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बेरोजगारों को लाभार्थी नहीं कामार्थी बनाने की जरूरत

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सनत जैन


भारत में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है। पिछले तीन दशक में डिग्री से नौकरी और रोजगार की परिकल्पना का तेजी के साथ विस्तार हुआ। वैश्विक व्यापार संधि के बाद भारत में उधार के धन का प्रवाह बढ़ा है। पिछले 30 वर्षों में दुनिया के सभी देशों की आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियां बड़ी तेजी के साथ बढ़ीं हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में सारी दुनिया एक तरह से सोचने लगी। आर्थिक एवं सामाजिक विकास को लेकर सारी दुनिया में एकरूपता आई। औद्योगिक विकास को ही सबसे बड़ा विकास मान लिया गया।

भौतिक आवश्यकताओं का एक नया पैमाना विकसित हुआ। डिग्री के आधार पर नौकरी और रोजगार के सृजन को मान लिया गया। शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया। किताबी ज्ञान कभी वास्तविक ज्ञान का स्वरूप नहीं ले सकता है। किताबी ज्ञान की डिग्री कभी कोई काम नहीं आ सकती है। करोड़ों डिग्री धारी युवाओं को वर्षों से रोजगार नहीं मिल रहा है। बड़ी-बड़ी डिग्रियां होने के बाद भी उन्हें 10 से 15000 रुपए की नौकरी नहीं मिल पा रही है। जिसके कारण अब युवाओं में उच्च शिक्षा और डिग्रियों के प्रति अरुचि दिखने लगी है। औद्योगिक क्रांति से मशीनों को तो काम मिल सकता है, लेकिन आबादी को काम नहीं मिल पाता है। पिछले 20 वर्षों में बैंकिंग सेक्टर काफी तेजी के साथ आगे बढ़ा। बैंकों में उपभोक्ताओं की संख्या कई गुना बढ़ गई।

बैंकों की कमाई कई गुना बढ़ गई। लेकिन बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या घटती चली गई। यही हाल रेलवे का है। यही हाल गवर्नमेंट सेक्टर का है। उद्योग और व्यापार में जिस तरह से कॉरपोरेट कंपनियों ने अपना एकाधिकार बनाते हुए स्थानीय रोजगारों को समाप्त करने का काम किया है। पूंजी का प्रवाह कुछ बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों तक सीमित होकर रह गया, जिसके कारण मध्यवर्ग और निम्न वर्ग की बचत खत्म हो गई। निम्न और मध्यम वर्ग पर कर्ज बड़ी तेजी के साथ बढ़ गया। देश में डिग्री लेकर नौकरी की मांग करने वाले युवाओं की संख्या साल दर साल बढ़ती चली गई।

जो स्थानीय रोजगार और धंधे थे, वह पूरी तरह समाप्त होते चले गए। भारत जैसे देश में जिसकी आबादी 140 करोड़ से ज्यादा हो गई है। 30 करोड़ से ज्यादा उच्च शिक्षित पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार हैं। इन्हें बाबू और चपरासी की नौकरी भी नहीं मिल पा रही है। पिछले वर्षों में रोजगार के अवसर स्थानीय आधार पर उपलब्ध थे आर्थिक विकास के नाम से वह छीन लिए गए हैं। सभी रोजगार व्यवसाय और उद्योग में कॉर्पोरेट का कब्जा होता जा रहा है। जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए बेरोजगारों को लाभार्थी बनाने के लिए सरकार प्रतिमाह कुछ राशि देकर बेरोजगार युवाओं के गुस्से को शांत करना चाहती है। बेरोजगार युवाओं को सरकारी सहायता पर निर्भरता बढाई जा रही है। यह स्थिति आर्थिक, सामाजिक विकास की दृष्टि से भविष्य में बहुत नुकसान पहुंचाने वाली साबित होगी। भारत की युवा आबादी ने भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में अपने ज्ञान और मेहनत के बल पर एक अलग जगह बनाई है। अब डिग्रियां होते हुए भी नौकरी या काम नहीं मिलने के कारण भारतीय युवा निराश और हताश है। हरियाणा पंजाब तमिलनाडु केरल और गुजरात जैसे राज्यों से युवा चोरी-छिपे रोजगार की तलाश में अवैध रूप से विदेशों में जा रहे हैं। इजराइल जैसे युद्धग्रस्त देश में भी मजदूरी करने के लिए तैयार हैं।

युवाओं को भारत में रोजगार उपलब्ध नहीं हो रहा है। बाहर के देशों में भी अनुभव नहीं होने के कारण काम नहीं मिल रहा है। 1970 के बाद बड़ी तेजी के साथ देश में लघु एवं मध्यम उद्योग विकसित हुए थे। जिस तरह का सामाजिक और आर्थिक ढांचा स्थानीय रोजगार पर आधारित था, पिछले 10 वर्षों में रिटेल सेक्टर में कारपोरेट कंपनियों का कब्जा हो जाने से वह पूरी तरह से टूट गया है। युवाओं के पास डिग्री है। उनके पास नौकरी और रोजगार के अवसर नहीं हैं। नौकरी और रोजगार के लिए जो ज्ञान आवश्यक है, वह उन्हें पढ़ाई के दौरान नहीं मिला। पिछले 30 वर्षों में जिस तरह से विदेशी पूंजी भारत में आई है। हर धंधे में बड़ी-बड़ी कंपनियों का एकाधिकार होता चला गया। हर क्षेत्र में मशीनों और ऑनलाइन सर्विस की बाढ़ आ गई है। उसके कारण युवाओं को नौकरी और रोजगार के कोई अवसर नहीं मिल रहे हैं।

केंद्र एवं राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर रोजगार और नौकरी के अवसर बढ़ाने होंगे। कृषि क्षेत्र लघु एवं मध्यम उद्योगों को पुनर्स्थापित करने की नीतियां बनानी होंगी। मिडिल और हाई स्कूल की पढ़ाई के साथ उन्हें विभिन्न कामों का प्रशिक्षण पढ़ाई के साथ मिल सके। जो उन्हें रोजगार उपलब्ध करा सके। मिडिल और हाईस्कूल की शिक्षा में हिंदी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और संचार माध्यमों का उपयोग करने की शिक्षा, हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान मिले, इसकी व्यवस्था करनी होगी। स्थानीय स्तर पर नौकरी और रोजगार के अवसर पैदा हों, ऐसा हुआ तो भारत के युवाओं को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी रोजगार के बहुत सारे अवसर उपलब्ध होंगे। हर काम के लिए अनुभव जरूरी है। किताबी ज्ञान से कुछ हासिल नहीं हो सकता है। लंबे समय तक सरकारी सहायता भी देना संभव नहीं होता है। आत्मनिर्भरता के लिए हर व्यक्ति को लाभार्थी नहीं कामार्थी बनाने की जरूरत है। हर व्यक्ति में विशेष योग्यता होती है।

हर व्यक्ति की सोच अलग होती है। हर व्यक्ति का ज्ञान भी अलग होता है। हर व्यक्ति की रुचि भी अलग होती है। जब विविधता के साथ ज्ञान होगा, तभी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। सामाजिक व्यवस्था में विविधता होती है। चीन की बढी हुई आबादी में प्रतिस्पर्धा कामगारों के बीच में उत्पन्न की गईं थी। उत्पादन से आर्थिक आधार को जोड़ा गया था। उसके कारण चीन का उद्योग और व्यापार सारी दुनिया में फैल गया। भारत सरकार को भी इस दिशा में गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है। वर्तमान स्थिति में लापरवाही बरती गई, तो आने वाले समय में स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

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