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टावर तो गिर गए पर क्या भ्रष्टाचारी इससे सीख  लेंगेॽ

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अशोक मधुप

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 सर्वाच्च न्यायालय के आदेश पर भ्रष्टाचार का पर्याय  बने   नोयड़ा के टूइन टावर रविवार को गिर  गए।पर ये यक्ष प्रश्न छोड़  गए कि अकेले  इन टावर के गिरने से  क्या देश का भ्रष्टाचार रूक जाएगाॽदेश  की जड़ तक में समा चुके भ्रष्टाचार पर क्या कोई  रोक लगेगीॽ क्या भ्रष्टाचारी इससे सीख  लेंगेॽ जिस देश    में संसाधानों की भारी कमी है, क्या उस देश में इन टावर  का प्रयोग स्वास्थ्य सेवा  ,  चिकित्सालय और शिक्षा के  लिए नहीं हो   सकता थाॽ

रविवार को कुछ ही सेकेंड में नोएडा की चर्चित दो बहुमंजिला इमारतें धराशायी हो गईं। दोपहर के ठीक ढाई बजे इन ट्विन टॉवर को विस्फोटकों से उड़ा दिया गया । अब  इन बहुमंजिला इमारतों को जगह  मलबा  ही  बचा है। एपेक्स और सेयेन नामक इन टावर को सुपरटेक बिल्डर ने बनाया । बाद में पाया गया कि इन्हें बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया। ये देश में गिराई जाने वाली सबसे बड़ी बहुमंजिला इमारतें हैं।एपेक्स (32 मंजिली) और सेयेन (30 मंजिला) जुड़वां टावर भारतीय राजधानी में सबसे ऊंचे कुतुब मीनार से ऊंचे थे।इस टावर को गिराने का फ़ैसला एक लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद लिया गया था। यह संघर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय से शुरू हुआ था और इसका अंतिम फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट में हुआ।

इन टावर के निर्माण की कहानी 2004 में शुरू होती है।  नोएडा (न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत एक आवासीय क्षेत्र बनाने के लिए सुपरटेक नामक कंपनी को यह जगह आवंटित की । 2005 में, नोएडा बिल्डिंग कोड और दिशा निर्देश 1986 के अनुसार सुपरटेक ने प्रत्येक 10 मंजिल वाले 14 फ्लैटों की योजना तैयार की । नोएडा अथॉरिटी ने 10 मंजिलों वाले 14 अपार्टमेंट भवनों के निर्माण की अनुमति दी गई,साथ ही यह भी प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंचाई 37 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।योजना के अनुसार, इस साइट पर 14 अपार्टमेंट और एक वाणिज्यिक परिसर के साथ एक गार्डन विकसित किया जाना था।2006 में कंपनी को निर्माण के लिए पुरानी शर्तों पर अतिरिक्त ज़मीन दी गई । सुपरटेक  नई योजना बनाई ।  इसमें  बिना गार्डन के दो और 10 मंजिल भवन  बनाए जाने थे।अंत में, 2009 में, 40 मंजिलों के साथ दो अपार्टमेंट टावर बनाने के लिए अंतिम योजना तैयार की गई । 2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई।याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन टावरों के निर्माण के दौरान उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है।इसके मुताबिक केवल 16 मीटर की दूरी पर स्थित दो टावरों ने कानून का उल्लंघन किया था।याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इन दोनों टावरों को बगीचे के लिए आवंटित भूमि पर अवैध रूप से खड़ा किया गया था।

2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए मामला आने से पहले, नोएडा प्रशासन ने 2009 में दायर योजना (40 मंजिलों वाले दो अपार्टमेंट टावर) को मंजूरी दे दी ।मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का  अप्रैल 2014 में फ़ैसला आया।  उसने इन टावरों को गिराने का आदेश भी जारी किया ।यह भी आदेश दिया  कि टावर बनाने वाले सुपरटेक को टावर गिराने का ख़र्च वहन करना चाहिए। यह भी  आदेश किया कि पहले से ही  खरीदने वालों को 14 फ़ीसदी ब्याज़ के साथ पैसा वापस करना चाहिए। मई में, सुपरटेक ने फ़ैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दावा किया कि निर्माण कार्य उचित मानदंडों के मुताबिक ही किया गया है।अगस्त 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि नियमों का उल्लंघन किया गया था।नतीजतन,    रविवार 28 अगस्त, 2022, ट्विन टावरों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर रविवार को दोनों टावर गिर गए।  पर इन टावर को बनाने की अनियमितता में शामिल रहे प्रशासनिक अमले और सुपरटेक के प्रबंधन  पर कोई  कार्रवाई  नही हुई। टावर गिरने  के दिन सिर्फ  इस अनियमितता और घोटालों में शामिल होने  वालों की लिस्ट ही जारी हो सकी।  हालाकि उत्तर प्रदेश  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सख्ती के लिए मशहूर हैं, किंतु इन अधिकारियों के खिलाफ  कार्रवाई की मानीटरिंग भी सर्वाच्च न्यायालय को करनी चाहिए।  ये  देखना  चाहिए कि कार्रवाई  जल्दी  हो और कठोर  हो। ऐसी हो कि आगे को ऐसा करने  का  हौंसला  न कर सके। घोटाले में शामिल रहे अधिकारी और कर्मचारियों से नुकसान की राशि वसूली जानी चाहिए।

एक बात और आमतौर पर ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कालोनाइजर नियम विरूद्ध  निर्माण  कराते  हैं किंतु यह पहला  मामला है,  जिसमें यह कार्रवाई  हुई  है।पर भ्रष्टाचार को  रोकने के लिए अभी  लंबी लड़ाई  लड़नी होगी। हां इस आदेश का बड़ा फायदा ये होगा कि अब तक गलत भवन बनाने पर विकास प्राधिकरण के अधिकारी  कालोनाइजन या भवन स्वामी  से मिलकर शमन शुल्क लेकर मामला निपटा लेते ,अब ऐसा नही कर पांएगे।  इन्हें भी गलत बने भवन गिरवाने होंगे।  

उधर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर प्रतिक्रिया   आनी शुरू हो गई  हैं। कहा जा रहा है कि इन टावर के दूसरे जनहित में प्रयोग करने पर विचार किया जा सकता था।  दिल्ली बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने ट्विन टावर ब्लास्ट पर सवाल खड़ किए हैं। कपिल मिश्रा ने ट्विट कर कहा कि ट्विन टावर जिसने बनाए, उसे सजा नहीं दी जा रही है।जिसने बनवाए उसे सजा नहीं दी जा रही है। इतनी बड़ी बिल्डिंग को ध्वस्त करने के बजाय उसमें अस्पताल, हॉस्टल, बुजुर्गों का निवास, निराश्रित महिलाओं का आश्रय बनवाया जा सकता था। इसके साथ ही मिश्रा ने दिवाली का हवाला देते हुए कहा कि माननीय न्यायालय दिवाली पर पटाखे चलाने से रोकती है और पटाखे नहीं फोड़ने देती है। न्यायालय द्वारा कहा जाता है कि इससे प्रदूषण होता है। अब न्यायालय द्वारा खुद ट्विन टावर ब्लास्ट से प्रदूषण करने वाला ऑर्डर दिया जा रहा है।

ये प्रतिक्रिया तो आएंगी। आनी भी  चाहिए ।  ये जरूर है कि टावर गिराने की जगह अगर न्यायालय इसके किसी दूसरे प्रयोग पर विचार करता  तो ज्यादा बेहतर रहता। अब जो  हो गया,उसे  तो नही रोका  जा सकता किंतु आगे आने वाले मामलों में इस प्रकार के प्रयोग पर विचार किया जा सकता है।

अशोक मधुप

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