अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

सिकंदरा (आगरा) की तरसती कब्रगाह

Share

प्रस्तुति : सुधा सिंह 

     आगरे के किले से हमारा काफिला चला सिकंदरा की ओर…….आगरा से लगभग 4 किलोमीटर दूर मथुरा  रोड पर सिकंदरा एक छोटा सा कस्बा… स्थानीय लोगों के अनुसार  आगरा आकर सिकन्दर लोदी  ने इसी जगह मुकाम किया था और उसी  के नाम पर इस जगह का नाम सिकन्दरा पड़ा|

       अकबर ने इस स्थान को  अपने मकबरे के लिए खुद चुना था और अपने जीवनकाल में ही  इसे बनवाने का काम शुरू कर  दिया था पर शीघ्र ही  उसकी  मृत्यु हो गयी और उसके मकबरे को  जहाँगीर ने पूरा करवाया |

       लगभग 119 एकड़ के क्षेत्र में निर्मित इस पांच मंजिले मकबरे का निर्माण चिर परिचित मुगल चारबाग पद्वति  में हुआ है जिसके बीच में एक चबूतरे के ऊपर मकबरा स्थित है | जिस वक़्त हम इस सादगीपूर्ण  परन्तु  भव्य मकबरे में पहुंचे उस वक्त खुर्शीद साहब  मगरिब की और जा रहे थे और शाम का सुहाना स्वरूप करीब आ रहा था |

      कुल मिला कर  मतलब यह कि हमारे पास समय काफी  सीमित था | इस स्मारक  की भव्यता को देखने समझने के लिए कम से कम एक  दिन तो  चाहिए ही  यद्यपि वह भी कम ही होगा | 

अकबर का मकबरा मुगल कला का एक अद्भुत और विलक्षण नमूना है और साथ ही  यह आईना है  अकबर के व्यक्तित्त्व का, उसके विचारों का, उसकी सोच का | अकबर द्वारा निर्मित यह संभवतः एकमात्र मुगल स्मारक है जो उसके वैचारिक चिन्तन को पूरी तरह से व्यक्त करता है, दर्शाता है |

       अकबर के अन्य सभी   निर्माण थोड़ा या बहुत संशोधित, पुनर्निर्मित हो चुके हैं | आगरा के किले में ही शाहजहाँ  ने बहुतेरे  अकबर कालीन निर्माण तुडवा कर  संगमरमर की इमारतें बनवा दीं | यही हाल कमोबेश सभी जगह पर है सिवाय एक इस जगह को  छोडकर |

      अकबर का मकबरा अकबर का आईना है, और साथ ही आईना है अकबर के पुत्र  जहाँगीर के व्यक्तित्व का भी जिसने इसे पूरा करवाया | 

मुख्य द्वार से घुसते ही दाहिने हाथ पर एक  खंडहर नुमा छोटी  सी इमारत … कहना व्यर्थ है कि गाइड महोदय हमारे साथ थे और हम को खुरपेंच  की आदत ठहरी | ये क्या है….  पूछ बैठे उनसे …. बाद में बताते हैं…. पहले अंदर हो  लीजिये वरना बंद हो जाएगा …. नागवारी  से हमें देखते हुए गाइड महोदय  बोले …. मानो ताड़ रहे हों कि सबसे ज्यादा नरक यही  बन्दा करेगा ……वो  अंदर की  और बढ़ते हुए  बताते जा रहे थे और अपनी नज़रें कांच  महल  पर अटकी थीं |

      समूचे मुग़ल काल में पत्थर पर नक्काशी  का इससे बारीक, इतना महीन, इतना सघन, और इतना भव्य काम शायद ही कहीं और देखने को  मिले | बावजूद इसके कि इसका अधिक खूबसूरत  आधे से ज्यादा भाग जाट आक्रमण में ध्वस्त कर दिया गया, और जला दिया गया, जितना वर्तमान में है  वही इतना अधिक खूबसूरत है कि क्या कहने ….कांच महल  अपने आप  में जहाँगीर के कलाप्रिय व्यक्तित्त्व और सौन्दर्यप्रियता का आईना है |

    मन इसमें अटक गया था,  पर अब हम क्या कह सकते थे … उनके साथ चल दिए |

पत्थर भी  क्या किसी  के व्यक्तित्त्व का आईना हो सकते हैं और वह  भी  उस व्यक्ति  की मूर्ति नहीं, मात्र उसके निर्माण कराये गये कुछ महल, किले या मकबरे …….. सच क्या है यह विद्वान समाज जाने  ……पर अकबर के निर्माण में  उसका पौरुषपूर्ण व्यक्तित्त्व  साफ़ झलकता है| 

     उसकी  युद्धप्रियता, मजबूती, संघर्षशीलता,  दृढ़  मानसिक- आध्यात्मिक  चिंतन प्रक्रिया, वैचारिक विकास, उसके प्रशासनिक आयाम,  उसके हर निर्माण में देखी   जा सकती  है |  अपने सम्पूर्ण जीवन में लगभग 75  युद्ध लड़ने वाला वह  शासक,  जिसे मात्र ढाई  वर्ष की  आयु  में ही  तोपों के गोलों से रक्षा करने के लिए ढाल के रूप  में किले की दीवार से लटकाया गया हो, उसके जीवन में युद्ध और संघर्ष तो  हर क्षण शामिल ही रहेगा,  और संभवतः  यही  कारण है  कि अकबर की हर इमारत लाल  पत्थर की बनी हुई ऐसी  इमारत है जिस की  भव्यता, सुदृढ़ता, सुडौलता, आकार, सौन्दर्य …. हर चीज में उसके पौरुषपूर्ण व्यक्तित्त्व की छाप दिखती  है;  चाहे वह लाल किला हो, सीकरी  हो या फिर सिकंदरा ही क्यूँ न हो …और यह मात्र अकबर के बारे में ही  सत्य नहीं है  बल्कि  दुनिया के प्रत्येक शासक, प्रत्येक व्यक्ति के बारे में लागू  होती है|

       यह अशोक के बारे में भी उतनी ही  सच है जितनी ऑगस्टस के बारे में या चंगेज खान के बारे  में, हिटलर के बारे  में अंग्रेजों के बारे में या सीजर के बारे में| 

मकबरे का प्रवेश द्वार अकबर के ही  सामान भव्य, बुलंद और मजबूत ….अकबर की दूसरी  इमारतों की  तरह  ही लाल  पत्थर का बना हुआ,चारों दिशाओं में चार गेट बिलकुल एक जैसे निर्मित,  चारों कोनो पर चार संगमरमर की मीनारें,  बीच में  प्रवेश द्वार जिस पर अकबर के दीन ए इलाही की छाप …… इसाई,  हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध आदि  धर्मों के चिन्हों से युक्त… दरवाजे पर स्वास्तिक और क्रॉस को देखा जा सकता है  तो  कुरआन की  आयतें भी  हैं ….. फूलों के रूप  में जीवात्मीकरण से लेकर ज्यामितीय चित्रण तक, मुस्लिम गुम्बद से लेकर इसाई  गिरजे तक,  हिन्दू  कलश व् छतरी का स्थापत्य में सघन सांकेतिक प्रयोग, गुम्बद् विहीन  मकबरा, …..सभी धर्मों को एक  में समाहित करके एक नया धर्म चलाने का विचार रखने वाले अकबर का दीन ए इलाही यही तो  था …..  सभी धर्मों की मंजिल एक  है मार्ग भले ही अलग अलग हों… यही  तो  थी  उस व्यक्ति  की सोच  जिसका यह मकबरा है.

यह  मकबरा अकबर द्वारा इस सोच के साथ बनवाया गया कि इस स्थान पर उसकी और उसके खानदान के सदस्यों की कब्रें एक साथ बन सकेंगीं |

        मकबरे के मुख्य भवन के चारों ओर बीच में  एक गेट हैं जिनके दोनों ओर 5-5 की संख्या में अर्ध वृत्ताकार  संरचनाएं हैं जिनमें से प्रत्येक में एक  कब्र के लिए स्थान बना हुआ  हैं|

        ऐसी कुल 40 कब्रें यहाँ मौजूद हैं जिनमे से मात्र 4 में किसी  का शव दफन है……..शेष  खाली कब्रें हैं | इन  चार में भी  अकबर की  कब्र में उसके अवशेष नहीं हैं पर उसकी चर्चा आगे | अभी तो  इस मकबरे में  मात्र तीन कब्रें ऎसी हैं जिनमे कोई शव दफन हैं |

        बाकी सिर्फ कब्रें हैं जिनको  लाश भी  नहीं मयस्सर हुई …….देखा जाए तो अकबर ने यह स्थान मूल रूप से मुगल वंश का निजी कब्रिस्तान के रूप  में चुना था जिसकी मुख्य इमारत उसने खुद ही अपने जीवन काल में बनवा दी थी | मुख्य मकबरे   की  पहली मंजिल भी उसी ने बनवाई थी जो लाल बलुआ पत्थर की है | बाकी  निर्माण जहाँगीर ने करवाया |

पहले द्वार अर्थात जहाँगीरी  गेट से आगे बढे …. सामने चारबाग पद्वति  में चारों ओर चार बागों से घिरा हुआ एक बड़ा चबूतरा … चारों  दिशाओं के प्रवेश द्वारों के प्रवेश द्वार से मुख्य भवन तक  चारों ओर एक लाल पत्थर का खुला चौड़ा गलियारा, बीच बीच में पर्याप्त आकार की  नहर संरचना आधारित जल प्रवाह प्रणाली और दो   टैंक या जलाशय …. चारों ओर से मुख्य भवन में प्रवेश के लिए एक  समान दूरी और संरचना जो आकर एक चबूतरे के सामने खत्म होता है जहाँ से मुख्य भवन पर चढने के लिए कुछ सीढियां और उसके बाद 5 फुट उंचा  सलामी दरवाजा ….!

        इस दरवाजे की  भी  अजब कहानी  है …. अकबर के व्यक्तित्त्व के एक  दुसरे पहलू को  दर्शाती  हुई …… दरअसल अकबर की लम्बाई अपेक्षाकृत काफी कम थी  और इसका भी  पर्याप्त उल्लेख मिलता है  कि इस  कारण उसमें हीन भावना भी थी  | अकबर के मित्र बीरबल  ने अकबर को  सलाह दी थी  कि आप  दरवाजे कम ऊँचे बनवाइए |

      जो  भी  अन्दर आयेगा उसका सर स्वत आपके सामने झुका रहेगा |  हालाँकि गाइड साहब ने दूसरी ही  कहानी बताई  … उनके अनुसार अकबर ने इस दरवाजे की उंचाई इसलिए कम रखवाई  क्योंकि इस दरवाजे से उसकी  कब्र ठीक सामने दिखती  है और जो भी  उसकी  कब्र के सामने भी आयेगा वो  भी  उसे सर झुकाए बिना नहीं आ सकेगा .. उन्होंने बताया ….  अकबर के पौरुषपूर्ण दम्भी व्यक्तित्त्व को ध्यान में रखते हुए मुझे तो  यह कारण अधिक सही प्रतीत होता है, बाकी  अकबर जानें या बीरबल ….!

तो … अकबर की इच्छा का सम्मान करते हुए हम सब सर झुकाते हुए सलामी दरवाजे से अंदर आ गये और अन्दर आते ही  जिस एक बात ने मेरा ध्यान खींचा वह थी  इस इमारत की वास्तुमिति ……मुख्य दीवार से लेकर मुख्य भवन तक  एक अद्भुत और विलक्षण सममिति आकार की संरचना, मुख्य भवन में  चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार, चारों और सामान आकार प्रकार के सलामी गेट, चारों  ओर प्रवेश द्वार के दोनों तरफ दांतेदार मेहराब युक्त  5-5 छोटे खुले हुए दर, जो जिनमें से हर एक  के नीचे  एक कब्र के बराबर का  एक  7 फुट गहरा एक खोखला  गढ्ढा,  जिसे पत्थर से इस प्रकार ढका गया है कि वह बाकी  फर्श से अलग दिखे और पहचाना जा सके | 

       चालीस कब्रों से घिरे हुए भवन के बीचोबीच  एक बड़े हालनुमा  कमरे में अकबर की सफ़ेद संगमरमर की कब्र, जहाँ पहुँचने के लिए एक बड़े कमरे से होकर जाना पड़ता है  | कहते हैं कि  कमरे की दीवारों पर सोना चढ़ा हुआ था जिसमें बहुमूल्य जवाहरात लगे हुए थे….. औरंगजेब की कट्टर धार्मिक  नीति के चलते  जाटों ने गोकुल जाट की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए राजाराम के आधीन  इस मकबरे पर हमला किया  और आग लगा कर  इसकी दीवारों से सोना पिघला कर  निकाल लिया|

      इस हाल में उस आग का कालापन आज भी मौजूद है ….इसके बावजूद   यह एक बेहद बेहद  खूबसूरत हाल है  जिस की दीवारों पर अभी भी  खूबसूरत चित्र देखे जा सकते हैं …!

        एक पतले नीम अन्धेरे वाले  रहस्यपूर्ण आभास  युक्त  गलियारे से होकर हम लोग उस जगह पहुंचे जहाँ दफन किया गया था मुगलों का सबसे साहसी, शूरवीर, महान, भारत की सहिष्ष्णु परम्परा का अंतिम विदेशी वाहक,   मध्यकालीन विश्व का इतिहास जिसके बगैर अधूरा है ….एक चौकोर  हालनुमा कमरा जिसमें हवा और प्रकाश के आगमन का पर्याप्त परन्तु रहस्यमयी प्रबंध ….बीचोबीच में  एक  बिलकुल सादी,  अलंकरण अथवा नक्काशी रहित, यहाँ तक  कि कुरआन की आयत तक  भी  नहीं लिखी है…. मानो किसी फकीर की कब्र हो …..एक चादर तक  नहीं …..कबीर  की झीनी झीनी बीनी चदरिया,  ज्यूँ की त्यूं रख दीनी चदरिया की व्यवहारिक व्याख्या को समझाती, दर्शाती एक शासक की कब्र……. इतिहास में ऐसे बिरले ही शासक होंगें जो अपनी सहिष्णुता पूर्ण राजनीतिक शैली और विचारधारा के लिए अधिक सराहे गये हों जैसे अशोक …..अकबर इसी प्रकार का शासक था और  शायद उतना ही  दुर्भाग्यशाली भी …!

      धार्मिक सद्भाव और सहिष्णुता की नीति  के इस अंतिम वाहक के परपोते औरंगजेब ने अकबर की नीतियों को  छोडकर कट्टर धार्मिक विचारधारा के आधार पर जो कार्य किये उसका परिणाम परबाबा को भोगना पड़ा और वह भी  अपनी मौत के  80 साल के बाद … बिलकुल “परदेस  गमन ऊसर मरण ताहू पे कुछ और ..” की कहावत को सच करते हुए …… कहते हैं कि राजाराम ने जब इस मकबरे को लूटा था तो अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियां निकाल कर जला दीं थीं!

       ऐसा ही तो कबीर के साथ भी हुआ था शायद…… हड्डियां भले ही न जलाई गई हों कबीर की पर अंतिम संस्कार तो दोनों तरह से हुआ था कबीर का……….. हिन्दू रीति से भी और मुस्लिम रीति से भी ….एक और व्यावहारिक व्याख्या कबीरत्व की …….एक शासक की कब्र द्वारा..!

        अकबर को सलाम किया और बाहर आये | चारों ओर निरीक्षण-परीक्षण के अपने चिर-परिचित कार्य में हम जुट गये | चारों ओर एक  जैसे गेट और उनके अगल  बगल  कब्रें …..लाशों की बाट जोहती लाश विहीन कब्रें …. विशिष्ठ चिन्हों द्वारा पहचाना जा सकने वाला  स्थान जो  प्रत्येक लगभग 7 फिट गहरा  खोखला गड्ढा है जिसके ऊपर खड़े होकर अगर आवाज की जाए तो  वह  लम्बे समय तक  गूंजती  रहती  है क्योंकि ऊपर ऊँची छत है|

        प्रत्येक स्थान एक दुसरे से बेहद मोटी  परन्तु बेहद खूबसूरत तक्नीक से निर्मित बेहद खूबसूरत दीवारों द्वारा अलग किया गया है  | उर्द दाल, शीरा, चूना  भूसा, और गोबर मिश्रित निर्माण सामग्री  से निर्मित ये दीवारें इस कहावत को पूरी  तरह चरितार्थ करती  हैं कि दीवारों के कान होते हैं | हीराकृति ज्यामितीय डिजाईन से निर्मित इन दीवारों को इस प्रकार सीधी  रेखाओं के द्वारा आपस में जोड़ा गया है कि अगर आप हाल के किसी एक कोने में किसी दीवार के पास कुछ बोले, तो  दुसरे सबसे दूर के कोने की दीवार पर कान लगाने पर उधर वह बात साफ़ सुनाई देती  है…!

       मजे की बात ये है कि जितना धीमे बोला जाता है दूसरी और उतना अधिक साफ़ सुनाई देता है …लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में भी यह तकनीक दिखती  है और संयोग से निर्माण सामग्री, तकनीक और  डिजाईन में दोनों जगह ही काफी साम्यता है | 

        घूम फिर कर फिर उसी मुख्य द्वार पर .. अकबर की  कब्र के बायीं और दो  कब्रें, अकबर की बेटी, बहार बेगम, और शर्फुन्निसा और उनके बच्चों की,  बायीं ओर औरंगजेब की कुमारी  बेटी जेबुन्निसा की  कब्र, ,…….. वही जेबुन्निसा जो  मख्फी उपनाम से शायरी  करती  थी जिसके दीवान में उसकी  हज़ारों रचनाएँ मौजूद हैं, वही  जेबुन्निसा ….. जिसे इश्क करने के जुर्म में सलीमगढ़ के किले में बीस वर्षों तक  तन्हाई में कैद कर  दिया गया था , जो  आजीवन वहां कैद रही  और वहीँ मरी भी……  पर्याप्त अलंकृत, कुरआन की आयतें उत्कीर्ण, जीते जी  जो न मिला उसे पिता से वह मरने के बाद पाया उसने ……….खुली हवा और आज़ादी ……..तीनों कब्रें इस्लामिक रिवाज़ के अनुसार  संगमरमर की  जालियों से ढकी हुई,…………  एक जगह एक  छोटी सी कब्र, सलीमा बेगम के पहले पति  बैरम खान के अल्पवयस्क पुत्र की,   शेष सभी खाली  कब्रें …… पीछे वाला प्रवेश द्वार खंडित …!

          बताते हैं कि इसी द्वार को  नष्ट करके राजाराम ने मकबरे में प्रवेश किया था और लिया था इतिहास  का सबसे अनोखा बदला जिसका शायद ही  विश्व इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण मिले | गोकुला जाट की  बेहद निर्मम हत्या से (  औरंगजेब ने  उसके टुकड़े टुकड़े करके कुत्तों को  खिला दिए थे ) बुरी  तरह आहत जाटों ने  राजाराम के नेतृत्त्व में बदला लिया।

         उन्होंने  अकबर के मकबरे को  न सिर्फ बुरी  तरह लूटा, तोड़ा, नष्ट किया बल्कि अकबर की  कब्र को खोद कर उसकी  हड्डियों को  जला दिया | अपने शत्रु के पूर्वजों के साथ इस प्रकार का घिनौना व्यवहार और वह भी  उस संस्कृति के व्यक्ति द्वारा जो अपने पितरों को ईश्वर से भी  अधिक पूजते हैं; ( भारतीय संस्कृति में पितृ सदा पूज्य रहे हैं |

       देवों की  भर्त्सना मिलती  है, देवों की निंदा  मिलती  है  पर पितर सदा ही पूज्य रहे हैं ); यह बताता है कि जाट समुदाय गोकुला जाट की इस निर्मम हत्या  के कारण कितनी  बुरी  तरह आक्रोशित था, और यह भी कि औरंगजेब की कट्टर नीतियों  ने समाज में किस प्रकार की घृणा और बदले की भावना को जन्म दिया था |  

अब नजर बाग़ की ओर मुड़ी | चारों ओर बड़े विशाल चार बाग जिनमें हिरण और मोर घूम रहे थे  | जल संचयन और प्रवाह प्रणाली के अवशेष भी दिखे | घूमते फिरते धुंधलका होने लगा था | वापस चलने का विचार हुआ और हम सब सलामी दरवाजे से एक बार फिर अकबर को सलामी देकर बार आ गये |

       मकबरे से बाहर निकलते ही  हमने अपना प्रश्न फिर से उछाला …..ये क्या है …? गाइड साहब इस वक़्त कुछ मेहरबान से दिखे …. कांच महल के बारे में भी विस्तार से बताया कि यहाँ जहाँगीर मनोरंजन और शराबनोशी के लिए आता था और जब आता था अभी यह इमारत बनती  थी  मतलब उसके आदेश पर आगे निर्माण शुरू होता था |

       कई बार बदलाव भी किया जाता था ….. बाकी  तो  बताया ही कि मुगल स्थापत्य में पत्थर ( संगमरमर को  छोडकर )  की इतनी  बारीक कारीगरी  शायद ही  कहीं मिले… … इमारत में इटालियन ग्लेज़ड टाइल्स का सुंदर प्रयोग है … “और ये जो  आप पूछ रहे थे न “…अब मुझसे मुखातिब हो कर  वे बोले …….. “ये सिकन्दर लोदी  का मकबरा है …!

       यहाँ उसकी  अस्थाई कब्र थी  जहाँ से निकाल कर  उसको दिल्ली के लोदी  गार्डन में उसके मकबरे में दफनाया गया था …………..

 …………मतलब

…….. एक  और कब्र ……जो लाश विहीन है …..क्या कहने इतिहास की  इस विडंबना के  ……………शायद ही  विश्व इतिहास में कोई ऐसा कोई अन्य उदाहरण मिले जहाँ लगभग 50 कब्रें 500 वर्षों से इंतज़ार कर रही  हों….. तरस रही  हों……. अपने अस्तित्त्व की  पूर्णता के लिए, एक  अदद लाश के इन्तजार में  कि शायद कोई आ जाए  दफ़न होने के लिए ………. अफ़सोस न कोई आया, और लगता है  कि न ही  कोई आने वाला ही है ….. इस अभिशप्त कब्रिस्तान में ……ये कब्रें यूँ ही  तरसती रहेंगी अपने होने  की  सार्थकता के लिए …………अपना अपना भाग्य!!

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें