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शिवपाल के खिलाफ जहरीले बोल बोलने वालो का टेम्प्रेचर बढ़ा

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय होने के बाद शिवपाल सिंह यादव को सपा में जल्द ही कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में इस बात की चर्चा है कि इनको कौन सा पद दिया जाएगा।

उन नेताओं की दिल की धड़कने और बढ़ी हुई है जो टॉप लीडरशिप के खिलाफ बयानबाजी करते आए हैं। मैनपुरी में रिकॉर्डतोड़ जीत के बाद शिवपाल यादव राजधानी लखनऊ वापस लौट आए हैं।

अखिलेश यादव भी कुछ दिन में लखनऊ पहुंचने वाले है। अखिलेश और डिंपल के लखनऊ लौटने के बाद ही शिवपाल को मिलने वाली नई जिम्मेदारी की घोषणा हो सकती है।

प्रसपा से सपा में आए नेताओं और खुद सपा के नेताओं में हलचल मची हुई है कि किसका कद बढ़ेगा और किसके पॉलिटिकल फ्यूचर की कुर्बानी दी जाएगी। सपा में ऐसे कई ऐसे नेता हैं, जो शिवपाल के लेकर जहरीले बोल बोलते रहे हैं। उनका टेम्प्रेचर अब बढ़ा हुआ है।

परिवार के एक होने के बाद चाचा-भतीजे के जब आमने-सामने बैठेंगे तो कभी न कभी दोनों के बीच खाई पैदा करने वालों पर जरूर चर्चा होगी। ऐसे में वे लोग निशाने पर आएंगे जिन्होंने गलतफहमी की लकीर को और बढ़ाया।

इस स्थिति में उनका पॉलिटिकल फ्यूचर प्रभावित होना भी तय है। संगठन से जुड़े कई नेता शनिवार को पार्टी कार्यालय में यह पूछते नजर आए कि एक होने के बाद शिवपाल को कौन सी नई जिम्मेदारी से नवाजा जाएगा ?

दूसरी तरफ शिवपाल की पार्टी प्रासपा के उन नेताओं के चेहरे पर भी घबराहट दिख रही है, जो हमेशा सपा शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं। कल शिवपाल सिंह के लखनऊ लौटते ही उनसे मिलने वालों की लंबी लाइन लगी रही। अभी सभी की निगाहें फ्यूचर के स्ट्रेटेजी पर टिकी हुई है।

बेटे आदित्य के पॉलिटिकल फ्यूचर को सिक्योर करने के लिए, क्या शिवपाल ने दी पार्टी की कुर्बानी ?

प्रसपा के सपा में विलय के बाद कई पॉलिटिकल पंडितों ने सोशल मीडिया पर पूछना शुरू किया कि क्या पार्टी से बड़ी बेटे की फिक्र है ?

इसपर हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्याम लाल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और समाजवादी आंदोलन को प्रमुखता से समझने वाले संदीप यादव से बात की।

उन्होंने इसपर कमेंट करते हुए कहा कि सपा और प्रसपा एक ही घर की पार्टी हैं। दोनों में सिर्फ राजनीतिक हित की लड़ाई थी। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद दोनों को एक दूसरे की जरुरत थी। शिवपाल को जहां भतीजे के पार्टी की जरुरत थी। वहीं अखिलेश यादव को चाचा के रूप में एक अनुभवी नेता की जरुरत थी।

दोनों के लड़ने से फायदा बीजेपी को होता था। बीजेपी को हराने के लिए भी इनका एक होना जरुरी था। शिवपाल का विधायक के रुप में शायद यह आखिरी टेन्योर होगा। इसके बाद आदित्य यादव सपा के पुस्तैनी सीट जसवंतनगर से सपा के अगले कैंडिडेट हो सकते हैं।

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