सुसंस्कृति परिहार
भई दुर्गोत्सव की याद तो होगी ही जब हद कर दी थी साहिब जी ने दुर्गा मां की पीठ लोगों को दिखवा दी जो अक्सर लोग नहीं देख पाते। इसलिए पिछले हिस्से को कामचलाउ बना देते हैं वैसे गलती उस फोटोग्राफर की मानी जानी चाहिए जिसने साहिब पर कैमरा फिट किया कि साहिब ना चूक जाएं और दुर्गा मां की पृष्ठ प्रदेश की फोटो आ गई। भक्त नाराज हुए तरह तरह की बातें कर रहे थे कोई कह रहा ये देवी मां का सरासर अपमान है। तो कुछ ये कह कर संतोष कर रहे हैं कि देवी मां के कोप से अब साहिब नहीं बचेंगे। भक्तों को ये समझना चाहिए कि गलती लेशमात्र साहिब की नहीं है दोष तो कैमरामैन का है।अब ये बात भी सही है कि फोटोग्राफर को जैसी हिदायत दी गई होगी वैसा ही तो वह करेगा।
साहिब का कैमरा प्रेम जग जाहिर है हां ये भी हो सकता है कैमरामैन ने ज़रा ज्यादा ही उत्साह में ये चित्र ले लिया हो यहां भी उनके पी आर ओ की गलती बनती है उन्होंने बिना देखे भाले कैसे ये फोटो जारी कर दिए।यह धर्म का मामला है इसने यदि तूल पकड़ लिया तो साहिब को लेने के देने पड़ सकते हैं। वैसे भक्तों ने साहिब में अब भगवान देख लिया है इसलिए वे इसे सहजता से ले लिए। जहां तक सवाल विरोधियों का है तो उनकी बात सुनता कौन है। इसलिए घबराने की ज़रूरत नहीं है ।
इस घटना के तुरंत बाद एक बार साहिब की बापू पर जयंती पर एक फोटो ठोक दी वे जब माला पहनाने गए तो बापू की पीठ ही नज़र आई।लाल कारपेट पर आगे बढ़ते साहिब का फोटो ख़ूब नज़र आया।यह फोटो प्रीप्लांड कहा जा सकता है इससे पहले चूंकि देवी मां वाला चित्र वायरल हो चुका था।ऐसा संभव भी हो सकता है क्योंकि जब कोई जबरिया गांधी को माला पहनाने जायेगा तो गांधी के चेहरे को फोकस करने की क्या ज़रूरत ? राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करने जब जनाब पहुंचते हैं तो दिल्ली उपराज्यपाल उनके करीब आने की कोशिश करते हैं उनका सुरक्षा अधिकारी उन्हें हटा देता है वे मन मसोस कर रह जाते हैं। उन्हें अपने आसपास भी कोई पसंद नहीं।
विदेशों में भी विदेशी राजनयिकों को धकियाकर फोटो में आने की कई तस्वीरें भी वायरल हुईं हैं।इसे फोटो मीनिया कह सकते हैं। सबसे खराब तो तब लगता है जब वे अपनी माताजी से मिलने जाते रहे और फोटो ग्राफर पल पल के फोटो और वीडियो बनाता है।लोग कहते हैं थोथा चना बाजे घना।मतलब ये है कि जो हल्का होता है वहीं आवाज करता है वरना साहिब के चारों ओर कैमरों की उपस्थिति के बीच यह सम्मोहन कैसा और क्यों ?एक बात और जो खराब लगता है साहिब जब एकटक कैमरे पर नज़र रखते हैं तो वे अच्छे नहीं लगते ऐसा लगता जैसे वे जबरिया घुसपैठ कर रहे हैं वैसे ही जैसे कोई नेतानुमा छिछोरा किसी मंत्री के कार्यक्रम में घुसकर फोटो खिंचवाता है और उससे धौंस बताकर लोगों को अपने फरेबी जाल में फांसता है। साहिब तो सबसे बड़े वाले हैं उन्हें इसकी क्या ज़रूरत उनके सैंकड़ों वीडियो और चित्र रोजाना लोग देखकर उनसे जलते हैं। मीडिया में जिस तरह साहिब का बोलबाला वैसा आजतक किसी बड़े से बड़े राष्ट्राध्यक्ष का नहीं देखा।
उनकी कैमरा जीविता को सलाम करती हूं माताजी को कांधा देते वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज राज सिंह को अपमानित कर उन्हें सामने से हटा देते हैं साहिब हमेशा जिस तरह आप चौकन्ना रहते हैं वह लाजवाब है। आपकी कैमरा तलाशती नज़रें भी वैसे सच कहूं तो अच्छी लगती है।इस दूर दृष्टि को समझने की जरूरत है एक फोटो ही तो है जो जीवंत इतिहास बताता है।आप जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के पल पल की जानकारी रखना बहुत ज़रूरी है।वह काम वीडियो और फोटो से ही संभव है।
अफसोस तो तब हुआ जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की काट चार महीने बाद देखी गई। हुजूरे आला ने समझा होगा कि राहुल की इस यात्रा को जब मीडिया दिखा नहीं रहा है तो इस बारे में क्या सोचना? लेकिन इस दौर के सशक्त सोशल मीडिया ने जो कहर बरपाया उससे वे आहत हुए तो सनक में बेसबब वे भी दिल्ली में कुछ किलोमीटर यात्रा करने अपनी गाड़ी में पूरे काफ़िले के साथ निकल लिए और उनकी यात्रा की फोटुओं का तांता लग गया।वे कब लोगों खासकर राहुल की तरह युवतियों को गले लगाते नज़र आते हैं।ये देखना दिलचस्प होगा।जब ये फोटो आयेंगी तभी साहिब की फोटोजीविता की खुमारी शायद उतरे या परवान चढ़े।
इतना तो तय है कि साहिब की तरह आत्ममुग्ध फोटो जीवी शायद ही दुनिया में कोई हो। हमारे साहिब हैं तो कमाल के।