंद नहीं करती।”

लेकिन प्रूडेंट ट्रस्ट के रिकॉर्ड खंगालने पर एक और खुलासा हो रहा है, जिसे बताकर आगे की कहानी को समझना आसान हो सकता है। प्रूडेंट ट्रस्ट के बारे में भारतीय मीडिया को कोई जानकारी नहीं थी, यह कहना पूरी तरह से गलत होगा। ऐसे तमाम तथ्य और पुरानी न्यूज़ हैं, जिनमें खुलासा होता है कि भारतीय मीडिया 2014 से ही प्रूडेंट ट्रस्ट को देश का सबसे बड़ा चुनावी फंड इकट्ठा करने वाले ट्रस्ट के रूप में चिंहित कर चुका था। इसकी वजह है। इस फर्म को किसी ऐरे-गैरे व्यक्ति ने नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े टेलिकॉम ऑपरेटर भारती एयरटेल ने लांच किया था। 

ट्रस्ट का नाम पहले सत्य इलेक्टोरल ट्रस्ट था, और द प्रिंट की रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2016-17 में ट्रस्ट को मिलने वाला दान तीन वर्ष में तीन गुने से अधिक बढ़कर 283.73 करोड़ रुपये हो चुका था, जो बाकी के सभी इलेक्टोरल ट्रस्ट को मिलने वाले कुल कॉर्पोरेट फंड के 87.18% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी सफलता की वजह ही भारती एयरटेल समूह था, जिसकी 33 कंपनियों के डायरेक्टर ट्रस्ट से जुड़े थे। शुरू में तो ट्रस्ट का काम भी एयरटेल के वसंत कुंज कार्यालय से आरंभ हुआ, जिसे बाद में 2014 में आईटीओ में शिफ्ट कर दिया गया, और 2017 में ट्रस्ट का नाम बदलकर प्रूडेंट कर दिया गया। 

उसी भारती एयरटेल ने अब रायटर्स को बताया है कि ट्रस्ट के, “फैसलों, दिशा और फंड के निपटान को लेकर उनका कोई प्रभाव नहीं है।” बता दें कि 2014 में एयरटेल ग्रुप ने ट्रस्ट का नियंत्रण मुकुल गोयल और वेंकटचलम गणेश नामक इंडिपेंडेंट ऑडिटर्स को सुपुर्द कर दिया था। 

बाकी कंपनी समूह के प्रवक्ताओं से जब रायटर्स के पत्रकार ने इस बारे में जानने की कोशिश की तो उनके फोन कॉल्स, मेसेज या ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया गया। ऑडिटर्स गोयल और गणेश ने भी ईमेल और पोस्ट में पूछे गये सवालों का जवाब नहीं दिया। एक बार फोन पर प्रूडेंट के कामकाज पर गोयल का जवाब था, “इस चीज के बारे में हम चर्चा नहीं करते।” 

रायटर्स ने भाजपा के प्रवक्ता से इस बारे में जानकारी चाही, लेकिन कई बार के अनुरोध पर भी कोई उत्तर नहीं मिल सका। लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि ट्रस्ट से कांग्रेस को मिलने वाला चंदा भी पार्टी के मद में सबसे अधिक है। 

एक और तथ्य प्रूडेंट को बाकी के 4 सबसे बड़े इलेक्टोरल ट्रस्ट से अलग करती है, वह है एक से अधिक कॉर्पोरेट समूह से इसे हासिल होने वाला चंदा। 

वाशिंगटन स्थित थिंक-टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में भारतीय वित्त कैंपेन के विशेषज्ञ मिलन वैष्णव का इस बारे में कहना है कि एल्क्टोरल ट्रस्ट “उद्योग जगत और र्राजनीतिक पार्टियों के बीच में अलगाव दिखाने के लिए एक परत मुहैया कराने का काम करती हैं।” वैष्णव आगे कहते हैं कि भारत में पोलिटिकल फंडिंग को संदेह की नजर से देखा जाता है, यही कारण है कि भारत में अधिकांश राजनीतिक दान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। 

भाजपा ने मार्च 2023 में अपने नवीनतम सार्वजनिक खुलासे में कहा है कि उसके राजनीतिक वॉर चेस्ट में नकदी और संपत्ति का मूल्य 7,000 करोड़ रुपये था। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती देने वाली पार्टी कांग्रेस के पास इसकी तुलना में मात्र 775 करोड़ रूपये की रकम, उसे कांग्रेस पर बड़े वित्तीय लाभ की स्थिति में रखने में कामयाब है। 

राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले कुल चंदे पर रायटर्स ने ग्राफ के जरिये जानकारी प्रदान की है। इसमें दर्शाया गया है कि 2013-14 में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को प्राप्त होने वाली कुल दान राशि 1000 करोड़ रुपये से काफी कम हुआ करती थी। लेकिन तब भी भाजपा को कांग्रेस की तुलना में अधिक चंदा मिलता था। लेकिन 2022-23 में यह फासला बढ़कर दस गुना हो चुका है। 2022 में भाजपा को जहां 7,040 करोड़ रुपये हासिल हुए, वहीं कांग्रेस के खाते में महज 770 करोड़ रुपये ही आये।  

इलेक्टोरल ट्रस्ट की परत के भीतर कॉर्पोरेट-राजनीतिक दलों के हितों को छुपाने की कवायद  

फरवरी माह में भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में चुनाव प्रचार में कॉर्पोरेट फंडिंग को लेकर कहा था, कि “ये विशुद्ध रूप से व्यावसायिक लेनदेन हैं, जिन्हें बदले में लाभ के इरादे से अंजाम दिया जाता है।” यहां पर रायटर्स का कहना है कि वह इस तथ्य को स्थापित नहीं कर सकता कि राजनीतिक दलों को अपने दानदाताओं की पहचान पता है या नहीं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के रिसर्च विंग के प्रमुख एमवी राजीव गौड़ा के अनुसार, पार्टियों को अपने दानदाताओं के बारे में जानकारी होती है। 

प्रूडेंट ट्रस्ट के बाद भाजपा के लिए अगला सबसे बड़ा दानदाता प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट है, जिसकी कमान टाटा ट्रस्ट के हाथ में है। नमक से लेकर एयरलाइन बिजनेस में दखल रखने वाले टाटा समूह की ओर से भाजपा को 360 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर दिए गये हैं। कांग्रेस को भी दान में टाटा समूह के ट्रस्ट की ओर से 65.5 करोड़ रुपये दिए गये हैं। इस ट्रस्ट के नियमों के तहत उसे संसद में प्रत्येक पार्टी की सीटों की संख्या के अनुपात में धन के वितरण के नियम का पालन करना होता है। प्रूडेंट ट्रस्ट ऐसे किसी नियम के तहत काम नहीं करता, और रॉयटर्स को भी उसके द्वारा फंड के वितरण के विश्लेषण में ऐसा कोई पैटर्न नजर नहीं आया है।

कॉर्पोरेट चंदे का तत्काल निपटान 

दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर स्थित प्रूडेंट ट्रस्ट की एक खासियत काबिलेगौर है। ट्रस्ट चंदे की कुल रकम में से सिर्फ 3 लाख रूपये प्रति वर्ष ही अपने संचालन के लिए रख सकता है। इससे अधिक तो ट्रस्ट का भाड़ा ही होगा, और जो दो लोग रायटर्स के पत्रकार को ट्रस्ट के कार्यालय में मिले थे, वे तो बिना किसी पारिश्रमिक के सारा काम कर रहे हैं। फिर ट्रस्ट को बड़े-बड़े कॉर्पोरेट को चंदा देने के लिए भी तो काफी श्रम करना पड़ता होगा? हर साल खातों का लेखाजोखा और ऑडिट सहित चुनाव आयोग के समक्ष पेश होने की बाध्यता के बारे में रायटर्स ने नहीं विचार किया। इसके साथ ही एक शर्त यह भी है कि 3 लाख रुपये के अलावा सारी रकम को उसी वित्त वर्ष में राजनीतिक पार्टियों के बीच में बांटना है। 

रायटर्स ने चुनाव आयोग के समक्ष प्रूडेंट के द्वारा प्राप्त चंदे के निपटान के बारे में जिस रिपोर्ट को जमा किया था, उसमें 2019 से 2022 के बीच ऐसे 18 लेनदेन की पहचान की है, जिसमें 8 कॉर्पोरेट समूहों ने ट्रस्ट को बड़ी रकम दी थी। प्रूडेंट ने इन सभी को बिना कोई देरी किये भाजपा के नाम चेक जारी कर निपटा दिया था। रायटर्स के मुताबिक, 18वें दान से पहले कॉर्पोरेट समूहों द्वारा प्रूडेंट को दी गई दानराशि भाजपा को भुगतान करने के लिए नाकाफी थी। इसमें अरबपति एल।एन। मित्तल की आर्सेलरमित्तल समूह ट्रस्ट के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक था।

उदाहरण के लिए, 12 जुलाई 2021 को आर्सेलरमित्तल डिज़ाइन एंड इंजीनियरिंग सेंटर प्राइवेट लिमिटेड ने प्रूडेंट को 50 करोड़ का एक चेक दिया। अगले ही दिन प्रूडेंट ने बीजेपी को उतनी ही रकम का चेक जारी कर दिया। इसके बाद एक बार फिर ग्रुप कंपनी आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने भी 1 नवंबर 2021 को ट्रस्ट को 20 करोड़ रुपये और 16 नवंबर 2022 को 50 करोड़ रुपये का जारी किया। ट्रस्ट के द्वारा क्रमशः 5 नवंबर 2021 एवं 17 नवंबर 2022 को ये चेक भाजपा के नाम जारी किये गये।

इसी प्रकार भारती एयरटेल ने 13 जनवरी 2022 को प्रूडेंट के नाम 25 करोड़ रुपये और 25 मार्च 2021 को 15 करोड़ रुपये के चेक जारी किए गये। ट्रस्ट ने 14 जनवरी 2023 और 25 मार्च 2021के दिन ही उक्त राशि के चेक भाजपा के पक्ष में जारी कर दिए गये थे।

इसका एक और उदाहरण आरपीजी-संजीव गोयनका समूह की तीन कंपनियों, हल्दिया एनर्जी इंडिया, फिलिप्स कार्बन ब्लैक और क्रिसेंट पावर के भुगतान में देखा जा सकता है। इनकी ओर से क्रमशः 15 मार्च, 16 मार्च और 19 मार्च 2021 को 25 करोड़, 20 करोड़ और 5 करोड़ रुपये के चेक काटे प्रूडेंट ट्रस्ट के नाम काटे गये थे। 17 मार्च को बीजेपी को प्रूडेंट से 45 करोड़ 20 मार्च को 5 करोड़ रुपये का चेक मिल जाता है।

कोविड महामारी में जमकर मुनाफा कमाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा जीएमआर ग्रुप, डीएलएफ लिमिटेड और एस्सार ग्रुप की कंपनियों से भी दान मिलने के तुरंत बाद सारा पैसा प्रूडेंट ट्रस्ट के द्वारा भाजपा के पक्ष में जारी कर दिया जाता है। लेकिन रायटर्स को कांग्रेस के पक्ष में इस प्रकार से तत्काल फंड हस्तांतरण का नमूना ढूंढने पर नहीं मिला। हालांकि, तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति के हिस्से में एक बड़ा दान अवश्य नजर आता है। इसमें मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर, जिसका मुख्यालय राज्य में है, ने 5 जुलाई को 25 करोड़ रुपये के दो चेक और 6 जुलाई 2022 को 25 करोड़ रुपये का एक चेक जारी किया था। ट्रस्ट ने अगले ही दिन 7 जुलाई को बीआरएस के पक्ष में 75 करोड़ रुपये का चेक जारी कर दिया था। 

एक और उदाहरण में पश्चिमी महाराष्ट्र स्थित रियल एस्टेट डेवलपर अविनाश भोसले ग्रुप की ओर से ट्रस्ट को 27 नवंबर 2020 को 5 करोड़ रुपये मूल्य का चेक जारी किया गया। प्रूडेंट ट्रस्ट ने 30 नवंबर के दिन एनसीपी के पक्ष में जारी कर दिया था। 

कॉर्पोरेट चंदे के पैटर्न से एक बात साफ समझ में आती है कि ट्रस्ट को चेक जारी करने से पहले कॉर्पोरेट और लाभार्थी राजनीतिक पार्टी के बीच में गुप्त वार्ता निश्चित रूप से हो जाती है। इसके बाद प्रत्यक्ष भुगतान करने के बजाय कॉर्पोरेट समूह, ट्रस्ट के नाम चेक जारी कर राजनीतिक पार्टी को कन्फर्म कर देते हैं। इस प्रकार कॉर्पोरेट और राजनीतिक दल, दोनों ही सीधे-सीधे राजनीतिक चंदा देने और लेने के अपयश से बच जाते हैं। देश की विभिन्न जांच एजेंसियों को कभी इन ट्रस्ट पर शक क्यों नहीं हुआ, यह सोचने का काम ही अब देश की जनता के जिम्मे रह गया है।

लेवल-प्लेयिंग फील्ड के बगैर भारतीय लोकतंत्र सुरक्षित नहीं 

जनचौक ने प्रूडेंट ट्रस्ट द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष पेश वर्ष 2022-23 के आंकड़ों की पड़ताल की है। इसमें जो बात निकलकर आ रही है, वह भी अपने आप में हैरत में डालने वाली है:

प्रूडेंट ट्रस्ट ने अपने विवरण में दानदाताओं में कुल 42 एंट्री की है, जिनसे ट्रस्ट को वर्ष 2022-23 में कुल 363.16 करोड़ रुपये हासिल हुए थे। ट्रस्ट ने 26 चेक जारी कर कुल 363.15 करोड़ रुपये विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बांट भी दिए थे। लेकिन 26 में से सिर्फ 9 चेक विभिन्न दलों के नाम जारी किये जाते हैं, और बाकी सभी 17 चेक एक दल ‘भारतीय जनता पार्टी’ के पक्ष में जारी किये जाते हैं। हैरत की बात यह है कि इसमें एक भी चेक ‘कांग्रेस पार्टी’ के नाम जारी नहीं किया गया है। भाजपा के बाद सबसे अधिक चेक और रकम तेलंगाना राज्य की भारत राष्ट्र समिति के नाम जारी किये गये, जिसे टीआरएस के नाम पर पहले 75 करोड़ और बाद में 15 करोड़ रुपये की दानराशि का चेक ट्रस्ट की ओर से जारी किया गया था। 

निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है कि, इलेक्टोरल ट्रस्ट को लाकर मनमोहन सिंह सरकार ने भारतीय लोकतंत्र को और पारदर्शी बनाने के स्थान पर देश को ही कॉर्पोरेट के चंगुल में डाल दिया, जिसका फायदा कांग्रेस के बजाय भाजपा ने जमकर उठाया, और कांग्रेस पार्टी की राह पहले से भी काफी कठिन बना डाली। यूपीए के द्वारा पेश किये गये इलेक्टोरल ट्रस्ट या भाजपा की ईजाद इलेक्टोरल बांड्स ने भले ही राजनीतिक रूप से भाजपा को अजेय स्थिति में ला खड़ा कर दिया हो, लेकिन असली विजेता तो देश का बिग कॉर्पोरेट समूह है, जिसके इशारे पर आज राजनीतिक दल और प्रेस मिलकर बहुसंख्यक आमजन के खिलाफ देश तेजी से आर्थिक नीतियों को लागू करा पाने में सफल है। 

इलेक्टोरल बांड्स को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने हाल में सख्त कदम उठाने शुरू किये हैं, लेकिन जब तक सभी लीकेज को रोकने के लिए बड़ा कदम नहीं उठाया जाता, यकीन मानिये बिग कॉर्पोरेट नई-नई तरकीब लगाकर राजनीतिक दलों के माध्यम से देश को बंधक बनाने से बाज नहीं आने वाला।

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