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खुले में शौच से मुक्त नहीं हुआ है गांव

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उर्मिला नाई
लूणकरणसर, राजस्थान
देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से पांच वर्ष पूर्व शुरू हुए अभियान को अभी पूरा होने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. यह अभियान सबसे अधिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में चलाया गया था. इसके लिए लोगों को घर में शौचालय बनाने के लिए सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी प्रदान किया जाता है. आर्थिक रूप से कमजोर देश के लाखों गरीब परिवार ने इसका लाभ उठाकर अपने घर में शौचालय का निर्माण कराया है. इसका सबसे अधिक लाभ महिलाओं और किशोरियों को हुआ है. इससे एक तरफ जहां उनके स्वास्थ्य पर बेहतर असर हुआ है, वहीं दूसरी ओर असामाजिक तत्वों द्वारा उनके साथ किए जाने वाले दुराचार में भी काफी कमी आई है. इस अभियान के शुरू होने के बाद कई राज्यों ने शत प्रतिशत घरों और समुदायों में शौचालय के निर्माण का लक्ष्य प्राप्त कर स्वयं को पूर्ण रूप से ओडीएफ मुक्त घोषित किया है.
राजस्थान की तत्कालीन सरकार ने भी वर्ष 2018 में राज्य के सभी 43,344 गांवों के साथ साथ पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों को पूर्ण रूप से खुले में शौच से मुक्त होने की घोषणा की थी. लेकिन इसके पांच वर्ष बाद ही देश के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचारपत्र ने पंचायती राज विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के साथ यह खबर प्रकाशित की कि राजस्थान के 85,316 परिवारों के पास अभी भी शौचालय की सुविधा नहीं है. इन परिवारों की पहचान राज्य के 11,145  ग्राम पंचायतों के माध्यम से की गई है. इनमें सबसे अधिक बाड़मेर जिला है जहां 13,051 परिवारों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है. जबकि श्रीगंगानगर में 7,821, जोधपुर में 4,230, भरतपुर में 3,866, अलवर में 3,709, करौली में 3,625 और उदयपुर जिला में 3,623 परिवारों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है. इतना ही नहीं, खबर के अनुसार राजधानी जयपुर के 1,227 परिवारों के पास भी शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
राज्य के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का करणीसर गांव भी इस कमी का एक उदाहरण है. 

ब्लॉक मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर इस गाँव में 543 परिवार आबाद हैं. जहां अधिकतर परिवारों के पास अब भी शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहीं कुछ घरों में शौचालय की कच्ची दीवार होने के कारण उसके गिरने का खतरा बना रहता है. इस संबंध में गांव की 50 वर्षीय सीमा देवी कहती हैं कि “मेरे घर में अब भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है. जिसकी वजह से मुझे और मेरी नवब्याहता बहू को सवेरे उठकर गांव से दूर खेतों में शौच के लिए जाना पड़ता है. कई बार फसल जुताई के समय ग्रामीण हमें खेत में भी नहीं जाने देते हैं. ऐसे में मुझे अपनी बहू को लेकर गांव से बहुत दूर जाना पड़ता है. मुझे उसके लिए ऐसा करते अच्छा नहीं लगता है.”

सीमा देवी कहती हैं कि शौचालय निर्माण के लिए हमने भी फॉर्म जमा करवा रखा है, लेकिन अभी तक आर्थिक सहायता नहीं मिली है. हम आर्थिक रूप से इतने कमजोर हैं कि अपने पैसों से शौचालय निर्माण नहीं करा सकते हैं.वहीं 70 वर्षीय बिमला देवी बताती हैं कि सरकार द्वारा हर घर में शौचालय निर्माण का लक्ष्य सराहनीय है. इससे महिलाओं को सबसे अधिक लाभ मिल रहा है. लेकिन एक शौचालय निर्माण के लिए न्यूनतम 25 हजार रुपए का खर्च आता है. जिसमें सेप्टिक टैंक और पानी की टंकी सहित दरवाजा और अन्य आवश्यक चीजें शामिल हैं. लेकिन सरकार की ओर से इसके लिए मात्र बारह हजार रुपए ही आर्थिक सहायता मिलती है. ऐसे में बहुत से परिवार पैसे मिलने के बावजूद शौचालय निर्माण कराने में असमर्थ हैं. वह कहती हैं कि यदि सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता को बढ़ा दिया जाए तो बहुत से गरीब परिवारों के घर में शौचालय का निर्माण संभव हो सकता है. वहीं 30 वर्षीय भंवरी देवी कहती हैं कि फॉर्म भरने के बावजूद जब उन्हें शौचालय निर्माण के पैसे नहीं मिले तो उन्होंने घर में अपने पैसों से किसी प्रकार से एक अस्थाई शौचालय का निर्माण कराया है. जिसमें न तो पानी की सुविधा है और न ही उसकी दीवार पक्की है. ऐसे में तेज बारिश में हमेशा उसके गिरने का खतरा बना रहता है. वह कहती हैं कि सरकार द्वारा इज्जत घर के निर्माण के लिए दिए जाने वाली राशि भी कम है और इसके लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया भी काफी धीमी है.हालांकि गांव में 12वीं तक संचालित सरकारी विद्यालय में शौचालय की अच्छी व्यवस्था है. इस संबंध में 10वीं की छात्रा 16 वर्षीय उर्मिला कहती है कि स्कूल में न केवल लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था है बल्कि इसमें पानी और साफ सफाई भी रहती है. लेकिन छात्राओं द्वारा माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए गए पैड्स के निस्तारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अक्सर यह शौचालय गंदा हो जाता है. पैड्स के निस्तारण की व्यवस्था नहीं होने के कारण अक्सर लड़कियां माहवारी के दौरान स्कूल आना बंद कर देती हैं. वहीं गांव में संचालित आंगनबाड़ी में भी शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण यहां काम करने वाली सेविकाओं और सहायिकाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. नाम नहीं बताने की शर्त पर गांव की एक महिला ने बताया कि अक्सर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आसपास के घरों में बने निजी शौचालय का उपयोग करने पर मजबूर होती हैं. कई बार उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलने पर उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.गांव के समाजसेवी सेठीलाल कहते हैं कि सरकार द्वारा हर घर में शौचालय निर्माण की योजना सराहनीय है. लेकिन अभी भी करणीसर गांव के बहुत से घरों में शौचालय का निर्माण नहीं होना चिंता का विषय है. शौचालय निर्माण की मुहिम से सबसे अधिक महिलाओं विशेषकर बीमार और गर्भवती महिलाओं को लाभ हुआ हैं. उनकी सेहत में पहले की अपेक्षा काफी सुधार आया है. अभी भी जिन घरों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है जहां महिलाएं और किशोरियां सूरज निकलने से पहले खुले में शौच करने के लिए जाने को मजबूर होती है. ऐसी महिलाएं और किशोरियां दिनभर नाममात्र का खाना और पानी पीती हैं ताकि उन्हें दिन में शौच जाने की जरूरत न पड़े. इससे उनके स्वास्थ्य पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है और वह कुपोषण का शिकार हो जाती हैं. 
सेठीलाल के अनुसार करणीसर गांव में अधिकार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार के लोग निवास करते हैं. जिनकी इतनी आमदनी नहीं होती है कि वह अपने पैसों से शौचालय का निर्माण करा सकें, वहीं सरकार की ओर से दिए जाने वाली आर्थिक सहायता खर्च से काफी कम होती है. ऐसे में सरकार और संबंधित विभाग को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि जरूरतमंदों को इसका लाभ मिले और खुले में शौच से मुक्ति का दावा धरातल पर नजर आ सके. (चरखा फीचर)

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