
सुसंस्कृति परिहार
जब अंधेरे बढ़ रहे हों और नौजवान निराशा में डूबे हुए हों तो बताओ क्या किया जाए ? बैठे रहें चुपचाप या होकर उदास इंतजार करें मौत के आने का ! नहीं क्रांति आपको पुकार रही है और भगत सिंह आपका आव्हान कर रहे हैं । वहीं भगत सिंह शहीद ए आज़म जो वतन के वास्ते 24 वर्ष से कम आयु में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे ।उन्होंने नव भारत के निर्माण का जो सपना संजोया था जो प्रारूप तैयार किया था उस युग दृष्टा और गंभीर चिंतक के अरमानों को पूर्णता देने के लिए नौजवान तैयार हो जाएं ।नींद से जागे ।बहुत वक्त यूं ही गुजर गया है ।ध्यान रहे, भगत सिंह के सपनों के साकार करने उनके विचार और आंदोलन-धर्मी तत्वों की पहचान के साथ समायोजन जरूरी है। आंदोलन की ज्योत जलाए रखने के लिए धैर्य और संजीदगी की भी जरूरत है ।इस संबंध में भगत सिंह का अनुभव बड़े काम का है -“आंदोलनों के उतार-चढ़ाव के बीच प्रतिकूल वातावरण में कभी ऐसे क्षण भी आते हैं एक-एक कर सभी हमराही छूट जाते हैं ,बिछड़ जाते हैं ।उस समय मनुष्य सांत्वना के दो शब्दों के लिए तरस उठता है ।ऐसे क्षणों में विचलित ना हो कर जो लोग अपनी राह नहीं छोड़ते ,इमारत के बोझ से जिनके पैर नहीं लड़खड़ाते, कंधे नहीं झुकते । जो तिल तिल कर अपने आप को इसलिए गलाते रहते हैं कि दिये की जोत मद्धिम ना हो ।सुनसान डगर पर अंधेरा ना हो जाए ।ऐसे ही लोग मेरे सपने को साकार बना सकते हैं ।”
इतना माद्दा और विश्वास लेकर नौजवान साथी आगे आएं , तो कोई भी ताकत भारत के विकास में बाधा नहीं बन सकती ।आज जब मजहबी ताकतें दुनिया में तृतीय विश्वयुद्ध का बीज बो चुकी हैं । हमारे देश में भी मजहब के अलंबरदारों की कद्र का दौर चरम पर है ।मजहब के नाम पर शिक्षण संस्थाओं के निर्माण से फिरका परस्त ताकतों को मौका तो मिलेगा ही । इधर दहशतगर्द भी मौके बेमौके देश में अशांति का सबब बन जाते हैं ।
ये सब जानते हैं कि कोई भी मजहब आपस में बैर करना नहीं सिखाता लेकिन हम कैसे विश्वास कर ले यह ख्याल हर नौजवान के दिल में उठता है। इस वास्ते भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा के मनोरथ पत्र में साफ लिखा था -“मैं मानता हूं युवाओं में जोश होता है लेकिन उन्हें होश भी रखना चाहिए कि वे क्या करने जा रहे हैं ।होश में रहने का रास्ता है ,अध्ययन ।इतनी पढ़ाई करो कि यकीन के हक में दलील दे सको ।इतना पढ़ो इस समाज में चल रही दलीलों को समझकर ,दुश्मन की दलील का जवाब दे सको ।” भगत सिंह और उनके साथियों ने खूब पढ़ा ।वे मानते थे आज का बलवान ,वही नौजवान है जो दुनिया की इंकलाबी क़िताबें पढ़ कर अपने में समेट लेता है और समझ जाता है कि जनता का दुश्मन कोई एक व्यक्ति नहीं होता वे नीतियां होती हैं जो लोगों से उनकी मेहनत के स्रोत छीनने के लिए बनाई जाती हैं । वह इंस्टिट्यूट होते हैं जो इन नीतियों को बनाने में हिस्सेदार होते हैं । द्रौपदी रूपी जनता का चीर हरण करने वाले भी और उसे चुपचाप देखने वाले दोनों ही जनता के दोषी हैं ।
उन्होंने हर तरह के भ्रम और गैर वैज्ञानिक विचारों से मुक्ति का आव्हान किया था उनका यह सूत्र खास ध्यान देने योग्य है कि धार्मिक विश्वास और कट्टरपंथ हमारी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा हैं , इन बाधाओं से छुटकारा पा लेना चाहिए । जो चीज आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं करती उसे समाप्त हो जाना चाहिए ।आज लोक हित और राष्ट्र हित की बातें बहुत पीछे छूट गई है तर्क और बुद्धि विवेक पर पर्दा डालने की कोशिशें जारी हैं । उन्होंने साफ तौर पर लिखा था – “मजहबी वहम और तास्सुब हमारी बड़ी उलझन है ।उन्हें उखाड़ फेंकना जरूरी है क्योंकि सांप्रदायिकता ने हमारी रुचि को तंग दायरे में कैद कर लिया है । इस तंग दायरे से निकलने उन्होंने बार-बार श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की सलाह दी जिससे दिमागी गुलामी से मुक्ति मिले और नए समाज के सृजन का सपना पूरा हो सके ।
उन्होंने सनातन धर्म पर चोट करते हुए लिखा था कि यह इंसान इंसान के बीच भेदभाव करता है । पंडित भंगी से माला पहनने पर स्नान करता है । कपड़े बदलता है । गुरुद्वारे जाकर सिख राज करेगा खालसा गाये और बाहर आकर पंचायती राज की बात करता है । क्या मतलब हुआ ? उधर इस्लाम पर विश्वास न करने वाले को काफिर,तलवार के घाट उतार देने चाहिए का फरमान ।क्या इनके सहारे एकता की बात संभव है ।हम जानते हैं कि अभी कई आयतें और मंत्र बड़ी उच्च भावना से पढ़कर खींचतान करने की कोशिश की जाती है पर सवाल यह है कि इन सारे झगड़ों से छुटकारा ही क्यों ना पा लिया जाए ।
भगत सिंह ने सन 1928 में ही कह दिया था -“कि भारत की दुर्दशा के हिस्सेदार वे लोग हैं जिन्हें राम की चिंता है ,राम के लोगों की नहीं । ख़ुदा की फिक्र है और ख़ुदा के बंदों की नहीं ।वाहेगुरु की परवाह है वाहेगुरु के इंसानों की नहीं ।”
अफसोसनाक है आज नव भारत का स्वप्न द्रष्टा प्रगतिशील क्रांतिकारी भगत सिंह आज राजनीति का हिस्सा बन गए हैं । कट्टरपंथी ताकतें अपनी वोट की खातिर उनका इस्तेमाल कर रही हैं उनके ख्याल में आते जज्बे से उनका कुछ लेना देना नहीं है । राम मंदिर की खातिर सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली बातें राम के बंधुओं को मरने मिटने का पैगाम सुनाकर उद्वेलित करती रहती हैं , कभी राष्ट्र वाद के नाम पर ,कभी हिंदुत्व के नाम पर ।कभी हिजाब के नाम पर ।इनसे सावधानी जरूरी है ।
आज के वैज्ञानिक युग में भी नौजवान साथी अंधविश्वास और पाखंड की जकड़न में फंसे हुए देखकर आश्चर्य होता है इसी कारण वे निराशा और हताशा में है उन्हें अच्छे एवं बुरे का फर्क समझना होगा याद रखें भगत सिंह की नौजवान सभा ने उनके इन्हीं शब्दों से प्रेरणा ली थी और वतन के वास्ते अंग्रेजों से टक्कर ली थी ।नौजवानों की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश से अब शुरूआत होनी ही चाहिए बहुत देर हो चुकी ।उनके आचार और विचारों पर चलने का वक्त आ गया है यहां यह बात याद रखना होगी भगतसिंह मानते थे-” मैं जिस ऊंचाई पर पहुंचा हूं वह साथियों की कुर्बानी और उनके साथ उसूलों पर चलने की वजह से हूं”
ज्ञातव्य हो, दुनिया को बेहतर बनाने के लिए भगत सिंह की क्रांति का दर्शन सब का पथ प्रदर्शक है जिसमें संघर्ष अनिवार्य नहीं और ना ही इसमें प्रति हिंसा का कोई स्थान है क्रांतिकारी अपने मानवीय गुणों के कारण मानवता के पुजारी हैं याद रखिए क्रांति यदि बम और पिस्तौल का सहारा लेती है तो यह उसकी चरम आवश्यकता है भगत सिंह का ख्याल था अमन और कानून मनुष्य के लिए हैं ना कि मनुष्य अमन और कानून के लिए ।
दरअसल आज भारत की सत्ताधारी पार्टियाँ भगत सिंह की बदली हुई तस्वीरों के साथ उन्हें एक प्रतिमा में बदलकर उसके नीचे उनके क्रांतिकारी विचारों को दबा देना चाहती हैं, ताकि देश के युवा और आम लोगों को से उनसे दूर रखा जा सके ।अब यह हम सब की साझा जिम्मेदारी है कि हम जनता को सच्चाई से अवगत करायें और भगतसिंह और उनके साथियों को इन जालिमों द्वारा दुरूपयोग करने से बचायें. भगतसिंह की सही राजनीति और विचार ही साम्प्रदायिक जनविरोधी ताकतों को परास्त कर सकती है और उनके मनसूबों को मात दे सकती है!आइए , संकल्पित हो ।