अग्नि आलोक
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*अनुत्तरित है सवाल?*

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शशिकांत गुप्ते,इंदौर

चुनाव की नाव में सवार होने के लिए विभिन्न दलों के अनेक उम्मीदवार,अपनी योग्यता को लिपी बद्ध कर,आला कमान के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, चुनाव के समय करते रहते हैं।तकरीबन सभी जीत का दावा भी करते हैं।
चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए विभिन्न आकार प्रकार की नाव है। एक नाव नहीं,स्वघोषित विश्वस्तर का जहाज़ है।
इस जहाज़ में सभी तरह का माल लादा जाता है। कोई किसी छोटी नाव से छलांग लगा कर,स्वयं बाहर हुआ हो,या बाहर किया गया हो,भ्रष्टाचार के आरोपों से ओतप्रोत हो,जहाज़ में सवार होते ही Automatic मतलब
स्वचालित धुलाई की अदृश्य मशीन में धूलकर सिर्फ पाकसाफ ही नही होता है,बल्कि पद प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर लेता है।
जहाज़ की साफ सफाई,अच्छी तरह देखभाल करने वाले। जहां थे वहीं रह जातें हैं।
इस जहाज के खेवनहार सिर्फ दो ही हैं। हां इस जहाज़ को ईधन मुहैया करवाने वाले तकरीबन दो ही हैं।
बहरहाल चुनाव होंगे,और होते भी रहते हैं।
कौन जीतेगा?
चुनाव कोई भी जीते आम को मूलभूत समस्याएं हल होंगी?
अभी “हल” चलाने वाले बिचारे आश्वासनों पर भरोसा रखते हुए इतने निराश हो रहे हैं। स्वयं की इहलिला का पाप स्वयं ही करने के लिए अभिशप्त हो रहे हैं।
देश के नोनिहाल, शिक्षा का शुल्क
अदा करने के लिए बैंकों से ऋण लेने के लिए बाध्य हो रहे हैं। विद्यार्थी जीवन में कर्ज का बोझ वहन करने के लिए मजबूर हैं।
ऋण को चुकाने के लिए रोजगार की गारंटी के आश्वासन पूर्ण होने की प्रतीक्षा में कोई भी,कैसा भी काम करने के लिए मजबूर हैं।
उम्मीद पर दुनिया कायम है। रोजगार मिलेगा, महंगाई कम होगी,ईंधन सस्ता होगा। इस तरह उम्मीद करते हुए दस वर्ष पूर्ण हो गए हैं।
सभी को सतर्क रहना चाहिए।
कहीं निम्न पंक्तियों जैसा हाल न हो जाए।
दिखला के किनारा, हमें मल्लाह ने लुटा
कश्ती भी गई हाथ से पतवार भी छूटा

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