अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव भी

Share

चुनावी मौसम में मतदाताओं को एक अलग दर्जा दे दिया जाता है। उन्हें विशेष महसूस करवाया जाता है और इसके लिए उम्मीदवार और पार्टियां अपनी पूरी ताकत और पैसा झोंक देती हैं। भले ही बेहद कम समय के लिए ही क्यों न हो, मतदाता वास्तव में ‘दाता’ के रूप में लिया जाता है। इस समय लोकसभा चुनावों में भी यही स्थिति देखने को मिल रही है। हर तरह से पार्टियां मतदाताओं को रिझाने में लगी हुई हैं। चुनाव के दौर में कैश से भरी गाड़ियां और अन्य गतिविधियां बताती हैं कि किस चुनावी खर्च के नाम पर कितनी उदारता से पैसा बहाया जाता है।

चुनाव खर्चों पर नजर रखने वाले सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार इस बार (लोकसभा चुनाव 2024) का अनुमानित व्यय 2019 के चुनाव खर्च से कहीं अधिक है। इस बार यह 55-60 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। चुनावी खर्च पर नजर रखने वाली OpenSecrets.org के अनुसार यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनावों पर हुए खर्च (14.4 बिलियन डॉलर या 1.2 लाख करोड़ रुपये) के लगभग बराबर है। ऐसे में भारत में हो रहा दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव भी साबित होने वाला है। कहते हैं न कि कई बार शक्ति और सत्ता की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

भारतीय स्टार्टअप्स को मिलाकर भी नहीं हुआ इतना कैश बर्न

महज दो महीने से कम समय में एक लाख करोड़ रुपये का खर्च मायने रखता है। यदि सभी भारतीय स्टार्टअप कंपनियों का खर्च जोड़ लिया जाए तो यह खर्च उनसे भी कहीं अधिक है। लेकिन राजनीतिक दलों को इस बात से क्यों फर्क पड़ने लगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस उदारता का परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण इलाकों में खपत बढ़ गई।

भले की कहा जा सकता है कि इससे सकल घरेलू उत्पाद 0.2-0.3% बढ़ा है लेकिन यहां मुद्दा यह नहीं है, न ही यह प्रतिशत इतना मायने रखता है। बड़ा मुद्दा है इस तरह बढ़ता चुनावी खर्च जो इस तरह किया जाता है कि इस खर्च के अधिकांश हिस्से का कोई हिसाब नहीं होता।

भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा बनाए गए एक्सपेंडीचर अॉब्जर्स बनाए जाने के बाद भी पैसा ऐसे पानी की तरह बहाया जा रहा है। पार्टियां मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए उपहार, नकदी, सोना और यहां तक कि दवाओं जैसी चीजें भी मुहैया करवा रही हैं। अंडर द टेबल लेनदेन की यह प्रवृति हर चुनाव के साथ बढ़ती जा रही है।

ईसीआई के ‘मेरा वोट बिक्री के लिए नहीं है’ जैसे विज्ञापन भी इस प्रक्रिया पर शिकंजा नहीं कस पा रहे हैं। मतदाताओं को जागरूक करने के लिए यह विज्ञापन बनाए हैं और संदेश दिए जा रहे हैं कि वोट के बदले नोट लोकतंत्र के साथ विश्वासघात है। यह एक दंडनीय अपराध भी है जिसमें एक साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों शामिल हैं। बढ़ते चुनावी खर्च में यह विज्ञापन केवल जुमला बनकर रह गए हैं।

25 हजार से शुरू हुई थी व्यय सीमा

चुनावों में आधिकारिक तौर पर खर्च की सीमा 25 हजाए रुपये से शुरू हुई थी। ईसीआई चुनाव खर्च पर नियंत्रण लगाकर उसे संतुलित करने का काम करता है लेकिन पार्टियों के खर्च के लिए ऐसी कोई सीमा नजर नहीं आती। उम्मीदवारों के लिए जहां चुनाव प्रचार के अन्य पहलुओं पर एक कप चाय की कीमत जैसे न्यूनतम व्यय तक की सीमा निर्धारित करता है, वहीं पार्टी के खर्च पर कोई सीमा नहीं है।

जहां तक उम्मीदवारों के खर्च की बात है प्रत्येक उम्मीदवार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 75-95 लाख रुपये (क्षेत्र के आधार पर) और विधानसभा सीटों के लिए 28-40 लाख रुपये से अधिक खर्च नहीं कर सकता है। इस राशि को प्रत्येक उम्मीदवार सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर और बैनर, वाहनों और अन्य सहित प्रचार पर कानूनी रूप से खर्च कर सकता है। 1951-52 में पहले आम चुनाव के दौरान इस व्यय की सीमा लगभग 25 हजार रुपये थी।

आज यह बढ़कर प्रत्येक उम्मीदवार के लिए वर्तमान 75-95 लाख रुपये हो गई है। सीएमएस रिपोर्ट के अनुसार 1998 से 2019 के 20 वर्षों में यह खर्च छह गुना बढ़ गया और 2019 में खर्च नौ हजार करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 55 हजार करोड़ रुपये हो गया। पिछले दो दशकों में ईसीआई द्वारा खर्च करने की सीमा का प्रतिशत नहीं बढ़ा है। यदि 1998 में यह नौ हजार करोड़ रुपये के कुल खर्च का 13% था तो 2019 तक यह विधानसभा चुनावों पर किए गए खर्च सहित 15% था। 2019 के चुनावों के दौरान औसत प्रति वोट सात सौ रुपये यानी कि प्रति लोकसभा क्षेत्र लगभग सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए।

राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए दांव बहुत ऊंचे हैं ऐसे में 2024 का चुनाव खर्च काफी बढ़ने की संभावना है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि सारा खर्च मतदाताओं की जेब में नहीं जाता। हम अगर 2019 के चुनावों की तो उस दौरान कुल चुनाव खर्च 55-60 हजार करोड़ रुपये में से लगभग 20-25% यानी 12-15 हजार करोड़ रुपये मतदाताओं के पास गए। इसमें से बड़ा हिस्सा लगभग 30-35% यानी कि 20 हजार-25 हजार करोड़ रुपये अभियान और प्रचार पर खर्च हुआ था। इस दौरान ईसीआई प्रकटीकरण के तहत आने वाला औपचारिक व्यय 10-12 हजार करोड़ रुपये यानी कि 15-20% था।

इसके अलावा एक बड़ा खर्च लॉजिस्टिक्स का था जोकि लगभग पांच हजार-छह हजार करोड़ रुपये यानी कि कुल व्यय का 8-10% था। सीएमएस की गणना के अनुसार बाकी का खर्च अन्य मदों में था। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार का लक्ष्य केवल चुनाव जीतना और फिर समाजसेवा करना नहीं होता। उसे छलकपट से सत्ता, पावर और लाभ का की चाहत होती है। इन खर्चों में से एक बड़ा हिस्सा कैसे अपने नाम कर लेना है, इसकी ललक होती है। संसद के दोनों सदनों में बढ़ते रईसों की संख्या और करोड़पति-क्लब का मैदान में उतरना इसी प्रवृति का नतीजा है।

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 2009 के चुनावों के दौरान 29% उम्मीदवार ऐसे थे जिनके पास एक करोड़ रुपये या उससे अधिक की संपत्ति थी। यह संख्या बढ़कर 474 सांसदों तक पहुंच गई। यानी कि सदन में लगभग 88% उम्मीदवारों के पास एक करोड़ रुपये या उससे अधिक की संपत्ति थी। 2019 तक करोड़पति उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या को देखकर यही अंदाजा लगता है कि चुनाव खर्च पूरी तरह से सूझबूझ के साथ किया गया निवेश है जो सत्ता में आने के बाद सबसे अच्छा रिटर्न देता है। इतना ही नहीं, राजनीतिक दल भी उम्मीदवारों की ओर से तेजी से खर्च कर रहे हैं।

एक अनुमान के अनुसार 2019 में 32 राष्ट्रीय और राज्य दलों द्वारा आधिकारिक तौर पर खर्च किए गए कुल 2,994 करोड़ रुपये में से 529 करोड़ रुपये एकमुश्त राशि के रूप में उम्मीदवारों को दिए गए। हाल ही में इलेक्टोरल बॉन्ड को खत्म करना, चुनावों के लिए तथाकथित क्लीन फाइनेंसिंग जैसी चीजें की गई लेकिन इससे किसी तरह का कोई झटका नहीं लगने वाला है।

दानदाताओं का पैसा अक्सर रियल एस्टेट, खनन, कॉर्पोरेट, उद्योग, चिट फंड, ठेकेदारों, विशेष रूप से सिविल, ट्रांसपोर्टरों, एनआरआई और अन्य जैसे विभिन्न उद्योग स्रोतों से आता है। एक सराहनीय तथ्य यह है कि मतदाताओं ने समझदारी से खरीदारी करना सीख लिया है। विशेषज्ञों और रणनीतिज्ञों की मानें तो अब वोटर भी अब समझदार हो गया है। अब वे पार्टियों और कैंडीडेट्स को सीधी चुनौती देते हैं कि सारा पैसा वे अपनी जेब में नहीं रख सकते।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें