भारतीय राजनीति के कुशल राजनेता प्रणब मुखर्जी न केवल एक बुद्धिजीवी थे बल्कि निर्णयकर्ता,
रणनीतिकार और कई वर्षों तक संसद के महत्वपूर्ण नेता भी रहे। उन्होंने शासन और प्रशासन पर
अपनी गहरी छाप छोड़ी। भारत के इतिहास, कूटनीति, सार्वजनिक नीति और रक्षा मामलों का जबरदस्त
ज्ञान रखने वाले प्रणब मुखर्जी ने केंद्रीय मंत्री से लेकर भारत के 13वें राष्ट्रपति बनने तक पूरी मेहनत
और समर्पण के साथ देश की सेवा की। उनका पूरा जीवन मातृभूमि की सेवा के लिए समर्पित रहा।
देश के लिए अपनी निष्काम सेवा और अमिट योगदान के लिए वह हमेशा किए जाएंगे याद…
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव मिराती में स्वतंत्रता सेनानी कामदा किंकर
मुखर्जी और राजलक्ष्मी के पुत्र के रूप में 11 दिसंबर 1935 को प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ। उन्होंने
कोलकाता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री के साथ-साथ कानून की
डिग्री भी प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एक कॉलेज में प्राध्यापक और बाद में पत्रकार के रूप में
काम करना शुरू किया। राष्ट्रीय आंदोलन में पिता के दिए गए योगदान से प्रेरित होकर प्रणब मुखर्जी
ने सार्वजानिक जीवन में प्रवेश किया। 1969 में राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद वे पूरी तरह से
सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पित हो गए। लोग उन्हें प्यार से ‘प्रणब दा’ कहकर भी बुलाते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें ‘प्रणब दा’ कहते थे जिनका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से संबंध बहुत ही
आत्मीय रहा। प्रधानमंत्री मोदी की प्रणब मुखर्जी से आत्मीयता इससे समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने
कहा था कि आप मेरे लिए अत्यंत स्नेही और ध्यान रखने वाले व्यक्ति रहे हैं। प्रणब मुखर्जी दिनभर
चलने वाली बैठकों या प्रचार अभियान यात्रा के बाद अपने फोन कॉल से पीएम मोदी को ताजगी और
ऊर्जा से भर देते थे जिसमें वह कहते थे, “मैं आशा करता हूं कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख
रहे हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी और प्रणब मुखर्जी के बीच किस तरह के संबंध थे यह पीएम मोदी द्वारा उन्हें लिखे
गए एक पत्र से भी साबित होती है जिसे प्रणब दा ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन सोशल मीडिया
पर साझा किया था। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के लिखे पत्र ने उनके मन को छू लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पत्र में प्रणब मुखर्जी को पिता तुल्य बताते हुए लिखा था कि वह एक
बाहरी व्यक्ति के तौर पर दिल्ली आए थे और उनके सामने जो काम था वह बहुत ही बड़ा एवं
चुनौतीपूर्ण था। इस दौरान आपने पिता के रूप में भूमिका अदा की और मेरा मार्गदर्शन किया। पीएम
मोदी ने इस पत्र में आगे लिखा था कि आपके ज्ञान, मार्गदर्शन और व्यक्तिगत स्वभाव ने मुझे
आत्मविश्वास और ताकत दी। साथ ही, पीएम मोदी ने कहा था कि मेरे लिए गर्व की बात है कि मुझे
आपके साथ प्रधानमंत्री के तौर पर काम करने का अवसर मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रणब मुखर्जी की राजनीतिक यात्रा अलग-अलग राजनीतिक दलों के
माध्यम से हुई थी और उनकी विचारधारा भी अलग थी। उनके जीवन के अनुभव भी अलग-अलग थे।
पीएम बनने से पहले नरेंद्र मोदी के पास जहां राज्य का प्रशासनिक अनुभव था वहीं प्रणब मुखर्जी के
पास राष्ट्रीय राजनीतिक और नीति का अनुभव था। बावजूद इसके दोनों नेताओं ने आपसी सामंजस्य
से तीन साल तक पूरी ऊर्जा के साथ काम किया। राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी के ज्ञान और
अनुभव ने पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की लगातार मदद की।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 1973-75 के दौरान
पोत-परिवहन, इस्पात और उद्योग उप मंत्री तथा वित्त राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। प्रणब
मुखर्जी ने केंद्र में लंबे समय तक वित्त, वाणिज्य, रक्षा और विदेश मंत्री के तौर पर काम किया। साथ
ही योजना आयोग के उपाध्यक्ष के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी।
प्रणब मुखर्जी ने कई दशकों के अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक
मंत्रालयों में अमिट योगदान दिया। वह एक उत्कृष्ट सांसद थे जो सदैव सजग रहते थे और इसके
साथ ही अत्यंत मुखर और हाजिर जवाब भी थे। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने छोटी सी शुरुआत की
और कड़ी मेहनत, अनुशासन और समर्पण के दम पर देश के सबसे ऊंचे संवैधानिक पद तक पहुंचे।
वह एक विद्वान एवं बेहतरीन राजनेता थे जिनका सम्मान सभी राजनीतिक दल और समाज के
सभी तबकों के लोग करते थे। वह चरित्र की सरलता, ईमानदारी और ताकत के प्रतीक थे जिन्होंने
अपनी लंबी और प्रतिष्ठित लोक सेवा के दौरान गरिमा और शिष्टता के साथ हर पद की शोभा बढ़ाई।
सांसद के रूप में प्रणब मुखर्जी के भाषणों ने अच्छी बहस के साथ ही देश को नई दिशा भी दी। कहा
जाता है कि पक्ष हो या विपक्ष वे हमेशा सबको साथ लेकर चले। विपक्ष में रहकर नीति की कटु
आलोचना हो या स्वयं नीति निर्धारण दोनों में ही उनका कौशल बखूबी दिखाई देता था। जब वे सत्ता
में थे तो हमेशा विपक्ष के साथ तालमेल बैठाने के लिए काम करते रहे। जब विपक्ष में रहे तो
रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने से भी कभी पीछे नहीं हटे।
प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई, 2012 को भारत के राष्ट्रपति का पद संभाला और अपना 5 वर्ष का
कार्यकाल पूरा किया। राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी ने इस उच्च पद की गरिमा को बढ़ाया। राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अपने विद्वतापूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण की छाप छोड़ी। भारत के राष्ट्रपति
के रूप में प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन को आम नागरिकों के लिए और भी अधिक सुलभ एवं
सहज बना दिया था। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को ज्ञान प्राप्ति, नवाचार, संस्कृति, विज्ञान और साहित्य
का एक उत्कृष्ट केंद्र बना दिया था। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने राष्ट्रपति भवन में नवाचार
कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का भी काम किया।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अगाध पुस्तक प्रेमी भी थे। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय
राजनीति और राष्ट्र निर्माण पर कई पुस्तकें लिखी हैं। वह खाली समय में पढ़ना, बागवानी करना
और संगीत सुनना पसंद करते थे। प्रणब मुखर्जी कला और संस्कृति के समर्पित संरक्षक भी थे। उन्हें
अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले। इनमें, 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद, 2008 में पद्म विभूषण और 2019
में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न शामिल है। उनकी याददाश्त बहुत जबर्दस्त और
मुद्दों पर पकड़ शानदार मानी जाती थी। उन्होंने लोकतंत्र और विभिन्न संस्थानों को मजबूत बनाने
में खासी दिलचस्पी ली। वह निर्विवाद शख्सियतों में से एक कहे जाने वाले व्यक्ति थे।
पीएम मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति ‘भारत रत्न’ प्रणब मुखर्जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया था
और कहा था कि वर्ष 2014 में मेरे लिए दिल्ली में सब कुछ नया था। यह मेरा सौभाग्य था कि
पहले दिन से ही मुझे प्रणब मुखर्जी से व्यापक मार्गदर्शन, सहयोग और आशीर्वाद मिला। मैं सदैव
उनके साथ अपनी बातचीत की यादों को संजो कर रखूंगा। प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित
किए जाने पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी व्यक्त की थी और कहा था कि मुझे प्रसन्नता है
कि उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। n