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धीरज साहू के विशाल शराब कारोबार के पीछे की कहानी-बड़ा साम्राज्य, अनियंत्रित बिक्री 

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बलांगीर, ओडिशा: पहली नज़र में ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 300 किमी से अधिक दूर बलांगीर रोड रेलवे स्टेशन के दोनों ओर खड़ी इमारतों को देखने पर आपको कुछ अलग नहीं लगेगा. वहां सबकुछ समान्य लगता है.बिना किसी डिजाइन की खड़ी ये इमारतें, बलांगीर के सुदपारा क्षेत्र में एक एकड़ से भी कम भूमि पर खड़ी हैं. दरअसल यह रेलवे स्टेशन के पश्चिम में एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है जिसमें कुछ गोदाम और श्रमिकों के लिए आवासीय क्वार्टर है.

दरअसल ये संरचनाएं विवादास्पद बलदेव साहू एंड संस की संपत्ति हैं, जो एक देशी शराब बनाने वाली निर्माण कंपनी है. इस महीने की शुरुआत में बलदेव साहू एंड संस के मालिक और शराब कारोबारी तथा कांग्रेस सांसद धीरज साहू पर आयकर विभाग ने छापे मारे और उसके बाद आयकर विभाग को 350 रुपए नकद बरामद हुए.

धीरज साहू के पिता बलदेव साहू द्वारा 1954 में बलांगीर में स्थापित कंपनी कथित तौर पर पश्चिमी ओडिशा में देशी शराब के व्यापार पर एकाधिकार रखती है. दिप्रिंट से बात करने वाले उत्पाद शुल्क के अधिकारियों ने बताया कि फर्म के व्यवसाय का सटीक पैमाना एक अपारदर्शी और जटिल संगठनात्मक संरचना के पीछे छिपा हुआ है और बलांगीर इसके संचालन का मुख्य केंद्र रहा है. यहां यह कंपनी 64 में से 46 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का मालिक है. दिप्रिंट ने इसका पता लगाया है. राज्य में स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के दौरे और उत्पाद शुल्क अधिकारियों के साथ बातचीत से यह भी पता चला कि कैसे सरकारी जांच की कमी ने साहूओं को अपना व्यापारिक साम्राज्य बनाने में मदद की.

Photo: Mayank Kumar/ThePrint
फोटो: मयंक कुमार | दिप्रिंट

छापेमारी को लेकर बड़ा विवाद भी पैदा हुआ. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जैसे विपक्षी दलों ने ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर उन्हें राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप लगाया.

 आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए बलदेव साहू एंड संस और मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) दोनों से संपर्क किया. जहां ओडिशा CMO के जनसंपर्क अधिकारी सुकांत कुमार पांडा ने इसपर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया वहीं धीरज साहू को किए गए फोन कॉल और मैसेज का जबाव नहीं दिया.

हालांकि, शुक्रवार को एक सार्वजनिक बयान में साहू ने स्वीकार किया कि यह पैसा उनकी कंपनी का है. उन्होंने समाचार एजेंसी ANI से कहा, “आज जो हो रहा है, उससे मैं बहुत दुखी हूं. मैं स्वीकार कर सकता हूं कि जो पैसा बरामद किया गया है वह मेरी फर्म का है. जो नकदी बरामद की गई है वह मेरी शराब फर्मों से जुड़ी हुई है. ये शराब की बिक्री से प्राप्त आय है.”

दिप्रिंट ने सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) के प्रवक्ता पिनाकी मिश्रा से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दियाय जबकि पार्टी सांसद सस्मित पात्रा और सर्मिष्ठा सेठी ने कॉल का कोई जवाब नहीं दिया.

जैसा कि विवाद राज्य में जारी है, दिप्रिंट इस बात पर नज़र डाल रहा है कि देशी शराब का व्यापार कैसे काम करता है और कैसे बलदेव साहू एंड संस ने पश्चिमी ओडिशा में व्यापार पर एकाधिकार जमा लिया है.

बलांगीर में साहूओं का एकाधिकार

ओडिशा के उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य के 30 जिलों में से 22 में देशी शराब का उत्पादन होता है.

अधिकांश भाग के लिए, देशी शराब निर्माण एक बड़ा नकदी व्यवसाय है इसलिए राजस्व की जब बात आती है तो इसमें थोड़ी जवाबदेही होती है. दिप्रिंट ने जिन अधिकारियों से बात की उनके अनुसार इसी कारण इसे रेगुलेट करना थोड़ा मुश्किल होता है.

गौरतलब है कि पश्चिमी ओडिशा विकास परिषद, 1998 में राज्य सरकार द्वारा स्थापित एक प्रशासनिक ढांचा है, जिसमें 10 जिले शामिल हैं. ये जिले बारगढ़, बलांगीर, बौध, देवगढ़, झारसुगुड़ा, कालाहांडी, नुआपाड़ा, संबलपुर, सुबरनापुर, सुंदरगढ़ हैं. इसके अलावा अंगुल जिले का अथमलिक उप-मंडल भी इसमें शामिल है.

अधिकारियों ने कहा कि इनमें से साहू एंड संस का व्यापार खासकर बलांगीर और संबलपुर जिलों के साथ-साथ दक्षिणी ओडिशा के रायगढ़ा में काफी मजबूत है.

भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) की उच्च-विनियमित बिक्री के विपरीत, देशी शराब निर्माण व्यवसाय मुख्य रूप से निम्न-आय वाले श्रमिक वर्ग को पूरा करता है. एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ”इसके चलते कारोबार मुख्य रूप से कम मूल्यवर्ग की नकदी पर चलता है.”

अधिकारियों ने कहा कि हालांकि अकेले बलांगीर में बलदेव साहू एंड संस की 46 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं जिन्हें स्थानीय रूप से मौध भट्टी के रूप में जाना जाता है, लेकिन राज्य में सटीक संख्या जानना मुश्किल है. उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा कंपनी की व्यावसायिक संरचना के कारण है जिसके तहत मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को रिश्तेदारों के नाम पर पंजीकृत दिखाया गया है.

उत्पाद शुल्क विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, अपनी शराब मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के अलावा कंपनी के पास बौध जिले में एक डिस्टिलरी प्लांट भी है – जिसमें इसका मुख्यालय भी है – जो आईएमएफएल बनाने के लिए एक आवश्यक कच्चे माल, स्प्रिट का निर्माण और बिक्री करता है.

अधिकारी ने कहा कि हालांकि साहू एंड संस के पास आईएमएफएल बेचने का लाइसेंस है, लेकिन उसके पास इसे बनाने का लाइसेंस नहीं है.

ओडिशा के अधिकारियों ने कहा कि इनके अलावा, साहू ने झारखंड और पश्चिम बंगाल में बॉटलिंग व्यवसाय में भी कदम रखा है और होटल, स्कूलों और अस्पतालों में भी उनके अन्य व्यावसायिक हित हैं.

बलांगीर जिला उत्पाद शुल्क कार्यालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ओडिशा की उत्पाद शुल्क नीति के तहत, एक देशी शराब निर्माता कंपनी अपने लाइसेंस के लिए 3 लाख रुपये से 8 लाख रुपये तक का भुगतान करती है. अधिकारी ने कहा कि छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को अक्सर यह राशि निषेधात्मक लगती है, जिसका भुगतान चार महीने पहले करना पड़ता है.

उन्होंने कहा, “परिणामस्वरूप, पिछले कुछ सालों में बलदेव साहू एंड संस, जिसके पास अधिक संसाधन थे, छोटे खिलाड़ियों के मुकाबले तेजी से आगे बढ़े.”

‘जितना अधिक भुगतान, आपको उतना अधिक मिलेगा’

उत्पाद शुल्क ओडिशा सरकार के राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस साल की शुरुआत में राज्य विधानसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में, उत्पाद शुल्क मंत्री अश्विनी कुमार पात्रा ने कथित तौर पर कहा कि 2022-23 के लिए राज्य का संग्रह 6,455.06 करोड़ रुपये था  जो 2011-12 में एकत्र किए गए 1,379.91 करोड़ रुपये से 368 प्रतिशत अधिक है.

देश के इस हिस्से में महुआ फूल का उपयोग करके देशी शराब का उत्पादन किया जाता है. महुआ एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो बड़े पैमाने पर मध्य, दक्षिणी और उत्तर भारतीय मैदानों और जंगलों में पाया जाता है. उत्पाद शुल्क विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इसे ग्रामीण ओडिशा से लिया जाता है और इसकी कीमत पंचायत स्तर पर तय की जाती है.

देशी शराब बनाने की प्रक्रिया में महुआ के पेड़ से सफेद फूल निकालते हैं, जिन्हें सुखाकर, कुचलकर पानी में भिगोया जाता है. इसे कुछ दिनों के लिए किण्वित होने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि फूलों में मौजूद खमीर प्राकृतिक चीनी को अल्कोहल में बदल दे. देशी शराब के अंतिम उत्पाद में औसतन 15-20 प्रतिशत अल्कोहल की मात्रा होती है.
ओडिशा के उत्पाद शुल्क विभाग के एक अन्य अधिकारी के अनुसार, राज्य सरकार के पास देशी शराब के निर्माण के व्यवसाय को विनियमित करने के लिए दो नीतियां हैं और दोनों महुआ फूल की बिक्री और उपयोग से संबंधित हैं.पहला, किसी भी निर्माता को प्रति क्विंटल फूल पर 1,450 रुपये का शुल्क लगाने के लिए बाध्य करता है. अधिकारी ने कहा कि यह फूल की कीमत के अलावा है.

औसतन, महुआ के फूलों की कीमत 2,000-3,000 रुपये प्रति क्विंटल है. गौरतलब है कि ओडिशा के उत्पाद शुल्क नियमों के अनुसार, जहां इनपुट लागत पर टैक्स है, वहीं तैयार उत्पाद पर कोई टैक्स नहीं है.दूसरी नीति को न्यूनतम गारंटी कोटा कहा जाता है. इसके तहत, लाइसेंस शुल्क के प्रत्येक 1,000 रुपये के अग्रिम भुगतान पर निर्माता को 0.786 क्विंटल महुआ मिलने की गारंटी है.

अधिकारी ने कहा, “इसका मतलब यह है कि लाइसेंस शुल्क जितना अधिक होगा, निर्माता उतना ही अधिक महुआ पाने का हकदार होगा, हालांकि न्यूनतम महुआ कोटा की गारंटी है. कोई कितना फूल ले सकता है इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं है.”अधिकारी ने कहा, “इसके बदले में, निर्माता पर यह निर्णय लेने का अधिकार होता है कि वह कितनी देशी शराब का उत्पादन करना चाहता है. वे अपने राजस्व और लाभ को अधिकतम करने के लिए लाइसेंस शुल्क का अग्रिम भुगतान करना चुन सकते हैं, जो बहुत अधिक गुणकों में हो सकता है.”

2006 से 2021 के बीच ओडिशा के उत्पाद शुल्क आयुक्त के रूप में कार्य करने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सुदर्शन नायक ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य में देशी शराब कारोबार में तीन प्रमुख समस्याएं हैं.उन्होंने कहा, “सबसे पहले शराब के निर्माण, वितरण और बिक्री के लाइसेंस एक लाइसेंसधारी के पास केंद्रित नहीं होने चाहिए. दूसरा, किसी भी लाइसेंस द्वारा शराब के सटीक विनिर्माण की जांच करने के लिए कोई पारदर्शी प्रणाली नहीं है, और तीसरा यह है कि विनिर्माण को एक निश्चित स्तर पर प्रतिबंधित करने के लिए उत्पाद शुल्क नीति में कोई अधिकतम कैपिंग नहीं है.”

‘पूरी जानकारी नहीं’

यह देखते हुए कि देशी शराब उत्पादन का अधिकांश व्यवसाय अनियमित है, कंपनी के व्यवसाय के इस पक्ष का पैमाना – यूनिट्स की संख्या, उनकी उत्पादन क्षमता, कुल कर्मचारी, बिक्री की मात्रा और उनके वार्षिक कारोबार का विवरण की पूरी जानकारी नहीं है.

लेकिन उनके धनुपाली विनिर्माण संयंत्र के एक मजदूर ने दिप्रिंट को बताया कि 50 लोग वहां 12 घंटे की दो शिफ्टों में काम करके रोजाना लगभग 10,000 पाउच देशी शराब का उत्पादन करते थे और प्रत्येक का वजन 180 मिलीलीटर होता था.

A discarded 180 ml pouch of country liquor outside a manufacturing plant in Balangir | Photo: Mayank Kumar/ThePrint
बलांगीर में एक विनिर्माण संयंत्र के बाहर देशी शराब की फेंकी गई 180 मिलीलीटर की थैली | फोटो: मयंक कुमार | दिप्रिंट

बलांगीर में इनमें से एक पाउच बेचने वाले एक खुदरा दुकान के मालिक ने कहा, जबकि प्रत्येक पाउच की उत्पादन लागत 15 रुपये है, फिर इन्हें बाजार में दोगुनी कीमत पर बेचा जाता है.

उत्पाद शुल्क विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पश्चिमी ओडिशा के ग्रामीण हिस्सों में कारोबार के पैमाने और पैठ के कारण कारोबार पर नज़र रखना मुश्किल हो जाता है.

चूंकि इसका लक्ष्य जनसांख्यिकीय श्रमिक वर्ग है, इसलिए अधिकांश लेनदेन छोटे मूल्यवर्ग में होते हैं, जो बताता है कि यह इतना नकद-भारी क्यों है. अधिकारी ने कहा कि रेगुलेशन और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि इनमें से कई पाउच फेरीवालों द्वारा बेचे जाते हैं.

लोहरदगा से जुड़ी हैं साहू की जड़ें

साहू झारखंड के लोहरदगा जिले से हैं, जो झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 70 किमी दूर है. राज्य के एक कांग्रेस नेता के अनुसार, जिन्होंने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए दिप्रिंट से बात की, साहू परिवार का वहां महत्वपूर्ण प्रभाव बना हुआ है.

इस सप्ताह, जांचकर्ताओं की एक टीम ने भू-निगरानी करने के लिए छापेमारी के दौरान जिले में साहू के पैतृक घर का दौरा किया था.

The ancestral home of the Sahu family in Balangir | Photo: Mayank Kumar/ThePrint
बलांगीर में साहू परिवार का पैतृक घर | फोटो: मयंक कुमार | दिप्रिंट

बलदेव साहू एंड संस की विनिर्माण और बिक्री इकाइयों में काम करने वाले कई लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि वे काम की तलाश में सबसे पहले लोहरदगा गए थे. उदाहरण के लिए, बलांगीर जिले की एक सुविधा में, बिहार के रोहतास जिले के एक कर्मचारी ने कहा कि साहू के अन्य व्यवसायों के एक प्रबंधक ने उसे इस नौकरी के लिए भेजा था.

बलांगीर के सुदपारा में, स्थानीय लोग बताते हैं कि कैसे वहां यूनिट को दो चचेरे भाई, बंटी और राजेश साहू द्वारा चलाया जा रहा था.

सियासी गरमाहट

छापेमारी और उसके बाद हुई बरामदगी से ओडिशा में बड़े पैमाने पर राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी ने सीएम पटनायक के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) सरकार से जवाबदेही की मांग की है.

14 दिसंबर को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, ओडिशा बीजेपी के प्रवक्ता अनिल बिस्वाल ने पटनायक पर 2019 में साहू के बौध डिस्टिलरी में एक संयंत्र का उद्घाटन करने का आरोप लगाया.

बिस्वाल ने दिप्रिंट को बताया, “बलांगीर, टिटलागढ़ और संबलपुर में एक शराब निर्माता के परिसरों में करेंसी नोटों के ढेर लगाने के अलग-अलग कारण बताए गए हैं.” उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 300 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी जमा राज्य संरक्षण के बिना संभव नहीं है.”

बिस्वाल ने कहा कि बलदेव साहू एंड संस पश्चिमी ओडिशा में लगभग 500 देशी शराब संयंत्रों में से 300 से अधिक को नियंत्रित करता है. उन्होंने यह भी दावा किया कि पटनायक के पदभार संभालने के बाद से शराब लाइसेंस के लिए कोई नीलामी नहीं हुई है.

पटनायक दो दशकों से अधिक समय तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे हैं. 2021 में बीजद सरकार ने राज्य की आईएमएफएल और देशी शराब की दुकानों को लाइसेंस जारी करने के लिए लॉटरी-आधारित नीलामी प्रणाली शुरू की.

बिस्वाल के अनुसार, शराब लाइसेंस के लिए दोबारा नीलामी और दोबारा टेंडर करने से खेल में अधिक खिलाड़ी आएंगे, जिससे किसी एक कंपनी के लिए खेल पर एकाधिकार बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

बिस्वाल ने कहा, “यहां तक ​​कि राज्य के खजाने को भी अधिक पैसा मिलेगा, लेकिन पटनायक सरकार ने इस शराब कंपनी को लाभ पहुंचाने का फैसला किया है.” उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सार्वजनिक विरोध के बावजूद महानदी से साहू के बौध डिस्टिलरी को अवैध रूप से पानी आवंटित किया था.

लेकिन बलांगीर में देशी शराब निर्माण के कारोबार के मुखर आलोचक रहे वकील प्रमोद मिश्रा के अनुसार, बलांगीर और आसपास के जिलों में कारोबार का पैमाना “पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर” राजनीतिक भागीदारी की ओर इशारा करता है.

उन्होंने कहा कि राजनेताओं ने उद्योग को अनियंत्रित रूप से फलने-फूलने दिया है क्योंकि “यह उन्हें चुनावों के दौरान वित्तीय ताकत देता है”. लेकिन वसूली का पैमाना एक और चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है- ऐसी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को अक्सर मनी लॉन्ड्रिंग हब के रूप में उपयोग किया जाता है, न केवल अपने पैसे के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी.

उन्होंने बताया, “यह शराब का कारोबार कानूनी और अवैध दोनों तरीकों से संचालित किया जा रहा है और इसलिए इसमें बहुत सारा अनियंत्रित पैसा आता है. इसके अलावा, देशी शराब मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में इतनी बड़ी मात्रा में बरामदगी ऐसे राजनीतिक धन की ओर इशारा करती है क्योंकि देशी शराब का कारोबार ज्यादातर खुली नकदी पर चलता है, जिसका मूल्य अधिकतम 200 रुपये है.

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