सुप्रीम कोर्ट के इस साल ऐसे तमाम फैसले सुनाए जो समाज के लिए नजीर बन गए। बिलकिस बानो के दोषियों की सजा माफी रद्द करने से लेकर बुलडोजर जस्टिस और चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने जैसे तमाम ऐतिहासिक फैसलों ने समाज की नई दिशा कायम की। इस साल कई महत्वपूर्ण मामलों को कोर्ट ने निपटाया। आज हम आपको बताते हैं कि इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कौन-कौन से बड़े फैसले सुनाए।
साल 2024 कई मायनों में खास रहा है। एक ओर देश-दुनिया को तमाम बड़ी उपलब्धियां हासिल हुईं तो सुप्रीम कोर्ट के इस साल ऐसे तमाम फैसले सुनाए जो समाज के लिए नजीर बन गए। बिलकिस बानो के दोषियों की सजा माफी रद्द करने से लेकर बुलडोजर जस्टिस और चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने जैसे तमाम ऐतिहासिक फैसलों ने समाज की नई दिशा कायम की। जेलों में होने वाले जातिगत भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई तो वहीं रिश्वतखोरी मामले में एमपी एमएलए को जेल भेजने का फैसला सुनाकर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के स्तर को संतुलित करने की कोशिश की। इसके अलावा इस साल कई महत्वपूर्ण मामलों को कोर्ट ने निपटाया। आज हम आपको बताते हैं कि इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कौन-कौन से बड़े फैसले सुनाए।
देश की सर्वोच्च अदालत है सुप्रीम कोर्ट
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत स्थापित की गई थी। शीर्ष अदालत के पास कानूनों की व्याख्या करने और उन पर निर्णय देने की शक्ति है। इतना ही नहीं, इसके पास उच्च न्यायालयों और अन्य सभी न्यायालयों के निर्णयों की भी समीक्षा करने की भी ताकत है। सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने के लिए भी जिम्मेदार है।
बिलकिस बानो के दोषियों की सजा माफी रद्द की
साल की शुरुआत में जनवरी में ही सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले में गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए दोषियों की सजा माफी रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई, वही राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती बल्कि महाराष्ट्र सरकार इस पर फैसला करेगी। गुजरात सरकार ने माफी नीति के तहत साल 2022 में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें जेल से रिहा कर दिया था।
चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक
फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने का एलान किया। कोर्ट ने इस योजना को असांविधानिक करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना का अधिकार योजना का उल्लंघन है। कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिए कि वह चुनावी बॉन्ड को जारी करना बंद कर दें। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने किस राजनीतिक दल को कितना चंदा मिला, इससे जुड़ी डिटेल्स भी मांगी। इसके बाद जब चुनाव आयोग ने चुनावी बॉन्ड देने वालों की सूची जारी की तो सियासत में हंगामा मच गया।
बाबा रामदेव और पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन पर लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण को फटकार लगाई थी। दोनों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने पतंजलि पर कोविड टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ बदनाम करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया था।
एससी-एसटी वर्ग आरक्षण में वर्गीकरण
इसी साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 बहुमत से ईवी चिन्नैया मामले को खारिज करते हुए एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी। 2024 के पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण) फैसले में क्रीमी लेयर के विचारों पर जोर दिया गया और विभिन्न एससी/एसटी उप-समूहों के बीच समान लाभ वितरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की शक्ति की पुष्टि की गई। अदालत ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 15 और 16 राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से नहीं रोकते हैं।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना, फोन में रखना और देखना पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध है। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया था कि केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना पॉक्सो अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है। इस फैसले को सु्प्रीम कोर्ट ने पलट दिया। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने संसद को पॉक्सो अधिनियम में संशोधन के लिए कानून लाने का सुझाव दिया। जिसमें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘चाइल्ड यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री’ से बदल दिया जाए।
बुलडोजर जस्टिस को बताया अस्वीकार्य
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर के जरिये न्याय की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा की। शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकों की संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी देकर उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता और ‘बुलडोजर न्याय’ कानून के शासन के तहत अस्वीकार्य है। अदालत ने कहा कि बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के विरुद्ध है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। सरकार को किसी भी व्यक्ति की संपत्ति ध्वस्त करने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए। अगर बुलडोजर न्याय की अनुमति दी जाती है तो संपत्ति के अधिकार की सांविधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी। यह निर्णय 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक पत्रकार के घर को अवैध रूप से ध्वस्त करने से संबंधित एक मामले में पारित किया गया।
निजी संपत्ति का नहीं किया जा सकता अधिग्रहण
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सामुदायिक संसाधन बताकर हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। इसके लिए संपत्ति की स्थिति, सार्वजनिक हित में उसकी जरूरत और कमी जैसे सवालों पर विचार जरूरी है। शीर्ष अदालत ने 7-2 के बहुमत से दिए निर्णय में 41 साल पुराने अपने ही फैसले को पलट दिया।
यूपी मदरसा एक्ट को सांविधानिक करार दिया
यूपी मदरसा एक्ट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा एक्ट से संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। न ही ये धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का किसी भी तरह से उल्लंघन करता है। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस एक्ट को ठीक से समझे बिना ही रद्द कर दिया। उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘असांविधानिक’ घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मदरसा एक्ट मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षा के मानकों को विनियमित करता है।
सांसदों और विधायकों को मुकदमे से छूट नहीं
मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि यदि किसी सांसद या विधायक पर विधायिका में वोट या भाषण के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया जाता है तो वह मुकदमे से बचने का दावा नहीं कर सकता। सीता सोरेन बनाम भारत संघ (2024) मामले में अदालत ने कहा कि रिश्वत लेना एक खुला अपराध है और इसका संसद या विधानसभा के अंदर विधायक द्वारा कही गई बातों या किए गए कार्यों से कोई संबंध नहीं है। सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने सर्वसम्मति से पीवी नरसिम्हा राव मामले को खारिज करते हुए कहा कि सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत रिश्वतखोरी के लिए संसदीय छूट प्राप्त नहीं है।
धारा 6ए की सांविधानिक वैधता को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की सांविधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर कोर्ट ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है।
जेलों में हो रहे भेदभाव पर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने ‘जाति आधारित भेदभाव’ पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जेल में निचली जातियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम सौंपकर और उच्च जाति को खाना पकाने का काम सौंपकर सीधे तौर पर भेदभाव किया जाता है और यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। साथ ही शीर्ष अदालत ने जाति आधारित भेदभाव, कार्य बंटवारे और कैदियों को उनकी जाति के अनुसार अलग वार्डों में रखने की प्रथा की निंदा की। शीर्ष अदालत में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रथाओं से जेलों में श्रम का गलत बंटवारा होता है तथा जाति आदि के आधार पर श्रम आवंटन की अनुमति नहीं दी जा सकती। राज्य के नियमावली के अनुसार जेलों में हाशिए पर पड़े वर्गों के कैदियों के साथ भेदभाव के लिए जाति को आधार नहीं बनाया जा सकता। सभी जातियों के कैदियों के साथ मानवीय तरीके से और समान व्यवहार किया जाना चाहिए। कुछ वर्ग के कैदियों को जेलों में काम का सही बंटवारा मिलना अधिकार है।
नीट यूजी दोबारा कराने की नहीं दी अनुमति
नीट यूजी को लेकर दायर याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दोबारा परीक्षा आयोजित नहीं कराई जाएगी। कोर्ट से नीट यूजी दोबारा कराने और परिणाम पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सु्प्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि काउंसलिंग और प्रवेश परीक्षा पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी। न्यायालय ने काउंसलिंग और अन्य प्रवेश प्रक्रियाओं को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जारी रखने की अनुमति दी।
दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम सिसोदिया को जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को जमानत दी। मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किए गए पूर्व सीएम केजरीवाल को 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त जमानत दी। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई निकट भविष्य में पूरी होने की संभावना नहीं है। आप नेता जमानत के लिए तीन मानदंडों को पूरा करते हैं। न्यायालय ने कहा कि केजरीवाल इस मामले पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे। इससे पहले नौ अगस्त को दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। उनको 10 मार्च 2023 को ईडी ने गिरफ्तार किया था।
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