सी पी सिंह
देश में अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। विपक्षी एकता के बारे में मीडिया और सत्ता के गलियारों में चर्चा तो बहुत पहले शुरू हो गई थी पर अब उसका स्वरूप काफी कुछ स्पष्ट होता जा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसकी पहल करते हुए तमाम बड़े बड़े नेताओं से संवाद कर विपक्षी एकता को रूपाकार देने के उद्देश्य से पटना में एक बैठक का आयोजन किया जिसमें विपक्ष के अनेक दलों के नेताओं ने सहभागिता की। विपक्षी नेताओं में पारस्परिक संवाद चलता रहा और फिर कांग्रेस की मेजबानी में बेंगलूरू में बैठक हुई जिसमें 26 दलों के नेताओं ने भाग लिया। यह बैठक व्यापक विपक्षी गठबंधन को एक ठोस रूप देने में काफी हद तक कामयाब रही। इस बैठक में विपक्षी गठबंधन को भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन नाम दिए जाने के साथ आगामी लोकसभा चुनाव में एकजुट हो कर सत्ताधारी पार्टी को हराने का संकल्प लिया गया। यह भी बताया गया कि अगली बैठक मुंबई में आयोजित होगी। आगे एक 11 सदस्यीय समन्वय समिति का गठन होगा जिसके मार्गदर्शन में गठबंधन की गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।
उधर भारतीय जनता पार्टी ने एनडीए के तत्वावधान में 38 दलों की बैठक कर अपनी राजनैतिक शक्ति का प्रदर्शन किया। सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधनों में शामिल क्रमशः 38 व 26 दलों के अलावा बसपा, अकाली दल, बीजद, बीआरएस, एआईएमआईएम, वाईएसआर कांग्रेस, आईएनएलडी, एआईयूडीएफ ऐसे दल हैं जो दोनों में से किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बने हैं। दोनों गठबंधनों में क्षेत्रीय और छोटे-छोटे दलों की भरमार है। राजनीतिक दलों की बहुलता और क्षेत्रीय विविधता के चलते वैसे तो राष्ट्रीय स्तर पर दो मजबूत चुनावी गठबंधन बनने की संभावना कम रहती है लेकिन अब लग रहा है कि इसबार लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन के सामने विपक्षी गठबंधन मजबूती से ताल ठोकने की तैयारी में है।
कई वर्षों से केन्द्र में और देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा या तो सत्ता में है अथवा सत्ता में सहभागी रही है जबकि कांग्रेस कुछ ही राज्यों में सत्ता में रही है। इससे जनमानस में यह धारणा बनती रही है कि भाजपा के सामने कोई संभावनापूर्ण विकल्प नहीं है। अब 26 दलों के व्यापक विपक्षी गठबंधन की मौजूदगी से जनता के सामने ढंग का एक विकल्प उपलब्ध होगा। विपक्षी गठबंधन में बहुत बड़े-बड़े और अनुभवी नेता हैं जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव है। अहं के टकराव को दूर रखते हुए सभी दल एकजुट होकर काम करें तो सत्ताधारी गठबंधन को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। प्रधानमंत्री के चेहरे का चयन चुनाव बाद किया जाना रणनीतिक दृष्टि से सही साबित हो सकता है।
दूसरी ओर भाजपा बहुत विशाल पार्टी है और इसके सबसे बड़े नेता एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकलुभावन अंदाज में जनमानस से व्यापक रूप से संवाद स्थापित करने में सिद्धहस्त हैं। विपक्षी गठबंधन में भी अनेक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के लिए मल्लिकार्जुन या शरद पवार बेहतर विकल्प हो सकते हैं। राहुल गांधी एक सशक्त, निर्भीक और जनपक्षधर विपक्षी नेता की भूमिका का सक्रिय निर्वाह कर रहे हैं पर उनको अभी गठबंधन के नेतृत्व का नहीं उसे मजबूत बनाने का काम करना चाहिए। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण भाजपा के पास संसाधनों की प्रचुरता तो है ही कार्यकर्ताओं की विशाल फौज भी है। ये कारक चुनावी रणभूमि में सत्ताधारी गठबंधन के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।
अब आते हैं चुनाव के मुद्दों पर। चुनाव प्रचार के दौरान सत्ताधारी दल अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने पेश करते हैं और भविष्य की योजनाएं बताते हुए नए-नए वादे करते हैं। विपक्षी दल सरकार की विफलताओं से जनता को अवगत कराते हुए बेहतर भविष्य के लिए अपने वादे सामने रखते हैं। विपक्षी गठबंधन को गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, असुरक्षा, भूख, बीमारी, अभाव, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, विषमता, शोषण, अन्याय, अपराध, अमीर गरीब के बीच बढ़ती खाईं, पूंजी का निजी हाथों में एकत्रीकरण, सामुदायिक सौहार्द, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व आदि जीवन के यथार्थ मुद्दों पर जनता को लामबंद करना होगा। सामान्यतः ऐसे ही मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं। लेकिन हमारा राजनीतिक परिदृश्य कुछ अलग सा है।
हमारे वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में चुनाव केवल जनजीवन के प्रत्यक्ष और यथार्थ मुद्दों पर ही नहीं लड़े जा रहे हैं बल्कि उनमें अन्य तत्व भी प्रमुखता से जुड़ चुके हैं। जातीय ध्रुवीकरण के अलावा राजनीतिक हिन्दुत्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है और भाजपा इस मुद्दे को हर चुनाव के केन्द्र में लाने के लिए कटिबद्ध एवं सक्षम है। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता भाजपा के घोषित लक्ष्य रहे हैं। पहले दो की उपलब्धि साकार हो चुकी है और समान नागरिक संहिता पर काम शुरू हो गया है। लोगों को भाजपा ‘जो कोई नहीं कर सकता वह कर दिखाने वाली साहसी पार्टी’ लगती है और उनकी नज़र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे सशक्त नेता हैं जो निर्भीकता से संवेदनशील मुद्दों पर भी बेझिझक आगे बढ़ने में सक्षम हैं। यही कारण है कि भाजपा जनमानस का ध्यान जनजीवन के मूलभूत मुद्दों से हटाकर अमूर्त भावनात्मक मुद्दों की ओर ले जाने में सफल रहती है। इसके अलावा भाजपा की राजनीतिक तरकश में राष्ट्रवाद और विश्वपटल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का डंका बजने जैसे प्रभावी तीर भी हैं।
अपने जबर्दस्त प्रचार संसाधनों और मुख्यधारा की मीडिया के भरपूर सहयोग से भाजपा लोगों के मन में यह बैठाने में काफी हद तक सफल रही है कि आर्थिक एवं अन्य सभी क्षेत्रों में 2014 के बाद अभूतपूर्व विकास हुआ है और उसके पहले हमारी स्थिति हर क्षेत्र में दयनीय थी। यह धारणा भी आमजन तक पहुंचाई गई है कि पहले भ्रष्टाचार का बोलबाला था और अब सब कुछ ठीक है। मीडिया के व्यापक सहयोग का लाभ भाजपा को लगातार मिलता रहा है। चुनाव में मीडिया की भूमिका और भी ज्यादा महत्वपूर्ण व प्रभावी हो जाती है। आगामी लोकसभा चुनाव में भी मीडिया की विपक्ष विरोधी संभावित भूमिका से विपक्ष का सिरदर्द बढ़ना ही है।
यह सही है कि विगत लोकसभा चुनाव में विपक्ष को लगभग 55 प्रतिशत और सत्तापक्ष को लगभग 45 प्रतिशत मत मिले थे। फिर भी देखने की बात है कि क्या इस बार विपक्ष के सभी मत विपक्षी गठबंधन की झोली में गिरते हैं कि नहीं। यह दो बातों पर निर्भर करेगा। विपक्षी गठबंधन कितनी सीटों पर एक संयुक्त प्रत्याशी खड़ा कर पाता है और अब तक किसी गठबंधन में नहीं शामिल हुए दलों की क्या भूमिका रहती है। भाजपा में दलों को अपनी ओर लाने का ही नहीं उनमें दोफाड़ कराने का भी अद्भुत कौशल है। अभी तक किसी गठबंधन में नहीं शामिल दलों में से कई पूर्व में भाजपा के साथ सत्ता की साझेदारी कर चुके हैं। अतः विपक्षी गठबंधन को न केवल चुनाव के पहले बल्कि बाद में भी अपने कुनबे को एक रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है।
विगत दो दशक की राजनीतिक परिस्थितियों को गहराई से समझते हुए विपक्षी गठबंधन को भाजपा के रणनीतिक तीरों की काट तलाशनी होगी। जब चुनावी लड़ाई समान सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों पर होती है तब जनता विभिन्न पक्षों का आकलन, मूल्यांकन ठोस आधार पर करती है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका संबंध मन, भावना व चेतना से होता है। भावनात्मक एवं चेतनागत मुद्दों पर सामान्य चुनावी सिद्धांत पूरी तरह लागू नहीं होते हैं। इन मुद्दों पर स्वत: ध्रुवीकरण भी होता है। हालांकि चुनावों में अभी देर है पर राजनीतिक परिदृश्य को समग्रता में देखते हुए लगता है कि इस बार विपक्षी गठबंधन सत्ताधारी गठबंधन को कड़ी चुनौती देने की दिशा में अग्रसर तो है लेकिन तमाम रणनीतिक प्रयासों के बावजूद उसके सत्ता तक पहुंचने की राह बहुत आसान नहीं होगी।
विपक्षी गठबंधन को चाहिए कि वह पूरी मेहनत से आमजन के जीवन से जुड़े यथार्थ मुद्दों को लेकर जनता के पास जाए और सामुदायिक शांति, सौहार्द और सह-अस्तित्व के लिए खुलकर मजबूती से पैरवी करे। विपक्षी गठबंधन वास्तविक मुद्दों पर जनता को जितना ज्यादा लामबंद कर पाएगा, सत्ताधारी गठबंधन के सामने वह उतनी ही बड़ी चुनौती खड़ी करने में सफल होगा।