मेधा पाटकर
डेडलीबाई सही अर्थसे ‘deadly’ थी | संघर्ष के दौरान का उसके हर वक्तव्यमें स्त्रीत्व की ताकद,हिम्मत,जीवटता सब कुछ निचोड़कर रखती थी वह ! अपनी विचारधारा बहती थी…हसते हसते टकराती थी,सत्ताके पहाडसे | डेडलीबाई नर्मदा घाटीकी जुझारू महिलाओंमेसे एक,विशेष ताकदसे अपना परिवार,अपना फलिया डोमखेडी गाव और घाटीका भी प्रतिनिधित्व करती थी,हर मंचपर,हर मोर्चेपर !डोमखेडी,जो संघर्षका तीर्थ बना,मणिबेली के बाद…..जहां देशभरके सैंकड़ो समर्थक पहुँचते थे…जहाँ आकर युवा संकल्प लेकर कार्यकर्ता बने थे…शोभा,चेतन,योगिनी,गीतांजली जैसे,वही की थी डेडलीबाई !
दूर के ‘अतिक्रमण’ ही माने गये गावसे वह इस गावमें विवाहबद्ध होकर आयी और कटिबद्ध हो गयी,आंदोलन के साथ ! 1985 सेही निमगव्हाण-डोमखेडी ‘नर्मदा धरणग्रस्त समिति’ की स्थापना; निमगव्हाण की नर्मदा जीवनशाला और जलसत्याग्रह;दसौं गावके दसौं ढोल बजते,बजाते,नाचते गाते सजती होली,आदिवासी युवा-बुजुर्गोने मिलकर बसायी सत्याग्रहकी कई कुटियाँ, शोभाका गादमें धसकर देहत्याग,….कई सारी घटनाओंका स्तंभ बना रहा डोमखेडी गाव ! डेडलीबाई उस गावमें फूल नहीं चिंगारी बनकर छायी रही आखिरतक…पुनर्वसित होने तक !गल्ली से दिल्लीतक अपने बोल गूंज उठे,पुलिस बलके सहारे बढ़ते आये अधिकारियोंसे टकराये गावकी खियाली,खात्रीबाई…सब सबको संबल देते रहे….इससे स्वाभिमानके साथ लेकिन गर्वहीनही विनम्र रहकर पेश आती थी डेडलीबाई !
अपने अत्यंत मृदूभाषी,कठल जैसे मिठ्ठास छुपाये जहाँगीरभाई…डायाच …की पत्नी ! पूरा घर-संसार दोनों मिलकर सम्हालते,डेडलीबाईके नेतृत्वमें ! अपने साथ छोटीसी बेटी लेकरही घूमती थी यह बाई…जहाँ जाती,वहाँ अपनी वैचारिक स्पष्टता और कर्तृत्वकी झलक फैला देती…विनम्रताके साथ ! उसके एकेक बच्चेको,उतार-चढाव के पार जैसे पहाडी समाजसे,वैसेही आंदोलनसे जुडी रखती थी,डेडली ! डोमखेडी का कारभारी दादल्याभाईके साथ,हर कार्यमें सहभागी येही थी डोमखेडीकी अघोषित ‘कारभारीण’ | उसका बलशाली तन-मन धनसे दूर, एक छोटीसी झोपडी जैसे घरमेंही अनोखी समृद्धी के साथ राज करता देखा हमने,सालोंतक ! डोमखेडीमें पधारे,हमें गलेतक चढ़ते पानीसे खींचकर जेल ले जाते पुलिसोंको अपने अनोखे शब्दोंमें चुनौती देनेवाली, निमगव्हाण-डोमखेडीकी महिलाओं की नेत्री रही डेडलीबाई ! उसे पता था, दिल्लीतक विश्व बैंकके आमने सामने,या जिल्हाधिकारीके समक्ष प्रस्तुत करनेकी उसकी हिम्मत….जो प्रदर्शन नहीं,पर दर्शन देते हुए,एक अस्त्र बन जाती थी..अहिंसक,सत्याग्रही लडतमें ! डेडलीबाईने,पुलिस प्रशासन-शासनकी आदिवासीयोंके डेरेपर आनेकी हिम्मत कई बार तोडी थी ! शब्दोंका आघात जरुर होता था,डेडलीबाई,खात्रीबाई जैसी बूढ़ी महिलाओंसे लेकिन उन्हें घायल नहीं,अबोल छोडकर रख देती थी ये ! जल,जंगल,जमिन को जीवनाधार साबित करनेवाली प्रखर वक्ता रही, डेडलीबाईने एकबार, हमें गिरफ्तार करके,चढ़ते जलसैलाबसे खीचते धुलेकी जिला जेलमें डाले जानेपर,14 दिनोंतक 900 लोगोंको अपने नारे….इशारे सबकुछ दावपर लगाया था |
उस वकत राष्ट्रपति के.आर.नारायणजीने अपने सेक्रेटरीको भेजा था मिलने ! डेडलीबाई का एक प्रसंग याद आया…अधिकारीको उनके खिसेसे पेन छीनकर उसने किया था सवाल,’’ कैसा लग रहा तुम्हें?तो हमारी जमीन,जंगल,नदी सब कुछ छीनना क्या हम करेंगे मंजूर?’’ तीखे बोलभी चेहरेपर हंसी रखकर फेंकती थी डेडलीबाई !आखिर चार बर्तन,खाटला,बच्चे सबको लेकर,परिवारसहित गाव छोड़ने पडा वडछील वसाहटमें आंदोलनका झंडा गाड़कर डोमखेडी-निमगव्हाण-सुरुंग के आदिवासियोंके साथ, डेडलीबाई भी पुनर्वसित हुई | जब भी वसाहटमें मिली तब याद करती रही,रेवामाताको ! कभी फूली-फली नहीं दिखाई दी मुझे,नयी दुनियामें….लेकिन खेतीसहित अपना अधिकार लेकर नयी चुनौतियोंपर भी संवार होती देखी हमने- अभी अभी तक ! जहाँगीरडाया जाने के बाद कई साल अपने बच्चोंको गुण-दोषोंके साथ सम्हालती रही ! आखिर वह उभार,और आदिवासी संभार पीछे छोड़ गयी ‘कारभारीण’ !
मेधा पाटकर