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सिर्फ एक बाँध के खिलाफ चल रहा आंदोलन नहीं है नर्मदा बचाओ आंदोलन, लडेंगे तो जितेन्गे भी….!

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डॉ सुरेश खैरनार

फरवरी 1986 में महाराष्ट्र के धुलिया जिलेके डूब क्षेत्र में आनेवाले लोगों ने नर्मदा धरणग्रस्त समिति की स्थापना की और धडगाव नामके सतपुड़ा पर्वत मालामें के इस गाव मे मुआवजा देने की बात का विरोध और उसीके आसपास मध्य प्रदेश के डूब क्षेत्र निमाड़ में भी विरोध करने के लिए संगठन शुरु हुआ !

यह नर्मदा नदी पर बनने वाले नर्मदा घाटी परियोजना के खिलाफ चल रहे आंदोलन की बात है सरदार सरोवर परियोजना,वर्तमान मे संयुक्त नर्मदा घाटी परियोजना है जिसमे 30 बडे 135 मझोले तथा 3000 छोटे बाँध शामिल हैं जो की 1312 की मी लम्बी नर्मदा नदी पर तथा इसकी सहायक नदियो पर बांधें जायेंगे ! शूरूआत में 12000 करोड़ से 3450 करोड़ का अनुमान था लेकिन आने वाले समय में यह किमत बढते जाने के कारण लाभ हानी का गणित बिगड़ना तय है !

योजना आयोग के अनुसार एक रुपये खर्च करने पर डेढ रुपये वापस मिलेंगे तो ही योजना फायदे मंद मानी जाती है ! लेकिन नर्मदा बाँध परियोजना के आकड़े समय समय पर इतने बार बदलते आये हैं उससे लाभ हानी का गणित बिगड़ना तय है !


यह आंदोलन सिर्फ एक बाँध के खिलाफ चल रहा आंदोलन नहीं है! हम लोग गत साल से महात्मा गाँधी जी के 150 वे जन्मदिन को मना रहे हैं ! और उनके जीवन का मुख्य संदेश देनी वाली किताब लगभग 100 पन्नों की ! हिंद स्वराज जिसमे वह आजसे 111 साल पहले के इंगलैंड की औद्योगिक क्रांति को देखकर ही उन्होने विकास की अवधारणा को चर्चा में लाया है और मेरे हिसाबसे नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भी देश और दुनिया में चल रहे विकास की पागल दौड के बारे में सवाल उठाये हैं !

आज विश्व के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पृथ्वी के तपमान को लेकर काफी गंभीरता से विचार विमर्श कर रहे हैं 200 से भी अधिक वैज्ञानिक पृथ्वी के तपमान को लेकर मनुष्य द्वारा की जा रही हरकतो के कारण किस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता जा रहा खतरा अगर इसी तरह जारी रहा तो समस्त विश्व के लिए गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं !

महात्मा गाँधी जी यही बात आजसे सौ साल से भी पहले आगाह कर रहे थे कि पृथ्वी सभी मनुष्यों की जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है,लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं !

जींस तरह से समस्त विश्व भरमे विकास की पागलो की तरह दौड शूरू है उससे हमारी भावी पीढ़ी के लिए हम शायद ही कुछ छोड कर जा रहे हैं ! और इसिलिए नर्मदा नदी के साथ किये जा रहे छेड़छाड के खिलाफ चल रहे आंन्दोलन की जयंती के अवसर पर हमे सभीको गंभीर रूप से सोचना चाहिए की विकास के नाम पर चल रहे विनाश को रोकना होगा और यही नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रति सही सम्मान होगा !
लडेंगे तो जितेन्गे भी !

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