अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

जननी को सामर्थ्यवान बनाए बिना हमारे देश का कल्याण नही 

Share

, मुनेश त्यागी

    मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैंने अपने मां को अपना खून देकर उनका स्वास्थ्य लाभ कराया था और उनकी शुगर बीमारी की वजह से खराब हो गई टांग को काटने से बचाया था। इसी कारण हमारी माता जी 6-7 साल और ज्यादा जिंदा रह पाई थीं। 

     वैसे तो हमारी माता जी अनपढ़ थीं लेकिन वे पढ़ाई की अच्छाइयों को जानती थीं। जब भी हमारी परीक्षाएं होती थी तो हमारी माता जी हमारे खाने पीने का बहुत ध्यान रखती थीं। परीक्षाओं के दिनों में वह हमें रोज दही पिलाया करती थीं। हमें अपनी मां की वे सब खूबियों याद आती हैं।

   आज हम जो कुछ हैं उनके पीछे हमारी माताजी की सोच का बड़ा हाथ है। हम चाहते हैं कि दुनिया की सारी मायें पढ़ी लिखी हों, शिक्षित हों, ज्ञान विज्ञान की संस्कृति से भरपूर हों, अपने पैरों पर खड़ी हों, आर्थिक रूप से सम्पन्न हों, दो दो पैसे के लिए किसी का मुंह न ताकें।

    हमारा मानना है कि जब तक हमारे देश और दुनिया की सारी मांओं को आर्थिक, राजनीतिक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से संपन्न नहीं बनाया जाएगा, उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जाएंगी, तब तक हमारा परिवार, समाज, देश और दुनिया विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकते।

    आज पूरी दुनिया में मातृत्व दिवस यानी मदर्स डे मनाया जा रहा है। इसे लेकर हर एक आदमी अपनी मां को बधाई दे रहा है, उसके कल्याण की कामना कर रहा है और सब बेटे बेटियां चाहते हैं कि दुनिया की तमाम मांओं का कल्याण हो। मगर यहीं पर एक सबसे जरूरी सवाल उठता है कि आज हमारी पूरी दुनिया बहुत आगे निकल गई है, उसने ज्ञान विज्ञान, राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के क्षेत्र में बहुत उन्नति और विकास किया है, मगर इस सब के बावजूद और दूसरी समस्याओं समेत दुनिया की औरतों द्वारा या पूरी दुनिया द्वारा बहुत सारी औरतों और सास-ससुर को लेकर बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

     आज हम देख रहे हैं कि बहुत सारे घरों में बेटे बेटियों में भेदभाव किया जाता है, समस्त भाइयों, बहनों और मां-बाप के सामने दहेज की सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई है। समाज में देखा जा रहा है कि अधिकांश बहूएं अपने सास ससुर से खुश नहीं हैं और अधिकांश सास ससुर अपनी बहूओं से खुश नहीं हैं। इन दोनों में आपसी सामंजस नहीं हो रहा है और उनमें लगातार झगड़े बढ़ते जा रहे हैं।

      दहेज के नाम पर बहुत सारी बहूओं को मौत के घाट उतारा जा रहा है और बहुत सारी बहूएं भी आपसी अनबन के कारण या आपसी तालमेल न बैठने के कारण अपने सास ससुर और देवर देवरानियों, जेठानियों के खिलाफ मुकदमें दायर करा रही हैं, उन्हें जेल में भेजने के लिए एफआईआर दर्ज करा रही हैं। आज हम देख रहे हैं कि जैसे अदालतों के अंदर पारिवारिक विवादों के मामलों को लेकर सास बहूओं और पति पत्नियों के झगड़ों को लेकर, मनमाफिक दहेज न मिलने के कारण, बहुत सारे मुकदमें अदालतों में आ रहे हैं। वहां जैसे पारिवारिक झगड़ों के मामलों की बाढ़ आ गई है।

     जब वहां पर हम नौजवान बच्चियों को देखते हैं और बूढ़े सास ससुर को देखते हैं कि वे लगातार अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं और उन्हें इच्छित परिणाम नहीं मिल रहे हैं, तब इस मामले को लेकर बहुत बड़ी बेचैनी और परेशानी सामने आती है। आखिर इस सबका क्या कारण है? यहां पर एक समस्या और है कि हमारे समाज, हमारी राजनीति और शासकों द्वारा इस लगातार बढ़ती जा रही समस्या पर कोई पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है और ये झगड़े और विवाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

   अब यह सवाल उठता है कि यह सब क्यों हो रहा है? इसके पीछे क्या-क्या कारण है? इस लगातार बढ़ती हुई समस्या का निदान कैसे हो सकता है? इस पर मिल बैठकर सोचने समझने की और एक सुनिश्चित रास्ता निकालने की जरूरत है। हमारा मानना है कि इस मामले पर एक दूसरे पर उंगली उठाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। इसके लिए हमारे मां बाप, लड़के लड़कियां, हमारे परिवार, हमारा समाज और हमारी राजनीतिक व्यवस्था और हमारे पुरातनपंथी सोच और मानसिकता जिम्मेदार हैं।

     हम आज भी देख रहे हैं की हमारे समाज में जो हजारों साल पुरानी औरत विरोधी परिस्थितियां और सोच मौजूद थीं, उन्हें सुधारा नहीं गया। उनमें जो आमूल चूल परिवर्तन किया जाना था, वह नहीं किया गया। अगर औरतों को उनके अधिकार दिए जाते, औरतों और मर्दों में आपकी सामंजस पैदा किया जाता, औरतों और मर्दों को पढ़ा लिखा कर सुशिक्षित बनाया जाता, दहेज प्रथा को खत्म कर दिया जाता, समाज के धन-धान्य में सबकी बराबर हिस्सेदारी पैदा की जाती और समाज में उच्च नीच और छोटे-बड़े की सोच का खात्मा कर दिया जाता और आपस में पूरे परिवार में, समाज में और देश में, आपसी भाईचारे की भावना पैदा की जाती तो ये सब समस्याएं नहीं आतीं।

      आज औरतों और परिवारों की जो समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं, उनका निदान करने के लिए हमें अपने परिवार, अपने समाज और अपने देश में वे सारी नीतियां अपनानी होंगी, वे सारे कार्यक्रम लागू करने होंगे कि जिससे एक बेहतर समाज बन सके, एक बेहतर परिवार बन सके, बेहतर मां-बाप बन सके, बेहतर सोच और व्यवहार की लड़कियां और लड़के बन सके, एक बेहतर इंसान बन सके। यह सिर्फ सास ससुर या बहूओं की समस्या नहीं है। यह पूरे समाज और देश की समस्या है।

     एक सही समाज का खाका हमारे सामने नहीं है।इस अति गंभीर समस्या को सुलझाने के लिए हमारे परिवारों को, मां-बाप को, बेटियों बेटों और बहूओं को, पूरी देश के राजनीतिज्ञों को, गांव को, पूरे धर्म के लोगों को आपस में मिलना जुलना होगा, आपस में बैठना होगा और सबके द्वारा सामना की जा रही इस भयंकर समस्या का निदान निकलना होगा। 

      इसके लिए केवल सास ससुर या बहूएं ही जिम्मेदार नहीं हैं, इसके लिए हमारी औरत विरोधी सोच, हमारी जन विरोधी सोच, हमारी अन्याय शोषण और जुल्मों सितम पर आधारित सोच और व्यवहार जिम्मेदार हैं। इसके लिए हमारी आदमी को आदमी न समझने वाली संस्कृति जिम्मेदार है, हमारी पदलोलुप राजनीति और सेठ साहूकारों का भला करने वाली राजनीति ही जिम्मेदार है। जब तक हमारा समाज और पूरा देश मिलकर एक न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था और भ्रातृत्वपूर्ण समंजस्य वाली समाज व्यवस्था स्थापना करने की नीतियां लागू नहीं करेंगे, तब तक  इस भंयकर परिणामों वाली समस्या का हल नहीं किया जा सकता। हमारा निश्चित मत है कि इस दुखदाई समस्या के लिए केवल और केवल मां-बाप सास ससुर और बहूएं ही जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए हमारा पूरा समाज और हमारी जन विरोधी सोच जिम्मेदार है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें