जगत सिंह
अजमेर, राजस्थान
हमारे देश में सामाजिक स्तर पर कुछ बुराईयां और कुरुतियां ऐसी हैं जिसने गहराई से समाज में अपनी जड़ें जमा रखी हैं. यह न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य में भी विकास की प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करता है. इनमें सबसे प्रमुख बाल विवाह है. आज भी देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां ग्रामीण स्तर पर बाल विवाह जैसी बुराई देखने और पढ़ने को मिल जाती है. इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव किशोरियों के जीवन पर पड़ता है. इससे न केवल उनका शैक्षणिक बल्कि शारीरिक और मानसिक विकास भी रुक जाता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े कुछ समुदायों में अभी भी बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई देखने को मिल जाती है. इनमें राजस्थान के अजमेर जिला स्थित नाचनबाड़ी गांव में आबाद कालबेलिया समुदाय भी है. जहां कम उम्र में ही लड़कियों की शादी की परंपरा अभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है.
इस संबंध में समुदाय की 22 वर्षीय कंचन (नाम परिवर्तित) कहती हैं कि “14 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई थी. 16 वर्ष की उम्र में मां बन गई. घर और ससुराल दोनों ही आर्थिक रूप से कमज़ोर था. इसलिए कभी पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाया. इस उम्र तक तीन बच्चे हो चुके हैं.” वह कहती है कि हर समय शरीर में कमज़ोरी का एहसास होता है. लेकिन इसी हालत में घर का सारा काम करना होता है और बच्चों की देखभाल भी करनी होती है. कंचन कहती है कि उसके पति स्थानीय मार्बल फैक्ट्री में पत्थर कटिंग का काम करते हैं. उन्हें मिलने वाले पैसों से घर में राशन का पूरा इंतेज़ाम नहीं हो पाता है. हालांकि आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाले आहार और आशा वर्कर द्वारा सेहत की नियमित जांच से
गर्भावस्था के दौरान उसे काफी लाभ हुआ था. वहीं 28 वर्षीय लक्ष्मी बताती हैं कि उसकी भी 13 वर्ष की उम्र में शादी कर दी गई थी. उसके पांच बच्चे हैं और सभी कुपोषण के शिकार हैं. वह कहती है कि कम उम्र में शादी, पोषणयुक्त आहार की कमी और घर के सारे काम करने की वजह से वह अक्सर बीमार रहती है. उसे कभी भी स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला.
इसी समुदाय की एक 70 वर्षीय बुजुर्ग लक्ष्मी का कहना है कि कालबेलिया समाज में लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाना आम बात है. मेरी शादी 13 साल की उम्र में हो गई थी. मैं न केवल शादी शब्द से अनजान थी बल्कि इसका अर्थ भी नहीं जानती थी. जिस उम्र में लड़कियां ज़िम्मेदारी से मुक्त केवल पढ़ाई और खेलती हैं उस उम्र में मुझे बहू के नाम पर घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारियां सौंप दी गई थीं. 16 वर्ष की उम्र में मैं गर्भवती भी हो गई थी. इस दौरान भी मेरे उपर पूरे घर की जिम्मेदारी होती थी. घर का सब काम मुझे करना होता था. पौष्टिक खाना उपलब्ध नहीं होता था. जिस वजह से मेरा गर्भपात हो गया था. वह कहती हैं कि कालबेलिया समुदाय में कोई भी परिवार आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है. ऐसे में गर्भवती महिला के लिए पौष्टिक खाना उपलब्ध होना संभव नहीं है. अधिकतर परिवार में पुरुष दैनिक मज़दूरी करते हैं जिससे बहुत कम आमदनी होती है. कई बार काम नहीं मिलने के कारण घर में चूल्हा भी नहीं जल पाता है. अक्सर इस समुदाय की महिलाएं त्योहारों के दौरान फेरी लगाने (भिक्षा मांगने) शहर चले जाती हैं. जिससे कुछ दिनों के लिए उन्हें खाने पीने का सामान मिल जाता है.
नाचनबाड़ी अजमेर शहर से पांच किमी दूर घूघरा पंचायत में स्थित है. लगभग 500 की आबादी वाले इस गांव में कालबेलिया समुदाय की बहुलता है. आर्थिक और सामाजिक रूप से यह समुदाय अभी भी विकास नहीं कर पाया है. सरकार द्वारा इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति समुदाय के रूप में मान्यता मिली हुई है. इस संबंध में गांव में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका इंदिरा बाई कहती हैं कि कालबेलिया समुदाय में बाल विवाह होने के बहुत सारे कारण हैं. एक ओर जहां समुदाय में अभी भी जागरूकता की कमी देखी जा सकती है वहीं दूसरी ओर गांव में हाई स्कूल की कमी भी एक कारण है. नाचनबाड़ी में केवल एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां पांचवीं तक पढ़ाई होती है. इसके आगे दो किमी दूर घूघरा जाना पड़ता है. जहां अधिकतर अभिभावक लड़कियों को नहीं भेजते हैं. इसलिए गांव में पांचवीं से आगे लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा दी जाती है. यदि गांव में ही दसवीं तक स्कूल बन जाए तो न केवल बालिका शिक्षा का ग्राफ बढ़ेगा बल्कि शिक्षा की इस जागरूकता के कारण बाल विवाह भी रुक सकता है. इंदिरा बाई कहती हैं कि वह पिछले 12 वर्षों से इस आंगनबाड़ी केंद्र से जुड़ी हुई हैं. ऐसे में गांव के हर घर से वह परिवार की तरह जुड़ी हुई हैं. वह अपने स्तर पर बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का लगातार प्रयास भी करती रहती हैं.
यूनिसेफ इंडिया की वेबसाइट के अनुसार अनुमानित तौर पर भारत में प्रत्येक वर्ष 18 साल से कम उम्र में करीब 15 लाख लड़कियों की शादी होती है जिसके कारण भारत में दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है. 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं. हालांकि एक अच्छी बात यह है कि साल 2005-06 से 2015-16 के दौरान 18 साल से पहले शादी करने वाली लड़कियों की संख्या 47 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत रह गई है, पर यह अभी भी अत्याधिक है. यह न केवल चिंता का विषय है बल्कि लैंगिक असमानता और महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है. वेबसाइट के अनुसार बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है जिससे उनपर हिंसा तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है. हालांकि बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव सबसे अधिक लड़कियों के जीवन पर पड़ता है. इससे उनके विकास के अवसर छिन जाते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि इस प्रकार की एक प्रभावी नीति बनाई जाए जिससे लड़कियों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध हो सके और बाल विवाह जैसे दंश से उन्हें मुक्ति मिल सके. लेकिन किसी भी नीति को बनाने से पहले उस समुदाय के सामाजिक ढांचों और कारणों को समझना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. (चरखा फीचर)